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स्त्री-विमर्श

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नारी को परिभाषित करने के लिएकोई नाम की नहीं जरूरतनारी तो है प्रेम त्याग की मूरतआपनेआप मे नारी है सम्पूर्णअधिकार बस मिल नहीं पाते पूर्णजहा हर कामयाबी को छु जातीपर अपनो के आगे हार जातीतरस जाती जरा से सम

कैसा ये मंज़र सारा है ऐसा क्यों आस पास नज़ारा हैक्यों दुनिया ऐसी सारी हैलडको पर ना कोई बंदिशेलड़कियों पर पाबन्दी जारी हैएक तरफ  रूप देवी धारी हैहर तरफ मिलती सिर्फ लाचारी हैना कुछ करने क

क्यों कोई मेरा हो हकदारमेरी जंदगी पर क्यों हो किसीऔर का अधिकारना साथ निभाए , ना छोड़ना चाहेजो मेरा दिल चाहे ना करने देरोज नया गम देता ना जीने दे ना मरने देख्वाबों की दुनिया मेरी उजाड़ीखुशियां छीन ली स

शदियों से औरत के लिए ही सारी प्रथाऔरत की क्यों है ऐसा दशासदा औरत को किया गया कुर्बानकुचले गए हर औरत के हीअरमानकभी सती बन जिंदा जलीकभी अग्निपरीक्षा मिलीकभी हुआ भरे दरबार मे अपमानचीरहरण का सहा

जाने क्यों ये रीत बनाईविधवा जीवन में एक औरत कोमिले सिर्फ रुसवाईईश्वर ने रंग बनाए अनेकजीवन का रंग दे दिया जाताक्यों उनको सफेदसजने का छीन जाता अधिकारजीवन जीती है जैसे मिला कोई श्रापबेरंग जीवन जीने की हो

भयानक वो रात डर का था साया उन दरिंदों की नज़र मेंआ गई मेरी कायाहाल अपना अब जो बता रही हूंलम्हा लम्हा जीकर भी घुट घुट मरती है रही हूंकिया मुझे बर्बाद वो इंसान की शक्ल में थे हैवानमेरी अस्मिता

क्यों लिंग परीक्षण का चला ये चलनक्यों भूर्ण हत्या से करे नष्ट जीवनवंश की लालसा में बने नारी ही नारी की दुश्मनकैसे एक मासूम की कर हत्या संतुष्ट होता उसका मनभुर्ण हत्या के ना बनो भागीदारना बनना इस पाप क

दिल में बस जाती बनकर मुहब्बतहर रूप में औरत प्यार ममता की मूरतरिश्तों को संजोती मन मेंबनाकर जैसे आंचल हो चांद सितारेसहेजे हर लम्हे को जैसे मिलेउसे जन्नत के नज़ारेहर दर्द ओ ग़म को दिल में छुपाकरचेहरे पर

ग्राहक की आशा में खड़ी उस लड़की को जब कुछ और देर इंतजार करने के बाद भी कोई ग्राहक नहीं मिला तो वह दूर खड़ी मेरी गाड़ी को देख इसी तरफ बढ़ने लगी।मेरी गाड़ी के दाहिने तरफ आकर उसने खिड़की को खटखटाया। उसे

जब टूटा गुरुर भाग 7    कमरे से निकलकर कामिनी सीधे हाल में आ गई शेखर अभी-अभी हाल में दाखिल हुआ था वह कामिनी को देखकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ा और उनके पैरों में झुक गया। कामिनी आज खुशी से मुस्क

यथार्थ को शब्दों के माध्यम से पृष्ठों पर उकरने के लिए ना जाने इस बार मैंने कितनी ही कोशिशें की, पर शायद मंतव्य मेरा पूर्ण नहीं हो पाया।मैं एक साहित्यकार हूं कहना गलत होगा, पर एक मनमौजी हूॅं मेरा यही प

जब टूटा गुरुर   भाग 6 " मुझमें हिम्मत की कमी नहीं है मधु यह तुम भी जानती हो मैं अपने घर वालों से बहुत प्यार करता हूं मेरी मां और भैया ने बहुत कठिनाइयों भरे दिन देखें हैं उन्होंने मेरी खुशिय

जब टूटा गुरुर  भाग 5   उधर  अपनी भाभी की बात सुनकर शेखर परेशान हो गया उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई देने लगीं उसको परेशान देखकर मधु ने पूछा " शेखर क्या हुआ भाभी ने क्या कहा जिसे स

मै बनकर सरिता सी बहना चाहूं जैसे निभाए सरिता निस्वार्थ रिश्ते मै भी रिश्तों को वैसे ही जीना चाहूं सरिता संग अपने आंचल में बहा ले जाए जैसे रेत कंक्कड़ पौधे नन्हे से जीव सारे लगते यूज़ए सब अपने और प्य

जब टूटा गुरुर भाग 4   " छोटी बहूरानी आप क्या कह रही हैं शेखर बेटवा ने दूसरी शादी कर ली है वह भी बिना किसी को बताए यह हो ही नहीं सकता आपको जरूर कोई गलतफहमी हुई है शेखर बेटवा ऐसा कर ही नहीं सकते" द

जब टूटा गुरुर भाग 3   कामिनी का थप्पड़ खाते ही आराधना जैसे नींद से जाग गई उसने चौंककर कामिनी की ओर देखा फिर दर्द भरी मुस्कुराहट के साथ कहा "भाभी और मारिए यह दर्द तो कुछ भी नहीं है उस दर्द के आगे

स्त्री यदि बहन हैतो प्यार का दर्पण है |स्त्री यदि पत्नी हैतो खुद का समर्पण है |स्त्री अगर भाभी हैतो भावना का भंडार है |मामी मौसी बुआ हैतो स्नेह का सत्कार है |स्त्री यदि काकी हैतो कर्तव्य की साधना है|स

जब टूटा गुरूर भाग 2   " आराधना दरवाजा खोलो जब-तक तुम कुछ कहोगी नहीं हमें कैसे पता चलेगा कि, मधु के घर पर ऐसा क्या हुआ जिसने तुम्हारी यह हालत कर दी तुम्हारी मां का फोन आया था उन्होंने मुझे बताया क

      माँ संवेदना हैं, भावना हैं, अहसास हैं माँमाँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास हैं माँमाँ रोते हुए बच्चें का खुशनुमा पलना हैं माँमाँ मरुथल में नदी या मीठा सा झरना हैं माँमाँ लोर

जिंदा तो हर औरत में है लेकिन जन्म बच्चे के साथ ही लेती हैअद्वितीय सी शक्ति स्वयं अपने आप में भर लेती हैनौ महीनों के अकल्पनीय अकथनीय अहसास जब उसके शिशु के रूप में बाहर निकलते हैंउसके सुबह-शाम दिनरात पू

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