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रंगमंच

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स्थान-विल्वमठ। पुरश्री के घर का एक कमरा (तुरहियाँ बजती हैं। मोरकुटी का राजकुमार अपने सभासदों के सहित और पुरश्री, नरश्री और अपनी दूसरे सहेलियों के संग आती है।) मोरकुटी : मेरी रंगत देखकर मुझसे घृणा न

(बसन्त और शैलाक्ष आते हैं) शैलाक्ष : छः सहस्र मुद्रा-हूँ। बसन्त : हाँ साहिब-तीन महीने के वादे पर। शैलाक्ष : तीन महीने का वादा-हूँ। बसन्त : और इसके लिये, जैसा कि मैं आप से कह चुका हूँ, अनन्त जामिन

स्थान-विल्वमठ में पुरश्री के घर का एक कमरा (पुरश्री और नरश्री आती हैं) पुरश्री : नरश्री मैं सच कहती हूँ कि मेरा नन्हा सा जी इतने बड़े संसार से बहुत ही दुःखी आ गया है। नरश्री : मेरी प्यारी सखी यह बात

स्थान-वंशपुर की सड़क (अनन्त, सरल और सलोने आते हैं) अनन्त : सचमुच न जाने मेरा जी इतना क्यों उदास रहता है, इससे मैं तो व्याकुल हो ही गया हूँ पर तुम कहते हो कि तुम लोग भी घबड़ा गए। हा, न जाने यह उदासी कै

सन् 1874 ई. श्री नारायण उपाध्याय के पुत्र श्री कवि कांचन का बनाया हिन्दी भाषा के रसिकों के आनन्दार्थ श्री हरिश्चन्द्र ने मूल गद्य के स्थान में गद्य और छन्द के स्थान में छन्द में अनुवाद किया। बनारस म

(राजा और बिदूषक आते हैं) राजा : अहा! ग्रीष्म ऋतु भी कैसा भयानक होता है! इस ऋतु में दो बातैं अत्यन्त असह्य हैं-एक तो दिन की प्रचण्ड धूप, दूसरे प्यारे मनुष्य का वियोग। विदू. : संसार में दो प्रकार के म

स्थान राजभवन (राजा और विदूषक आते हैं) राजा : (स्मरण करके)। उसकी मधुर छबि के आगे नया चन्द्रमा, चम्पे की कली, हलदी की गांठ, तपाया सोना और केसर के फूल कुछ नहीं हैं। पन्ने के हार और मालती की माला से शोभ

स्थान राजभवन (राजा और प्रतिहारी आते हैं) प्र. : इधर महाराज इधर। राजा : (कुछ चलकर सोच से) हा! उस समय यह यद्यपि कुच नितम्ब भार से तनिक भी न हिली, परन्तु त्रिबली केतरंग भय श्वास से चंचल थे, और गला त

स्थान: राजभवन (राजा, रानी, विदूषक और दरबारी लोग दिखाई पड़ते हैं) राजा : प्यारी, तुम्हें बसन्त के आने की बधाई है, देखो अब पान बहुत नहीं खाया जाता, न सिर में तेल देकर कस के गूंधी जाती है, वैसे ही चोली

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पल दो पल ‌की शायरी , तीन शब्द की डायरी , मेरी पहचान तो नहीं , हिसाब में समय जोड़ जाना , समय का प्रेमी हूं , उड़ जाऊंगा , कल लौट कर जरूर आऊंगा , किताब पढ़ने - लिखने, हो सके तो शब्द जोड़ने सीखने

बहकता हूँ मैं जब-तब अब, सँभलना सीख लेता  हूँ,मैं ज़रा मुस्कुराकर बस ,दिलो❤️ को जीत लेता हूँ।हिन्दी लेखन...🙏

"संघर्ष करने वालो को या तो जीत मिलेगी या जीत का रास्ता, संघर्ष कभी हारता नही है।"मुश्किलें लाख रोके रास्ता भले तुम्हारा मगरकाम कोई ऐसा नही जो हौसलें कर न सकें,पथ कठिन जरूर होता है कई मर्तबा यहाँ,

बेशक़ फिर से गिरा लो मुझको,चलो तुम थोड़ा और सतालो मुझको,मगर मानो मैं बेफिक्र सा रहता हूँ अब,तुम चाहो तो फिर से आजमा लो मुझको।गगन शर्मा...✍️हिंदी लेखन।

Alok a Religion Flag of India yeh story alok naam ke ak sautele bete par Aadharit hai. Jo bachpan se apne pita aur Sauteli maa ke Durvyavahar aur Atyachar se pidit rehta hai. Alok ki ak Bhumi Naam ki

रंगमंच का परदा गिर गया। तारा देवी ने शकुंतला का पार्ट खेलकर दर्शकों को मुग्ध कर दिया था। जिस वक्त वह शकुंतला के रुप में राजा दुष्यन्त के सम्मुख खड़ी ग्लानि, वेदना, और तिरस्कार से उत्तेजित भावों को आग्

इधर एक मुद्दत से रामलीला देखने नहीं गया। बंदरों के भद्दे चेहरे लगाये,आधी टाँगों का पाजामा और काले रंग का ऊँचा कुरता पहने आदमियों को दौड़ते, हू-हू करते देख कर अब हँसी आती है; मजा नहीं आता। काशी की लील

मातृ-प्रेम, तुझे धान्य है ! संसार में और जो कुछ है, मिथ्या है, निस्सार है। मातृ-प्रेम ही सत्य है, अक्षय है, अनश्वर है। तीन दिन से सुखिया के मुँह में न अन्न का एक दाना गया था, न पानी की एक बूँद। सामने

मेरे हौंसलों की ख्वाहिशें ले नया कोई मोड़ ले,मंज़िले अभी दूर है , हमें तू रास्तों में रोक ले,एक बार जो निकल गयातेरे हाथ से ये आसमां(गगन)फिर हाथ में न आएगा,एक बार फिर से सोच ले,मंज़िले अभी दूर ह

हर तरफ़ था शोर सा,पर मैं रहा खामोश सा,वो सुन रहे थे अपनो की,तो मैं तो ठहरा गैर सा....सुन्न सा रहा सब सह गया,मैं कुछ हो गया मजबूत सा,वो सुन रहे थे उनकी हीतो मैं भला क्या बोलता....हर तरफ़ था शोर सापर मैं

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