क्या सम्बोधन दूं मैं तुमको? यह तुम्हीं मुझे बता दो? चांद लिखूं? मनमीत लिखूं? राम लिखूं? घनश्याम लिखूं? या अपने दिल का सरताज लिखूं? तुम जिस दिल में बैठे हो!!? उस दिल की धड़कन का गीत लिखूं? मेरे गीतों क
बारिश और लाकडाउन " करीब चार दिनों से लगातार बारिश हो रही थी प्रेरणा हर दिन की तरह आज भी बालकनी में आई बाहर का प्राकृतिक सौंदर्य देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई।सामने पार्क था उसमें विभिन्न प्रकार
शास्त्रों- पुराणों में ऐसा कहा गया है कि स्त्रियों का स्वाभाव आज तक खुद भगवान भी नहीं जान पाएं तो इंसान और बड़े बड़े महापुरुष कैसे जान सकते है। आजकल लड़के, लड़कियों को समझने के चक्कर में सालों- साल शादी न
हे शक्ति पुंज? दशरथनन्दन, उर्मि का बंदन स्वीकार करो, तुम रघुकुल की कीर्ति पताका हो, भ्रात प्रेम की परिभाषा, मां के नयनों की ज्योति हो, मेरे मन की अभिलाषा, मैं प्रश्न पूछती हूं तुम से, उसका उत्तर दे दो
जीवन की सीख " इंसान गलती करके ही सीखता है रमा तुमने तो अपनी तरफ़ से अच्छा करने की ही कोशिश की थी तुम्हारी ननद ने तुम्हारी बात का गलत मतलब निकाल लिया तो तुम स्वयं को दोषी क्यों मान रही हो
वंदे मातरम। वंदे मातरम ।जय हिंद।भारत माता की जय ।इन जयघोष से सारा आकाश गूंज रहा था। सोनपुरा कै लिए बड़े गर्व की बात थी आज उनकी माटी का लाल अपने देश पर न्यौछावर होकर अपनी बेजान शरीर को तिरंगे मे लपेटे
"सामने वाली छत पर कौन है? पहले तो कभी नहीं देखा यहाँ" छत पर टहलते हुए अचानक सिम्मी की नजर सामने वाले घर की छत पर
निष्ठुर सर्दी का मौसम। सुबह तड़के रमा घर की एक सुनसान अन्धेरी कोठरी में चिमनी के सहारे भारी दुःखी मन से चक्की पीस रही थी। बाहर ठंड का प्रकोप बढ़ता जा रहा था। आसमान गरज-चमक दिखाकर ओले बरसा रहा था।