भारत की नई उमंगे भारत की नई आकांक्षाएं एक समृद्ध भारत की नई ऊंचाइयों हर कोई देश प्रभावित है भारत एक विकासशील देश है और विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से भी एक है जोकि वर्ल्ड की तीसरी अर्थव्यवस्था अब बनने वाला है कोरोना काल में भा
एक स्थान पर जीर्णधन नाम का बनिये का लड़का रहता था । धन की खोज में उसने परदेश जाने का विचार किया । उसके घर में विशेष सम्पत्ति तो थी नहीं, केवल एक मन भर भारी लोहे की तराजू थी । उसे एक महाजन के पास धरोहर रखकर वह विदेश चला गया । विदेश स वापिस आने के बाद
मेरे आलफ्ज खुद से स्मपर्ण है।। मेरे आज्फाज कुछ समझ पाये। तो कुछ समाज में समझ बैठे। क्या बताऊ थे शब्द बया करते हो। सुना है कि दिल से कि दुआ जो क की करता दुआ जरूर कबुल होगी पर आज तक ना मेरै हुए ना य मेरी जान त अपनो के लिए। दुआ मेरी सब खराब हुई।।।
कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। ऐसी ही एक लालायित औरत की कहानी है 'ज़िंदगी के रंग कई रे'
पारिजात में मेरे द्वारा लिखी कुछ कविताओं का संकलन है जो कल्पना के विमान से यथार्थ की भूमि पर उतरता है!!!
यह पुस्तक 'मन द्वार ' एक दर्पण कि भांति पाठक के मन में एक काल्पनिक सुंदर छवि बनाने के लिए पूरी तरह से समर्पित है इस पुस्तक कि केवल उदेश्य यही है कि पाठक के मन में स्वस्थ विचार का संचार हो।
यह मेरा पहला काव्य संग्रह है आशा आप लोगो को यह अवश्य पसंद आएगा,और इसे आपका भरपूर स्नेह मिलेगा। यह संग्रह मैं अपने कुछ अनुभवों और हिन्दी काव्य के प्रति प्रेम से प्रेरित होकर लिखा है।
व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला
क्या हमनें जो सुना हैं, देखा हैं, पुरानी लिखित कलाकृति, चित्र, मूर्ति, और यह सब जो बताना चाहतीं हैं और हम जो इन्हें देख कर अनुमान लगाते हैं वह सच हैं।
महाभारत के इस पात्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती कविता
यह हमारी एक कविता का शीर्षक है जिस कविता को हम बाजार नाम से प्रकाशित करना चाहते हैं, 5 भाग है जो आप सबके सामने सब दिन पर हम लिखकर अपनी रचनाओं का संकलन आप सबके सामने पेश करते हैं।
संकट के पुष्पक पर आई जिसकी पुण्य-साध की वेला! अपने पागलपन में, बेदी पर शिर जो उतार आता है ! उसकी साँस-साँस में, कसकें--'महासांस' की 'साँसें' सारी । वह अरमानों का अपनापन जी की कसकों की ध्वनि-धारा हैं |
वेणु लो गूँजे धरा, माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखित कविता है. तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। विश्व-शिशु करता रहा प्रण-वाद जब तुमसे। क्यों विकास करे भड़कता हैं |
आज कल हर कोई एक दूसरे के पीछे लगा हुआ हैं.... सबको एक दूसरे में कमियाँ और खामियां ढूंढने की आदत लग चूकी हैं..... लेकिन क्या कभी खुद से खुद की मुलाकात की हैं.....!!!! इंसान की इसी फितऱत को दर्शाता हैं मेरा यह छोटा सा लेख...।।।।।।।।
मेरी यह किताब कोशिश है कूछ ज्ज्बात दिल के बया करने का, कूछ नज्म, शेरो शायरी, गजल और कविताएँ, आशा है आपको पसंद आएगा, अगर हाँ, तो जरूर बताएगा ।
इस पुस्तक मे आपको मेरी रचनाए मिलेगी जो भक्ति, ब्रेकअप और मोटिवेशनल होगा मेरी जीवन यात्रा भी अवलोकन होगा।