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सामाजिक

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घर के बाहर कोने में लगे बेला और गुलाब को मैंने एक साथ बो दिया था। जहां तक मुझे स्मरण आता है। मैंने कभी सफेद गुलाब का पौधा नहीं रोपा। मुझे लाल और गुलाबी गुलाब ही सदा से लुभाते रहे हैं। सच्चाई तो यह है

नीतामुनि हर साल की भांति इस साल भी बहुत धूमधाम से अपनी शादी की 22वीं सालगिरह मना रही थी। पति-पत्नी दोनों एक सुंदर से झूले में हाथ पकड़े बैठे थे। आने-जाने वाले लोगों का तांता लगा हुआ था।सभी लोग पति-पत

रवि और मोहन की दोस्ती बहुत  प्रगाढ़ थी। कक्षा में दोनों एक साथ ही बैठते थे। पहली कक्षा से एक साथ पढ़ते खेलते सातवीं तक आ गए थे। पढ़ने में दोनों ही बहुत अच्छे थे। सभी अध्यापक हर किसी को रवि और मोहन का उ

मैं आम का पेड़ हूँ। आज में बूढ़ा हो गया हूँ। मेरी उम्र लगभग पचपन साल की हो गयी है। टोनू मोनू के पिता के जन्म के समय उनके दादा जी ने मुझे धरती पर रोपा था। आज टोनू मोनू के पिता भी पचपन साल के हो हैं। मै

सागर और तट दोनों सहोदर है... पर दोनों में बहुत अंतर है। सागर हमेशा जल में रहता और तट हमेशा सूखा रहकर धूप में तपता था। दोनों में प्रगाढ़ प्रेम है। जब तट को प्यास लगती तो सागर उसे भरपूर पानी पिलाकर उसे

यह कहानी है काकोरा बस्ती में रहने वाली एक मात्र एम.ए तक पढ़ी लिखी लड़की मानोबी की। मनोबी का जन्म एक बहुत ही साधारण से परिवार में हुआ था। उसके पिता के पास पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त छोटा सा जमीन

दान आदि पुण्य का कार्य वही कर सकता है जिस पर प्रभु की कृपा बरसती है। यह बिल्कुल सच्ची घटना एक लघुकथा के रूप में... आप सबके साथ साझा कर रही हूँ। "श्री राम लला: मन से मंदिर तक" ऐतिहासिक पुस्तक निर्माण

पिछवाड़े के कदंब के पेड़ पर बैठा...उलूक का एक जोड़ा...आपस में बतिया रहा था। मादा ने नर से कहा...क्या तुम बता सकते हो  ? यह मनुष्य हमें घुग्घू क्यों समझता है। नर ने कहा...अरे ! सुनो तुम्हें पता है। हम

पंचोली गांव के मुहाने पर पीपल और नीम के दो बहुत पुराने वृक्ष थे...दोनों में अटूट प्यार था। दोनों के बीच की दूरी कम होने के कारण...दोनों की टहनियां एक दूसरे के गले मिलकर संवाद कर लेती थी। आज दोनों वृक्

कितने छोटे-छोटे तत्वों से बच्चों की खुशियां बंधी होती हैं...यह देख कर मन गदगद हो गया। बात उस समय की है जब मैं अपने बगीचे में टहल रही थी। सुबह का समय था। सूरज की सुनहरी किरणें मन को आनंदित कर रही थीं।

इनडीगो की फ्लाइट में वह खिड़की की तरफ बैठा था.. और मैं पीपीई किट पहन कर बीच वाली कुर्सी पर बैठी थी। यह बात 2021 की है..जब मैं दिल्ली से "डाक्टरेट की उपाधि" व "नारी शक्ति सम्मान" लेकर वापस डिब्रूगढ़ जा

आज प्रातः मैं अपने रसोईघर में सुबह की कड़क चाय बनाने में मशगूल थी...और वह पीछे के दरवाजे को जोर-जोर से खटखटा रही थी। अंदर आती और... फिर बाहर जा रही थी। उसके अंदर-बाहर...आने-जाने से जाली का दरवाजा बज र

लक्ष्मी जी को अपनी कही हुई बात पर जवाब देते हुए नहीं बना तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगीं कि "एक बात बताओ जिज्जी कि पति के साथ घूमने में भी कोई आनंद आता है क्या ? अरे, एक ही सूरत देखते देखते बोर

जिन्दगी क्या है , कभी धूप तो कभी छांव  कभी दौड़ती सी लगे तो कभी लगे ठहराव  कभी दुखों की गठरी, कभी सुखों का समन्दर  एक ही नियम है , जो जीता वही है सिकन्दर  गमों के पहाड़ हैं, ढेरों

डायरी सखि, तुमने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि सौ सुनार की और एक लुहार की । सुनी है ना । मुझे पता था , जरूर सुनी होगी । तो आज "लुहार" ने एक चोट मार ही दी । तुम ये तो जानती ही हो कि "लुहार" जब कोई च

यह प्रेम कथा है..असम के आदिवासी परिवार में जन्मी एक सोलह वर्षीय लड़की टुलुमुनि की।  जिसको प्यार सब टुलु कहते थे। एक सीधा साधा आदिवासी असमिया परिवार कोकराझार के एक छोटे से गांव में रहता था। चार बच्चों

हमेशा की तरह मालती की अपने पति अशोक के साथ पाप-पुण्य, दान आदि को लेकर बहस होती रहती थी। मालती हर शनिवार मंदिर जाकर भगवान का भोग लगाती और दान पेटी में दान आदि करती रहती थी। वह चाहती थी कि उसका पति अशोक

रॉकी मिस्टर माइक और पैगी की पालतू बिल्ली थी। वह हर समय घर के अंदर ही रहती थी। वे लोग उसे एक मिनट के लिए भी घर से बाहर नहीं जाने देते थे। पांच साल से रॉकी उनके घर की सदस्य बनी हुई है। उन्होंने उसे पूरी

वो बर्फ ही तो थी जो गिर रही थी धांय धांय। बड़े बड़े रुई के गोले सी। हाथ पैर सब सुन्न हो चुके थे। जब हम लेंकेस्टर (अमेरिका) के पार्क सिटी मॉल से बाहर निकले। जब हम लोग मॉल के अंदर गए थे। तब मौसम बिल्कु

"कही-बतकही" कहानी संग्रह की सभी कहानियां यथार्थ पर आधारित हैं। हमारे चारों तरफ बहुत सी कहानियां बिखरी पड़ी हैं।  हमें और आपको बस समेटने की आवश्यकता है। किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्यौरा ज

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