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सिपाही

18 अप्रैल 2022

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गिनो न मेरी श्वास,

छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?

भूलो ऐ इतिहास,

खरीदे हुए विश्व-ईमान !!

अरि-मुड़ों का दान,

रक्त-तर्पण भर का अभिमान,

लड़ने तक महमान,

एक पँजी है तीर-कमान!

मुझे भूलने में सुख पाती,

जग की काली स्याही,

दासो दूर, कठिन सौदा है

मैं हूँ एक सिपाही !

क्या वीणा की स्वर-लहरी का

सुनूँ मधुरतर नाद?

छि:! मेरी प्रत्यंचा भूले

अपना यह उन्माद!

झंकारों का कभी सुना है

भीषण वाद विवाद?

क्या तुमको है कुस्र्-क्षेत्र

हलदी-घाटी की याद!

सिर पर प्रलय, नेत्र में मस्ती,

मुट्ठी में मन-चाही,

लक्ष्य मात्र मेरा प्रियतम है,

मैं हूँ एक सिपाही !

खीचों राम-राज्य लाने को,

भू-मंडल पर त्रेता !

बनने दो आकाश छेदकर

उसको राष्ट्र-विजेता

जाने दो, मेरी किस

बूते कठिन परीक्षा लेता,

कोटि-कोटि `कंठों' जय-जय है

आप कौन हैं, नेता?

सेना छिन्न, प्रयत्न खिन्न कर,

लाये न्योत तबाही,

कैसे पूजूँ गुमराही को

मैं हूँ एक सिपाही?

बोल अरे सेनापति मेरे!

मन की घुंडी खोल,

जल, थल, नभ, हिल-डुल जाने दे,

तू किंचित् मत डोल !

दे हथियार या कि मत दे तू

पर तू कर हुंकार,

ज्ञातों को मत, अज्ञातों को,

तू इस बार पुकार!

धीरज रोग, प्रतीक्षा चिन्ता,

सपने बनें तबाही,

कह `तैयार'! द्वार खुलने दे,

मैं हूँ एक सिपाही !

बदलें रोज बदलियाँ, मत कर

चिन्ता इसकी लेश,

गर्जन-तर्जन रहे, देख

अपना हरियाला देश!

खिलने से पहले टूटेंगी,

तोड़, बता मत भेद,

वनमाली, अनुशासन की

सूजी से अन्तर छेद!

श्रम-सीकर प्रहार पर जीकर,

बना लक्ष्य आराध्य

मैं हूँ एक सिपाही, बलि है

मेरा अन्तिम साध्य !

कोई नभ से आग उगलकर

किये शान्ति का दान,

कोई माँज रहा हथकड़ियाँ

छेड़ क्रांन्ति की तान!

कोई अधिकारों के चरणों

चढ़ा रहा ईमान,

`हरी घास शूली के पहले

की'-तेरा गुण गान!

आशा मिटी, कामना टूटी,

बिगुल बज पड़ी यार!

मैं हूँ एक सिपाही ! पथ दे,

खुला देख वह द्वार !!

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रचनाएँ
हिमकिरीटिनी
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इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर बलिदान होने वालों पर डालने के लिए माली से अपनी इच्छा प्रकट कर रहा है।
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नव स्वागत

18 अप्रैल 2022
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तुम बढ़ते ही चले, मृदुलतर जीवन की घड़ियाँ भूले, काठ छेदने लगे, सहस दल की नव पंखड़ियाँ भूले; मन्द पवन संदेश दे रहा, ह्रदय-कली पथ हेर रही, उड़ो मधुप ! नन्दन की दिशि में ज्वालाएं घर घेर रहीं; तरुण तप

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घर मेरा है

18 अप्रैल 2022
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क्या कहा कि यह घर मेरा है? जिसके रवि उगें जेलों में, संध्या होवे वीरानों मे, उसके कानों में क्यों कहने आते हो? यह घर मेरा है? है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद द

