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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022

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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद,

नग्न है श्यामल-तल आकाश,

नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार,

नग्न बादल, विद्युत, वातास,

जलधि के आंगन में अविराम,

ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न,

सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृंग,

नग्न रहकर ही रहते मग्न।

भली मानवता ही क्यों आज

रही अपने पर पर्दा डाल?

यही करती जगती से प्रश्न,

रही खिल वन में पाटल-माल!


किसी युग में मानव की आंख

सकी स्वर्गिक सुषमा को तोल,

सकी दे उसका वांछित मूल्य

खुशी से उर की गांठें खोल;

आज कहलाता है अश्लील

हृदय का अनियंत्रित उद्गार,

विकृत जीवन को ही जग आज

समझ बैठा है लोकाचार;

प्रगतिमय यौवन का पट थाम

न बैठो, जग के कंटक जाल!

यही कहती कांटों से आज

रही खिल वन में पाटल-माल!


पुण्य की है जिसको पहचान,

उसे ही पापों का अनुमान

सदाचारों से जो अनभिज्ञ,

दुराचारों से वह अज्ञान,

उसी के लज्जा से नत नेत्र,

जिसे गौरव का प्रतिपल ध्यान;

जगत के जीवन से अब, हाय,

गया उठ भोलेपन का भान!

लगा मत उस भोली को दोष,

न उस पर आंखें लाल निकाल;

स्वयं निज सौरभ से अनजान

रही खिल वन में पाटल-माल!


करे मृदु पंखुरियों को कैद

कुटिल कांटों का कारागार,

बहाएँ बेचारी प्रति पात

मोतियों-से आंसू की धार,

सरसता की प्रतिमा प्रत्यक्ष

पड़ें जा पाषाणों के हाथ,

चला ज्ञानी देने उपदेश,

न्याय होता है सबके साथ;

समझ लें आंखों वाले खूब

नियति की कैसी टेढ़ी चाल;

रंगी अपने लहू से आज

रही खिल वन में पाटल-माल!


नयन में पा आंसू की बूंद,

अधर के ऊपर पा मुसकान,

कहीं मत इसको हे संसार,

दु:खों का अभिनय लेना मान।

नयन से नीरव जल की धार

ज्वलित उर का प्राय: उपहार

हंसी से ही होता है व्यक्त

कभी पीड़ित उर का उद्गार;

तप्त आँसू से झुलसे गाल

किए कोई मदिरा से लाल;

इसी का तो करती संकेत

रही खिल वन में पाटल-माल!


गगन के आंगन में विस्तीर्ण

खिला कोई पाटल का फूल,

उसी पर तारक हिमकण-रुप

नहीं उसकी डालों में शूल;

पंखुरी एक उसी की नित्य

प्रात में गिर पड़ती अनजान,

पूर्व से रंजित होकर और

उषा का बन जाती परिधान;

गिरे दल इसके हो जड़-म्लान,

बड़ा, रे, इसका रंज-मलाल;

विवशता की, पर, ले-ले सांस

रही खिल वन में पाटल-माल!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

28 जुलाई 2022
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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

28 जुलाई 2022
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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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