रवि लंच लेकर सो गया था । जब जागा तब तक चार बज चुके थे । हल्की हल्की बारिश हो रही थी । मौसम बड़ा सुहावना हो रहा था । आसमान पर बादल छाए हुए थे । तेज हवा के झोंकों के साथ साथ कुछ कुछ फुहारें घर के अंदर त
वो खुशनुमा सी शाम वो चांद की सरगोशियां वो झुका झुका सा आसमां और वो नदी का किनारा वो तेरा उड़ता आंचल गालों पे पड़ते तेरे डिंपल वो लरजती सी गोरी बांहें छन छन करती तेर
डायरी सखि , "क्या भूलूं क्या याद करूं" की तरह किस किस घर को याद करूं ? एक घर हो तो बताऊं , यहां तो दर्जन भर से भी अधिक घरों ने मुझे संभाला है । चलिए, आज सबको याद करते हैं । पहला घर था
चैन ओ सुकून मिलता है या तो यार की बाहों में या फिर घर की पनाहों में याद सताती है, तड़पाती है या तो यार दिलदार की या फिर घर बार की । जब तक इनका साथ है तो घबराने की क्या बा
किसी को उजाड़कर बसना, बसना नहीं होता। किसी को रुलाकर हंसना, हंसना नहीं होता। बसेरा तो बसेरा है खग-मृग या नर का हो। वन-जंगल,पेड़-पौधों या धरती-आकाश का हो। बसेरे में बसी होती है हर प्
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है । पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं । 20 सितंबर 2015 को रात के 8.45 हो रहे थे । शर्मा दंपत्ति खाना खाकर अपने घर की छत पर टहल रहे थे । अचानक गोलियां चलने की आवाजें सुन
बिहार की बरबादी का मैं ही जिम्मेदार हूं मुझे गौर से देखिए , मैं सुशासन कुमार हूं आजकल की हिंसा का मैं ही कसूरवार हूं अब तो पहचानो , मैं "सुशासन कुमार" हूं समाजवाद के नाम पर जात
परीक्षा खत्म होते ही छुट्टियां शुरू बड़ा मजा आता था छुट्टियों में गुरू गर्मी का मौसम चार चांद लगा देता घर को ही खेल का मैदान बना देता अमृत विष आंख मिचौनी खेलते थे मां बाप की डा
थोड़ा अराजक थोड़ा सा हिंसक थोड़ा लाचार हूं मुझे माफ करना भारत मैं तेरा अपना ही बिहार हूं मेरी संतति की बुद्धि पर पूरी दुनिया को नाज है मेरे नौजवानों की आसमानों से ऊंची परवाज है "ना
रंजना अपने दिल्ली प्रवास की तैयारी करते हुए बहुत खुश थी, क्योंकि दिल्ली में उसके अपने बहुत खास मित्र रहते थे। उसने सोचा दिल्ली जाने से एक पंथ दो काज हो जाएंगे। अपने संस्थान का कार्य भी होगा और अपने वि
प्रतापगढ़ के राजा महेंद्र सिंह के पास के बहुत ही सुन्दर घोड़ी थी। राजा ने उसका नाम अश्विका रखा था। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये थे। वह घोड़ी राजा के लिए पूर्णतः वफादार थीI राजा और
मुंह में मिठास घोल, गले लगकर अपनापन जताते हैं काम पड़ने पर ऐसे लोग, कहीं दूर खड़े नजर आते हैं खून के रिश्तों से ही कोई अपना नहीं हो जाता है "हरि"अपने तो वो हैं जो जरूरत के समय साथ नजर आते है
मन में विचारों का तूफान सा उठा है दिल में जज्बातों का कोहराम मचा है दिमाग फंस गया है समस्याओं के भंवर में झंझावातों से ये मन अशांत हो गया है जीवन में आंधी तूफान जब भी आते हैं&n
जब मन होता हैं, तो ना जाने क्या क्या लिख देता हूॅं। भोर की पीली किरण को चांद की चादनी में बदल देता हूॅं। मन की दशा को प्रकृति के साथ मिलाकर उजागर कर देता हूॅं। ना जाने कि
आज फिर से सुनाओ ना अपनी हसरतों का फसाना नजरें चुराकर नजरों से शरमाकर कुछ कह जाना पलकों से पैगाम भेजकर दिल के आंगन में बुलाना खामोशियों की चादर ओढ हाल ए दिल बत
मेरी कहानियां यथार्थ पर आधारित होती है इसलिए मैं हर किसी से बात करके अपनी कहानियां ढूंढती हूँ । दिल्ली प्रवास के दौरान एक टैक्सी में सफर करते हुए विनोद कुम्हार नाम के टैक्सी चालक ने अपने बचपन के पालन
लोग अपने दिलों में नफरतों का लावा भर रहे हैं पत्थर के रूप में ज्वालामुखी के फूल झर रहे हैं इंसानियत से बहुत बड़ा बना दिया है मजहब को मानव का वेश धर के यहां वहां दानव विचर रहे हैं&nbs
*"एक अनार और सौ बीमार"* *या* *"सौ अनार और एक बीमार"* "एक अनार और बीमार" - यह लोकोक्ति एक विशेष प्रका
गाय और कुत्ते की रोटी मेरी मां अनपढ़ थीं शायद इसीलिए पहली रोटी गाय की और आखिरी कुत्ते के लिए बनातीं थी । भगवान को बहुत मानती थी। मैं सोचता हूं कि शायद अनपढ़ लोग भगवान को ज्यादा मानते हैं अन्यथा प
आज भी जब वह घटना याद आती है तो मन डर से भर जाता है और साथ ही हंसी भी आती है। यह बात उस समय की जब मैं कक्षा दसवीं में पढ़ती थी। हमारी पड़ोस में एक शर्मा परिवार रहता था। शुगर फैक्ट्री का कैंपस था। लगभ