तुम बढ़ते ही चले, मृदुलतर जीवन की घड़ियाँ भूले,
काठ छेदने लगे, सहस दल की नव पंखड़ियाँ भूले;
मन्द पवन संदेश दे रहा, ह्रदय-कली पथ हेर रही,
उड़ो मधुप ! नन्दन की दिशि में ज्वालाएं घर घेर रहीं;
तरुण तपस्वी ! आ, तेरा कुटिया में नव स्वागत होगा,
दोषी तेरे चरणों पर, फिर मेरा मस्तक नत होगा ।