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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022

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1.

मैं मधुबाला मधुशाला की,

मैं मधुशाला की मधुबाला!

मैं मधु-विक्रेता को प्यारी,

मधु के धट मुझ पर बलिहारी,

प्यालों की मैं सुषमा सारी,

मेरा रुख देखा करती है

मधु-प्यासे नयनों की माला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


2.

इस नीले अंचल की छाया

में जग-ज्वाला का झुलसाया

आकर शीतल करता काया,

मधु-मरहम का मैं लेपन कर

अच्छा करती उर का छाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


3.

मधुघट ले जब करती नर्तन,

मेरे नुपुर की छम-छनन

में लय होता जग का क्रंदन,

झूमा करता मानव जीवन

का क्षण-क्षण बनकर मतवाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


4.

मैं इस आंगन की आकर्षण,

मधु से सिंचित मेरी चितवन,

मेरी वाणी में मधु के कण,

मदमत्त बनाया मैं करती,

यश लूटा करती मधुशाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


5.

था एक समय, थी मधुशाला,

था मिट्टी का घट, था प्याला,

थी, किन्तु, नहीं साक़ीबाला,

था बैठा ठाला विक्रेता

दे बंद कपाटों पर ताला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


6.

तब इस घर में था तम छाया,

था भय छाया, था भ्रम छाया,

था मातम छाया, गम छाया,

ऊषा का दीप लिये सर पर,

मैं आ‌ई करती उजियाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


7.

सोने सी मधुशाला चमकी,

माणिक द्युति से मदिरा दमकी,

मधुगंध दिशा‌ओं में चमकी,

चल पड़ा लिये कर में प्याला

प्रत्येक सुरा पीनेवाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


8.

थे मदिरा के मृत-मूक घड़े,

थे मूर्ति सदृश मधुपात्र खड़े,

थे जड़वत प्याले भूमि पड़े,

जादू के हाथों से छूकर

मैंने इनमें जीवन डाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


9.

मझको छूकर मधुघट छलके,

प्याले मधु पीने को ललके ,

मालिक जागा मलकर पलकें,

अंगड़ा‌ई लेकर उठ बैठी

चिर सुप्त विमूर्छित मधुशाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


10.

प्यासे आए, मैंने आँका,

वातायन से मैंने झाँका,

पीनेवालों का दल बाँका,

उत्कंठित स्वर से बोल उठा

‘कर दे पागल, भर दे प्याला!’

मैं मधुशाला की मधुबाला!


11.

खुल द्वार गए मदिरालय के,

नारे लगते मेरी जय के,

मिटे चिन्ह चिंता भय के,

हर ओर मचा है शोर यही,

‘ला-ला मदिरा ला-ला’!,

मैं मधुशाला की मधुबाला!


12.

हर एक तृप्ति का दास यहां,

पर एक बात है खास यहां,

पीने से बढ़ती प्यास यहां,

सौभाग्य मगर मेरा देखो,

देने से बढ़ती है हाला!

मैं मधुशाला की मधुबाला!


13.

चाहे जितना मैं दूं हाला,

चाहे जितना तू पी प्याला,

चाहे जितना बन मतवाला,

सुन, भेद बताती हूँ अंतिम,

यह शांत नहीं होगी ज्वाला.

मैं मधुशाला की मधुबाला!


14.

मधु कौन यहां पीने आता,

है किसका प्यालों से नाता,

जग देख मुझे है मदमाता,

जिसके चिर तंद्रिल नयनों पर

तनती मैं स्वपनों का जाला।

मैं मधुशाला की मधुबाला!


15.

यह स्वप्न-विनिर्मित मधुशाला,

यह स्वप्न रचित मधु का प्याला,

स्वप्निल तृष्णा, स्वप्निल हाला,

स्वप्नों की दुनिया में भूला

फिरता मानव भोलाभाला.

मैं मधुशाला की मधुबाला!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

28 जुलाई 2022
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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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