आज जिस विषय पर लिख रही हूं हो सकता है कि कुछ लोग मेरी बातों से सहमत ना हो लेकिन मैं किसी को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से बल्कि सच को अपने मतानुसार बताने के लिए लिख रही हूं । मैंने कई विशेषज्ञों के लेख पढ़ने के साथ साथ कुछ सांस्कृतिक पुस्तकों को पढ़ने के बाद ही इस निष्कर्ष को पाया है ।
आजकल नारिसशक्तिकरण का प्रचार - प्रशार जोर - शोर से चल रहा है और मैं इसके पूरे समर्थन में हूं । जो कुरीतियां ,कुप्रथाएं है उन्हें हटाना जाना चाहिए । हर स्त्री को अधिकार है कि वह अपना जीवन मान - सम्मान के साथ ,बिना किसी भेदभाव के , हर क्षेत्र में अपने शक्ति का प्रदर्शन करते हुए व्यतीत करें ।
लेकिन आजकल नारी सशक्तिकरण के साथ साथ कुछ ऐसे अफवाहें उड़ाए जा रहे है या किसी बात को इस तरह तोड़ - मरोड़ कर पेश किया जा रहा है कि आप आसानी से उनकी बातों में आ जाएंगे और इन में सबसे ज्यादा टारगेट हमारे सनातन संस्कृति को किया जा रहा है । मैंने कई बड़े राइटर के लेख को पढ़ा ,कुछ लोगों को कविताएं सुनी जिसमें उन्होंने अपने इस विचार को प्रस्तुत किया कि हिन्दू धर्म के महान विभूतियां नारी को पाप का कारण समझते थे या नारी को पुरुषों के पैर के जूती समझते थे। ऐसा अधूरा ज्ञान के होने से साथ साथ एक अजेंडा चलाया जा रहा है जिसमें हमारी परम प्राचीन संस्कृति को निशाना जान बूझकर बनाया जा रहा है ।
मनु स्मृति के श्लोक को लेकर हमेशा विवाद होता रहता है ।
" स्त्री को विवाह से पूर्व अपने पिता, विवाह के पश्चात अपने पति और पति के मौत हो जाने पर / वृद्धावस्था में अपने पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए । "
कुछ लोगों का मत है कि मनु ने कहा है कि महिलाओं को हमेशा पुरुषों के अधीन में रहना चाहिए ।
अरे भाई यहां अधीन/ वश में रहने की बात नहीं बल्कि संरक्षण में रहने की बात कही गई है । संरक्षण और अधीन दोनों में अंतर है ।
संसार में धर्म - अधर्म ,पाप - पुण्य ,अच्छाई और बुराई हमेशा साथ - साथ चलती है चाहे सतयुग ,त्रेता,द्वापर या कलयुग हो । सतयुग में भी शंखचूड़ नाम के दैत्य ने माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के लिए महादेव पर आक्रमण किया था ,त्रेता में रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था ,द्वापर में भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण हुआ । कहने का अर्थ यह है कि स्त्री पर हमेशा से ही बुरे लोगों की बुरी नजर पड़ी है । ऐसे में क्या उसे संरक्षण की आश्यकता नहीं है । अगर ये संरक्षण स्त्री का बंधन है तो क्या कोई स्त्री इस बंधन से स्वत्रंत होना चाहेगी ??
हर लड़की चाहती है कि उसे अपने पिता का संरक्षण प्राप्त हो उसके हर समस्या में उसके पिता उसके साथ हो । पिता के संरक्षण का क्या महत्व है उस बेटी से पूछो जिसके सिर पर पिता का साया नहीं है ।
हर पत्नी चाहती है कि उसके जिंदगी के हर एक मुसीबतों में उसका पति साथ हो , उसके कहीं आने - जाने की जानकारी रखता हो , उसकी परवाह करता हो , उसके लिए फिक्रमंद रहे ,उसकी सुरक्षा के लिए सदैव सचेत रहें । तो क्या ये संरक्षण बुरा है ।
कोई बूढ़ी औरत क्या अपने बेटे से ये उम्मीद नहीं पालती की उसका बेटा हर - पल उसके स्वास्थ्य ,सुख - दुख का खोज खबर लेता रहे । उसे कहीं आना - जाना हो तो वो उसकी जानकारी रखें । उसका ध्यान रखें ।
तो इसमें क्या ग़लत है जो लोग इतना कुतर्क प्रस्तुत करते है ।और सिर्फ इसी श्लोक पर क्यों बोलते है क्या उन्हें मनुस्मृति में ही लिखा हुआ ये 👇श्लोक नजर नहीं आता या इसे पढ़ना नहीं आता है ।
मनु स्मृति में लिखा गया है कि
यत्र नारर्यस्तू पूज्यंते: रमंते: तत्र देवता:
जहां नारी की पूजा होती है ,सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है ।
शोचंति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्
जहां नारियां प्रसन्न नहीं रहती उस कुल का विनाश हो जाता है ।
अब आप लोग बताइए की जिसने नारियों की सम्मान और खुशियों के बारे में इतने गहराई से लिखा है इतना महत्त्व दिया है। वो नारी के लिए ऐसी बातें क्यों करेगा कि उसे पुरुषों के अधीन रहना चाहिए ।
आजकल लोग सिर्फ शब्दों पर ध्यान देते है भावों पर नहीं ।
ऐसे ही परम भगवद्भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे में सुनने को मिल रहा है । उनके दोहे का इतना कुअर्थ निकाला जा रहा है कि पूछिए मत ।
