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रंगमंच

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 क्या क्या जलवे कर अब दिखाने लगा है, आदमी,आदमी ही खुदाको बनाने लगा है ||  आईना बन कर मे सामने क्या गया ,  देखकर मुझेवो बौखलाने लगा है ||   जिस पर खुद से भी अधिक भरोसा किया ,  राहोमे वही कॉ

वो खुश होगी ऊपर से पर अंदर से घायल भी होंगी,हो गई होगी कुछ समझदार पर पागल भी होगी।पर क्या बोले मुझे भूल चुकी है छोड़ो जाओ देखो,ससुराल में उसके गहनों में मेरी पायल भी होगी।।

दिनाँक : 19.02.2022समय   : रात 11 बजेप्रिय डायरी जी,रेडियो के विषय में मेरी यादें जुदा है, सभी की अपनी यादें होती हैं।रेडियो के साथ मेरी आत्मा जुड़ी है। बचपन में जब से होश  संभाला, रेडिय

#Hindu_Naresh_Patel #DCP_Swadeshi #Breakingnews राष्ट्रभक्ति का दीप जलाना सब को अच्छा लगता है जन गण मन का गीत सुहाना सब को अच्छा लगता है जननी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्यार ही होती है देशवासियों के

गुफ़्तगू के चलते लब यूँ ही ना बेज़ार हो जाए ऐसी भी हदें ना रखो तुम के हदें पार हो जाए

मुझे नींद कहाँ आतीं हैं मेरी रातें सोतीं रहतीं हैं मैं जानता हूँ के मेरे पीठ पीछे मेरी बातें होती हैं  जब तक रहा वहाँ पर अकेला बंजर ही पड़ा रहा  अब सुनने में आता है वहाँ बरसातें होती रहतीं हैं

आवाज वादियों में रहेंगी। हर लम्हा बहुत गम्भीर हो जाता है। वह अस्पताल के रास्ते स्वर्ग जाता है। गीत, संगीत से मन ओतप्रोत करते हुए। आँख, दिल को द्रवित करने वाले शब्द। रोमांस, गम में डुबोने वाली हर आवाज

भावों के आवेग प्रबल मचा रहे उर में हलचल। कहते, उर के बाँध तोड़ स्वर-स्त्रोत्तों में बह-बह अनजान, तृण, तरु, लता, अनिल, जल-थल को छा लेंगे हम बनकर गान। पर, हूँ विवश, गान से कैसे जग को हाय ! जग

हर तरफ जिंदगी की नाकदरी है सनम,तुम्हारे लिए ही साँसें कुछ बची हैं अभी।

किसी शाम चिराग़ ना जले तो अल्फाज||सजा देना|| सुबह रोशनी देगी सबको बस ये उमीद लगा लेना| मै लिखतीं हु मै लिखतीं अन्दाज दुनिया के | तुम मुझसे दिल ना लगा लेना|| किसी शाम चिराग ना जले तो| तुम अल्फाज सजा लेन

मेरी आँखों मे हैं तेरी खुसबू मेरी सासो में ही  मेरे दिल को घायल कर जाए ऐसी अदा तेरी बातो में है

Jivan kya hai? kuch Rangeen, kuch Rangheen Kahin Barish Ki bunde To kahin Sakta dhup Jivan kya hai? Jivan roop hai, Arup bhi Sundar hai toh Kahin Kurup bhi Kahin Chhaya,

तुम्हें पता है, मैं अब भी बिलकुल वैसा ही हूँ जैसा तुम छोड़ कर गयी थी मुझे, ज़रा भी बदलाव नहीं आया है मुझमें मैं आज भी कहीं जाते वक़्त वैसी ही साइड वाली मांग निकालता हूँ जैसी तुम्हें पसं

शिलान्यास सी  खड़ी  एक नार अपने समय की  प्रतीक्षा कर  आज भी जड़ है  अपने चेतन मन के अंतर में  कब होगा  उसका भी प्रादुभाव पुरषों की इस विसंगति में           (राम)  उद्धारक केवल तुम बने  अनुसरण हुई केवल

नांदी दोहा - बहु बकरा बलि हित कटैं, जाके। बिना प्रमान। सो हरि की माया करै, सब जग को कल्यान ।। सूत्रधार और नटी आती हैं, सूत्रधार : अहा हा! आज की संध्या की कैसी शोभा है। सब दिशा ऐसा लाल हो र

अतिरोचक गद्य और पद्य में श्री राम जी की बाल लीला। भारत भूषण भारतेन्दु श्री हरिश्चन्द्र कृत जिस को हिन्दी भाषा के प्रेमी तथा रसिकजनों के मनोविलास के लिये क्षत्रियपत्रिका सम्पादक म. कु. बाबू रामदीन सि

((सं1936) (इन्दर सभा उरदू में एक प्रकार का नाटक है वा नाटकाभास हैऔर यह बन्दर सभा उसका भी आभास है।) आना राजा बन्दर का बीच सभा के, सभा में दोस्तो बन्दर की आमद आमद है। गधे औ फूलों के अफसर जी आमद आमद

संवत् 1932 महाकवि विशाखदत्त का बनाया मुद्राराक्षस स्थान-रंगभूमि रंगशाला में नान्दीमंगलपाठ भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुरस अथोर। जयति अपूरब धन कोऊ, लखि नाचत मन मोर । 'कौन है सीस पै'? '

स्थान-बुभुक्षित दीक्षित की बैठक (बुभुक्षित दीक्षित, गप्प पंडित, रामभट्ट, गोपालशास्त्री, चंबूभट्ट, माधव शास्त्री आदि लोग पान बीड़ा खाते और भाँग बूटी की तजबीज करते बैठे हैं;  इतने में महाश कोतवाल अर्थ

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