विचार जो हमारे मन मस्तिष्क में उपजते है तथा हर पल हर क्षण परिवर्तित होते रहते है जो मानव के हर्ष व विषाद के कारण है। कभी कभी ये विचार ऐसे रूप में उभरते है जिसका यथार्थ से कोई समबन्ध नहीं होता है।
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मन - मस्तिष्क के अमिट पटल पर
उमड़ते विचारों के अनंत तरंग,
बदलते हैं पल - पल ये दिशा रंग
बहते हुए पवनों के संग ।
ले जाते कभी ये न जाने किस संसार में
तैरने लगता ये मन आनंदित नदियों के धार में
वैभव - समृधियुक्त भूमि का कण- कण
खिली हुई प्रेम - मंज्जरी शोभित हर पल हर क्षण
अंतरिम हृदय में छायी चिन्मय व विपुल शांति
मानो छिटक रही हो दसो - दिशाओं से अदृश्य सी कांति
विचारों का दीवा - स्वप्न हुआ न था पूर्ण
हो न सका था हृदय भावो से पूर्णतः अनुभवित
ध्यान भंग से हुई मै भ्रमित, विचारों का यह कल्पना रह गया अपूर्ण ।
अगले ही पल छायी दुःख व निराशा
थी जंहा घोर चिंताएं ना कोई आशा
भयाक्रांत भयाकुल भयातुर मेरा हाल
मुश्किलों से तोड़ा विचारों का ये जाल
छड़ोपरांत मै चेतन थी जंहा,
दुख - सुख,प्रेम - घृणा,भय - अभय
सबका मिलता मेल है परन्तु,साथ ही
विचारों का भी चलता रहता खेल है।।
#pragya