मैंने एक राइटर की नारिसशक्तिकरण पर कविता सुनी सच में उन्होंने इतने अच्छे प्रस्तुत किया मैं तो एकदम मुग्ध हो गई लेकिन अंतिम में उन्होंने तुलसीदास जी के बारे में ऐसा बोला कि मुझे अजीब लगा कि इतने बड़ी लेखक को वाकई हिंदी के शब्दों के बारे में नहीं पता है या कोई और कारण है ऐसा बोलने के पीछे । कुछ लोग अज्ञानता में बोलते है लेकिन कुछ लोग बहकावे में आकर बोलते है ।
ढोल, गंवार ,पशु शूद्र नारि ,ये सब तारन के अधिकारी ।
यहां लोग तारन का अर्थ ताड़ना से लेते है । अरे भाई , किसी भी शब्द का कई अर्थ निकलता है । तुलसीदास जी अवधि में लिखे है तो उनके रचना में शुद्ध हिंदी शब्दों का प्रयोग नहीं बल्कि लोकभाषा में बिगड़े हुए शब्द मिलते है । यहां तारन शब्द " त्राण " शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है निर्देशन करना अथवा रक्षा करना ना कि ताड़ना देना ।
ढोल - अगर आप ढोल पर एक निर्देश के अनुसार हाथ नहीं चलाएंगे तो ढोल में मधुर संगीत नहीं बल्कि सिरदर्द कराने वाली आवाज निकलेगी ।तो उसका उचित निर्देशन आवश्यक है ।
गंवार - अगर कोई व्यक्ति पढ़ा - लिखा ,ज्ञानी नहीं है तो आपका ये कर्तव्य बनता है कि आप इस व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करें । अगर आप ऐसा नहीं करते है तो आप सिर्फ नाम के मनुष्य है ।
मान लीजिए अगर स्टेसन पर आपको ऐसा व्यक्ति मिलता है जिसे ट्रेन के बारे में नहीं पता की कौन कहां जाएगी । यदि वो आपसे पूछता है तो आप क्या करेंगे । क्या आप उसे छोड़ देंगे या उसे समझाएंगे ,उसका उचित मार्गदर्शन करेंगे । ये आप खुद सोचिए
पशु - हम जो पशु पालते है उसे एक निर्देश देते है की उसके खाने का टाइम, जगह या जुगाली ,आराम करने का जगह क्या है । धीरे - धीरे पशु अभ्यस्त हो जाते है । अगर आप उसकी रस्सी छोड़ भी दें तो वो सीधे अपने नाद पर जाएगी । अन्यथा बिना निर्देशन के आपके कोई भी शाक - सब्जी या अन्य खेती सुरक्षित नहीं बचेगी । अन्य बाहरी पशु आता है तो हम अपने पशुओं की रक्षा करते है ।
शूद्र - वेदों में वर्णित वर्ण व्यवस्था के अनुसार ( मैं यहां जन्म वर्ण व्यवस्था नहीं बल्कि कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था की बात कर रही हूं कोई अन्यथा ना लें । ) शूद्र को सेवा कार्य सौंपा गया है । अगर आप उसे यह नहीं निर्देशित करते है कि कौन सा कार्य ,कब, कहां, कैसे करना है तो उसे क्या पता चलेगा । मान लीजिए आपको मसाज करवाना है तो आप पहले बताएंगे ना कि आपको हैंड मसाज चाहिए, बॉडी मसाज चाहिए या हेड मसाज चाहिए कि बिना आपके निर्देशन के सामने वाले को पता चल जाएगा ।
नारी - मुख्य विवाद का कारण नारी ही है । प्रकृति में हर जगह स्त्रीत्व और पुरूषत्व देखने को मिलता है । दोनों के समायोजन से ही संसार का संचार संभव है । अगर पुरुष घर से बाहर मेहनत करके धन कमाता है तो औरत पूरे घर की व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करती है । दोनों सामंजस्य बिठाकर के गृहस्थ जीवन को सफल बनाते हैं ।ऐसे में स्त्री को घर से बाहर की दुनिया का अधिक ज्ञान नहीं हो पाता है । बाहरी दुनिया से संबंध बनाने में पति को उसकी सहायता करना चाहिए , उसे निर्देशित करना चाहिए । उसे संसार के नियमों का ज्ञान देना पति / पुरुष का कर्तव्य है स्त्री के ऊपर आए संकट का हरण कर उसकी रक्षा करना ही पुरुष प्रथम धर्म है ।
यहां तुलसीदास जी ने इस भाव का उल्लेख किया है ना कि प्रताड़ना करने की ।जिस व्यक्ति ने माता सीता का वर्णन करते हुए लिखा है कि राम शक्तिशाली है क्योंकि माता सीता की शक्ति उनके साथ है । राम से भी अधिक शक्ति मां सीता की है ।वो व्यक्ति नारी के बारे में ऐसे अभद्र बातें कैसे कहेगा । विचारणीय है ।
मैं मानती हूं कि उत्तरोत्तर में कई कुरीतियां ,कुप्रथाएं , रूढ़िवादिता हमारे समाज में व्याप्त हो चुकीं है लेकिन अपने संस्कृति ,सभ्यता ,अपने संस्कारों के श्रोत को अज्ञानता वश गलत ठहराना निंदनीय है । कुरुतियों का विरोध अवश्य करें लेकिन अपने सनातन धर्म की रक्षा करना आपका कर्तव्य है ।
अगर आप मेरे बातों से सहमत है तो प्लीज इसे शेयर अवश्य करें क्योंकि बहुत से लोग इस भ्रम में फंसे हुए है तो उन्हें भी अपने भ्रम से छुटकारा मिल सके । हो सकता है कि इस लेख को पढ़ने के बाद वो अपनी संस्कृति ,धर्म के प्रति जागरूक हो अन्वेषण को प्रेरित हो । जो युवा पीढ़ी अपने संस्कृति के विरोध में खड़ी हो रही है वो अपनी संस्कृति ,सभ्यता को समझ सके ।
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