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जवानी

18 अप्रैल 2022
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प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी ! कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी? चल रहीं घड़ियाँ, चले नभ के सितारे, चल रहीं नदियाँ, चले हिम-खंड प्यारे; चल रही है साँस, फिर तू ठहर जाये? दो सदी पी

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कैदी और कोकिला

18 अप्रैल 2022
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क्या गाती हो? क्यों रह-रह जाती हो? कोकिल बोलो तो! क्या लाती हो? सन्देशा किसका है? कोकिल बोलो तो! ऊँची काली दीवारों के घेरे में, डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में, जीने को देते नहीं पेट भर खान

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सिपाही

18 अप्रैल 2022
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गिनो न मेरी श्वास, छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान? भूलो ऐ इतिहास, खरीदे हुए विश्व-ईमान !! अरि-मुड़ों का दान, रक्त-तर्पण भर का अभिमान, लड़ने तक महमान, एक पँजी है तीर-कमान! मुझे भूलने में सुख पाती,

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गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे

18 अप्रैल 2022
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सूझ ! सलोनी, शारद-छौनी, यों न छका, धीरे-धीरे ! फिसल न जाऊँ, छू भर पाऊँ, री, न थका, धीरे-धीरे ! कम्पित दीठों की कमल करों में ले ले, पलकों का प्यारा रंग जरा चढ़ने दे, मत चूम! नेत्र पर आ, मत जाय

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मैं अपने से डरती हूँ सखि

18 अप्रैल 2022
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मैं अपने से डरती हूँ सखि ! पल पर पल चढ़ते जाते हैं, पद-आहट बिन, रो! चुपचाप बिना बुलाये आते हैं दिन, मास, वरस ये अपने-आप; लोग कहें चढ़ चली उमर में पर मैं नित्य उतरती हूँ सखि ! मैं अपने से डरती ह

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उपालम्भ

18 अप्रैल 2022
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क्यों मुझे तुम खींच लाये? एक गो-पद था, भला था, कब किसी के काम का था? क्षुद्ध तरलाई गरीबिन अरे कहाँ उलीच लाये? एक पौधा था, पहाड़ी पत्थरों में खेलता था, जिये कैसे, जब उखाड़ा गो अमृत से सींच

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कुंज कुटीरे यमुना तीरे

18 अप्रैल 2022
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पगली तेरा ठाट! किया है रतनांबर परिधान, अपने काबू नहीं, और यह सत्याचरण विधान! उन्मादक मीठे सपने ये, ये न अधिक अब ठहरें, साक्षी न हों, न्याय-मंदिर में कालिंदी की लहरें। डोर खींच, मत शोर मचा, मत

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सौदा

18 अप्रैल 2022
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 चांदी-सोने की आशा पर, अन्तस्तल का सौदा  हाथ-पांव जकड़े जाने को, आमिष-पूर्ण मसौदा ?  टुकड़ों पर जीवन की श्वासें ? कितनी सुन्दर दर है !  हूँ उन्मत्त, तलाश रहा हूँ कहाँ वधिक का घर है?  दमयन्ती के 'एक

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स्वागत

18 अप्रैल 2022
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'जय हो !' उषाकाल है बच्चे सोये, स्वागत कौन करे ? चरणों में मेरी कालिन्दी की, अर्पित काली लहरें । भूत काल का गौरव, भावी की उज्जवल आशाएँ ले, लाट, किला, मीनार, सभी को अपने दाएँ-बाएँ ले, इस तट पर

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वरदान या अभिशाप?

18 अप्रैल 2022
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कौन पथ भूले, कि आये ! स्नेह मुझसे दूर रहकर कौनसे वरदान पाये? यह किरन-वेला मिलन-वेला बनी अभिशाप होकर, और जागा जग, सुला अस्तित्व अपना पाप होकर; छलक ही उट्ठे, विशाल ! न उर-सदन में तुम समाये।

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