'जय हो !' उषाकाल है बच्चे सोये, स्वागत कौन करे ?
चरणों में मेरी कालिन्दी की, अर्पित काली लहरें ।
भूत काल का गौरव, भावी की उज्जवल आशाएँ ले,
लाट, किला, मीनार, सभी को अपने दाएँ-बाएँ ले,
इस तट पर बैठी-बैठी मैं व्याकुल बिता रही घड़ियाँ,
चिन्तित थी ये बिखर न जायें, वन-कुसुमों की पंखुड़ियाँ ?
यमुना का कलरव दुहराकर, कब से स्वागत गाती हूँ,
हरि जाने स्वागत गाती हूँ, या सौभाग्य बुलाती हूँ ।
देवि ! तुम्हारे पंकज-कुसुमों से दुधिया खिलना सीखे !
वीणा से, मेरी टूटी वीणा का स्वर मिलना सीखे।
हो अंगुलि-निर्देश, जरा मैं भी मिजराव लगा पाऊँ,
लाओ पुस्तक, विश्व हिलाऊँ, कोई करुण गीत गाऊँ ।
लजवन्ती को लज्जित करती हैं, हा-हा मेरी गलियां
चढ़ने को तैयार नहीं, सकुचाती हैं सुन्दर कलियां