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रंगमंच

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छँटवी:-हाँ !भानवी सीधी-साधी दिखती थी ,बैसी नहीं हैं।अपनी सहेली के यहाँ जन्मदिन पर गई थी।रात में वही रूक गई।रात-भर गुलछर्रे उड़ाये होगें,और न जाने क्या-क्या किया होंगा।सच कड़वा ही लगता हैं। सुनैना ने मेर

भानवी उठ़ी और पास में रखी खेत की दवा पी ली।जब जहर ने अपना असर दिखाया तो भानवी बैचेन होने लगीं।न मुख से आव़ाज निकल रही,न खड़ी हो पा रही थी।छटपटा रही थी,गला भी सूख रहा था।लड़खड़ाते कदमों के साथ रसोई घर में

नील तो चले गयें,भानवी को डर लग रहा था।आंखे नीची करके कमरे में जाने लगीं।रिया पीछे-पीछे आ रही थी।भानवी मन में सोच रही थी,माँ डाँटेगी।जैसा सोच रही थी ,वैसा कुछ भी नहीं हुआ।रिया झाडू लगाने लगीं।इस समय सम

कृपा ने बच्चो को पुकारा,किसन द्रुपत... किसन भागके कृपा के पैरो से लिपट गया। कृपा ने किसन को गोदी में ले लिया।:-अब घर चलें। शिल्पी:-अंकल जी इतनी जल्दी,बच्चे बहुत खुश हैं।थोड़ी देर और रूक जाओं।अभी केक भी

अपने पास सबकुछ होते हुए भी खुश नहीं है अपितु दुख इसका है कि दो वखत की रोटी क्यों है?विश्वास और रक्तसम्बधी रिश्ते नाते पीणा का कारण क्यों बनते हैं।गुलाब के बीच काँटे का किरदार निभाते है,पुष्प के लिए अभ

***** यहाँ वृंदा की दिशा ही बदल गई।जो पैरामैड़ीकल डॉक्टर बनने की जगह आयुर्वेदिक डॉक्टर(वैध)बनने की दिशा में मुँड़ गई। गाँव में स्थति बिगड़ती जा रही थी।दो महीने से अम्मा की पेंशन नहीं आई थी।कमाने का एक ही

अम्मा ने जब सुना तो कमरे में आई:-बहू तू कैसी शिक्षा दें रही हैं?सजा देने की बजाय उल्टा ही पाठ पढ़ा रही हैं।जो आज सिखा रही है, कल तुझपर भी किया जायेगा।क्यों बबूल का पेड़ बना रही हैं।सबके लिए नासूर बन जाय

सुनैना ने कमर पर हाथ रख कर कहा,तुम होते कौन हो?अच्छे बुरे की परख करने बाले।मेरे बच्चे बिगड़े या सुधरे,तुम अपने काम से काम रखो।जब देखो तब ,मेरे बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं।मेरे बच्चों के पीछे पड़ने की कोई

दिनांक : 18.03.2022समय   : रात 9:30प्रिय सखी,होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।मंगल मूर्ति, सिद्धि विनायक, लंबोदर, एकदंत, विघ्नहर्ता की कृपा हम सभी पर बनी रहे। इस रंग-बिरंगे त्योहार की रंगीनियत ही

Happy, healthy & prosperous Holi to all friends and family members.https://youtube.com/shorts/ANHgP7L-WmE?feature=आप सभी को होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

मुरादी ने खुब मेहनत किया लोगो को हरसं प्रकार से सेवा कियाउसके सपने और बढ गये, सोचा कयू न आगे बढ़ने की सोची बढा पद मिलेगा तो और आस पास  का विकास  करूंगा  ।कयू न विधायकी चुनाव लडू ।।।एसा

चंडीगढ की रहने वाली प्रिया "प्रिया त्रिपाठी" गुणवान ,आस्तिक,अपने किस्मत पर गर्व करने वाली एक मिडिल क्लास फैमिली से बिलोंग करने वाली लडकी थी।वैसे तो प्रिया ज़्यादा देर तक पढ़ाई करते रेहना पसंद नही करती

“लव यू इक अनकही" सी में आपका स्वागत है । यह “प्रिया” “प्रिया त्रिपाठी”पूरी उम्र उसी से प्यार करती रह गई, जो भगवान पर विश्वास करने वाली एकआस्तिक, संकोची स्वभाव पर अपनी किस्मत पर नाज करने वाली लडकी थीक्

रिया को सुनैना की बात रह रहकर,हाथ में फँसे तिनके के समान कष्ट दे रही थी।डर भी था कभी कृपा का आक्रोश मुझपर न फूट पड़े। रिया के मन में तूफा़न उठ रहा है कि कहूँ कि न कहूँ? आखिर निश्चय कर ही लिया:-एजी,वृंद

कृपा ने लम्बे-लम्बे कदम रखे और बाहर आ गया:-अम्मा हमको साथ ले जाती।गर्मी भी प्रचण्ड़ है, आपकी भी तबियत ठीक कहाँ रहती हैं।कुछ खाकर भी नहीं गई। अम्मा ने कहा,शान्त,शान्त! मुझे कुछ नहीं हुआ हैं।वकील साहब आप

तुम्हारी अम्मा ही मुसीबत की जड़ है। -क्या हुआ?तनिक विस्तार से बताओगी। -अब अम्मा वृंदा को डॉक्टर बनवा कर ही छोड़ेगी। -अम्मा के पैसे है,चाहि कुछ करें। -क्यों न कुछ कहें।एक नातिन पर धन लुटाये और हम ऐसे ही

रिया बच्चों की मालिस कर रही हैं।दोंनो बच्चों को हँसाने के लिए तरह-तरह मुख को बनाती है और बहलाती भी हैं...मेरी रानी बेटी,मेरा राजा बेटा तो बहुत बहादुर हैं।देखो,देखो,कैसे मुस्करा रहा हैं।घ्री से मालिस क

रिया ने वृंदा को पुकारा,वृंदा ,देख कौन आया है। वृंदा कमरे से बाहर आई:-पापा नमस्ते।बहुत प्रशन्न हुई। कृपा ने कहा,मेरे पास आ।आज मैं बहुत-बहुत खुश हूँ।...और स्नेह भरे हाथों से सिर पर हाथ रखा।वृंदा तूने म

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बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह को डर था कि राजा कृष्णदेव राय अपने प्रदेश रायचूर और मदकल को वापस लेने के लिए हम पर हमला करेंगे। उसने सुन रखा था कि वैसे राजा ने अपनी वीरता से कोडीवडु, कोंडपल्ली, उ

कविता (copyright) पतझड़ की क्या बात लिखूँ  (भाग-१ (प्रथम) °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°प्रीतम की मैं प्रीत लिखूँ या विरहा के गीत लिखूँ पिया मिलन की खुशियाँ या नैहर छुटन की रीत लिख

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