डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन
इस किताब में केवल एक ही रचना है। उम्मीद करता हूँ सबको पसंद आएगी।
मेरे गांव मे , तेरे गांव मे , मेरे कसबे मे तेरे कसबे मे , मेरे शहर मे तेरे शहर मे बहुत लोग होंगे जो कभी जहाज़ मे नहीं बेठे . जहाज़ मे बेठने का किस का मन नहीं करता पर गरीब इंसान कैसे जहाज़ मे सफर करे . कैसे वो भी अमीर लोगों की तरह जहाज़ मे एक शहर से दुसर
ख्यालों में ही गुजर कर ली हमने "ताउम्र" कुछ ही बची है । अब आ भी जाओ रूबरू कर दे , इक बार दिल को । रस्म ए दीदार अभी बाकी है । ✍️ज्योति प्रसाद रतूड़ी 🙏मुझे आशा है की "दिल की आवाज़" आपको पसंद आयेगी ।
आप और हम जीवन के सच में मन भाव और विचार का मंथन है बस एक कल्पना के साथ हम सभी जीते है
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' टीकमगढ़ (मप्र) भारत के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार की तीसरा हाइकु संग्रह में पढ़िए हिन्दी के नवरचित हिन्दी हाइकु। इसके पूर्व राना लिधौरी के 1-रजनीगंधा ( हिंदी हाइकु संग्रह) सन्-2008 एवं 2 - 'नोनी लगे बुंदेली'(बुंदेली हाइकु सं
प्रकृति के तत्वों से बना है शरीर जिसका आधर ही पंच तत्व है देखा जाए तो इन पाँच मुख्य तत्वो के आलावा और भी तत्व है जो इन तत्वों के ही दूसरे रूप है जैसे जल तत्व का दूसरा रूप है बर्फ जैसे आग से बनी है राख या आग की तरह जलता सूरज जैसे आकाश का अंग है ब
श्रीमान सादर नमस्कार मुझे बचपन से लिखने का बहुत शौक था इसलिए मैंने हमेशा खाली समय को व्यर्थ नहीं जाने दिया कुछ ना कुछ अवश्य लिखता रहा जो कि आज एक बड़ी संख्या बन चुकी हैं मैं चाहता हूं आप से जुड़कर अपनी कविताएं पब्लिक प्लेटफॉर्म में प्रमोट कर सकूं ज
प्रेम की वेदी प्रेमचंद का एक सामाजिक नाटक है। वैसे तो प्रेमचंद मूलतः उपन्यासकार, कहानीकार हैं, लेकिन उन्होंने कुछ नाटक भी लिखे हैं। प्रेमचंद स्वभावतः सामाजिक-चेतना के लेखक हैं। यही सामाजिक-चेतना उनकी रचनाओं में अलग-अलग रूप में चित्रित हुई है। प्रेम क
एक ऐसी लड़की की कहानी जिसने अपने पिता का मान रखने के लिए अपने प्यार को ठुकरा दिया और साध्वी बनकर समाज के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनी ।।
श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत
राजीव नामदेव राना लिधौरी टीकमगढ़ (मप्र) की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़िएगा
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।''
अधखिला फूल "अधखिला फूला उपाध्याय जी का दूसरा सामाजिक उपन्यास है है देवहूती एक विवाहित स्वी है । उसका पति देवस्वरूप संसार से विरक्त रहते के कारण कहीं बाहर चला जाता है । कहने की आवश्यकता नहीं कि आज के पाठक को यह भाषा कुछ कृत्रिम-सी लगेगी । सिर भी ऐसा न
नीहार महादेवी वर्मा का पहला कविता-संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् १९३० ई० में गाँधी हिन्दी पुस्तक भण्डार, प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने लिखी थी। इस संग्रह में महादेवी वर्मा की १९२३ ई० से लेकर १९२९ ई० तक के
ये कहानी है एक जादुई तितली रंगीली और उसके दोस्त टीनू की
इस पुस्तक में कविता व लेख दोनों सम्मिलित हैं। यह भविष्य हेतु दिग्दर्शिका की भाँति है।
श्रीधर पाठक (११ जनवरी १८५८ - १३ सितंबर १९२८) प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापत