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स्त्री-विमर्श

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औरत की सुंदर देह पर जो दिल आया प्रेम नहीं ये तो वासना का होता साया सुंदरता देख जो दिल लगाया प्रेम न उसे समझ आया सुंदरता से प्रेम का जब होता आगाज़ बिस्तर तक पहुंचते खत्म हो जाता ऐसा प्यार नज़रे जो दे

आखरी बार देखा गयाऐसा हुआ ना हो पायाएक औरत ने अपनों के खातिरअपनी ख्वाहिशों को ना हो दफनायाअपनो के खातिर ही जीती हैअपनो को खुशी में उसकी खुशियां होती हैकब आखरी बार देखा गया स्वतंत्रता से अपना जीवन

काश मैं दूबारा  मां बन पाती सावित्री का बेटा-बहू दोनों पढ़े - लिखे ऊंचे ओहदे पर कार्यरत, शादी को पांच साल हो गए लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं, दोनों कहते हैं कि अभी उन्हें अपना करियर बनाना है,

खोल दिया साहब राशिद खान को जैसे ही स्ट्रेचर से उतारकर रखा उसके जिस्म में दर्द की लहर उठी, उसे लगा जैसे किसी ने उसके जिस्म की एक-एक हड्डी तोड दी हो, हिलना-डुलना बहुत मुश्किल लग रहा था, फिर भी हिम्

आखिर ऐसी भी क्या होती हैउन मासूम की खताजो जन्म से पहले ही मिल जातीउन्हे मौत की सज़ाखिलने से पहले ही कलियां ये मुरझा दी जाती हैबेटियां नहीं बोझ जोकोख में ही मार दी जाती हैउनको भी मिले जीने का अधिक

कल तक थी जो अल्हड़ वो नादानएक रिश्ते से जुड़करबदल जाती क्यों पहचानकहने को तो कह देतेजैसे चाहे तुम रहनापढ़ना लिखना पहचान बनाते तुम रहनारिश्ता ये ना होगा बंधनपूरे कर लेना अरमानआखिर है तो तुम्ह

भयानक वो बाल विवाह की लहरबचपन पर बरसाए कहरजिसमे मासूम का बचपन जलाखिलने से पहले तोड़ करबचपन की कली कोक्या तुम्हे मिलाइस कुरीति के भेंट बचपन चढ़ाअभी अभी तो किया आगाज़सजाए कुछ बन जाने ख्वाबडोली के रूप मे

नैन काले लगे बड़े प्यारेभाए केश काले घनहरेकाला तिल सुंदरता की बढ़ाए शानजब सुंदरता के जगत मेंकाले रंग की बड़ी है पहचानतो क्यों तन का रंग काला क्यों ठुकराएकाली काया क्यों नहीं किसी को भाएक्यों मन क

औरत है नादान लच्छे दार बातो मे उलझा देते हैखूबसूरती की कर तारीफ बातो से बहला देते हैना कोई अधिकार मिला ना घर अपना अपना जहां मिलातुम ही हो पूरे घर की मालकिन बस नाम का खिताब मिलापति परमेश्वर है  जो

औरत एक सुनहरी किरणशुरू होता उससे रोशन जीवनऔरत एक घनेरी रातउसके मन में जाने कितनी दबी सी बातमुस्कुराकर कर गम पितीखामोशी से जीवन जीतीऔरत का जीवन लगता जितना सरलनहीं होता इतना आसानऔरत की छोटी सी अपनों की

मोम सा औरत का मन सिर्फ उसके लिए जो उसके मन को भाए जो दिल औरत का पत्थर हो जाए कर लो कितने ही जतन वार सारे खाली जाए औरत का दिल बस प्यार से जीता जाए ज़ोर जबरदस्ती से बस उसे कैद कर पाए वो चाहे टूट जाए पर

मै नहीं सीता चरित्र है पवित्र ना कोई प्रमाण दूंगी ना अग्नि परीक्षा दूंगी जो उठाए उंगली उसको ना मै छोड़ूंगी अपने हर इल्जाम का मुंह तोड़ जवाब दूंगी वो क्या मुझे छोड़ेगा मै ही उसे त्याग दूंगी ना अपने सर

चुप रहना मेरी मर्जी है मजबूरी नहीं क्योकि मै नही चाहती रिश्ता में दरार निशब्द नहीं हू मै मेरे पास भी है शब्दो का भंडार मौन हूं क्योंकि नही चाहती मै फीका पड़े रंग प्यार का दुख मुझे भी होता मै भी तो नही

एक औरत के सफर की कहानीपूरी जिंदगी अपनी मर्जी के इंतजारमें है बितानीबचपन में जब अपनी मर्जी बतलाएनासमझ हो अभी तुम में है नादानीजीती है फिर हूं पिता और भाई की जुबानीसपनों की दहलीज पर जो कदम बढ़ाए हैएक अन

जब औरत का मन किसी को चाहे पूरे समर्पण से फिर वो प्यार का रिश्ता निभाएं किसी संग अब मोहब्बत का आशियाना बसाए झोपडी में भी खुशी से रह जाए जो औरत के मन को साथी ना भाए तो महलों को भी ठुकरा जाए ऐश ओ आराम

आंगन में खिली एक मासूम कलीक्या कहूं कितनी खुशी मिलीउसकी किलकारी से दिल की सुकून मिलामानो हो कोयल सी मीठी बोलीप्यारी इतनी सूरत की भोलीपरिवार खुशी से झूमने लगामेरे भी पैर मारे खुशी से नाच उठेजब देखा प्य

ग्राहक की आशा में खड़ी उस लड़की को जब कुछ और देर इंतजार करने के बाद भी कोई ग्राहक नहीं मिला तो वह दूर खड़ी मेरी गाड़ी को देख इसी तरफ बढ़ने लगी।मेरी गाड़ी के दाहिने तरफ आकर उसने खिड़की को खटखटाया।उस सम

शकआरिफ, रिया की आज सुहागरात है, दोनों बहुत ही खुश हैं, लेकिन अगले ही दिन से आरिफ रिया से दूर रहने लगा, ना तो उससे अधिक बात करता और नि ही उससे पति-पत्नी वाला रिश्ता निभाता, रिया परेशान थी, कि आखिर एक र

हिया बहुत ही प्यारी और आज्ञाकारी बहू थी ।पांच साल शादी के हो गये थे दोनों सास बहू ऐसे रहती थी जैसे मां बेटी।हिया के चार साल की बेटी थी चारु ।सारे घर की लाड़ली। नितिन की तो परी थी चारु।सारा दिन दादा दा

जब टूटा गुरुर भाग 8 अंतिम भाग   शेखर को स्तब्ध खड़ा देखकर आराधना ने चिल्लाकर कहा " अब सांप क्यों सूंघ गया अब बोलो क्या मैं ग़लत कह रही हूं तुम आफिस टूर के बहाने कहां जाते हो बताओ अपनी भाभी को तुम

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