१.
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता,
गाता, सब से नित्य गवाता,
थकित बटोही का बहला मन
जीवन-पथ की श्रांति मिटाता,
यह मतवाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
२.
हम सब मधुशाला जाएंगे,
आशा है, मदिरा पाएंगे,
किंतु हलाहल ही यदि होगा
पीने से कब घबराएंगे !
पीनेवाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
३.
उफ़! कितने इस पथ पर आते,
पहुंच मगर, कितने कम पाते,
है हमको अफ़सोस. न इसका,
इसपर जो मरते तर जाते;
मरनेनेवाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
४.
यह तो दीवानों का दल है,
पीना सब का ध्येय अटल है,
प्राप्त न हो जब तक मधुशाला,
पड़ सकती किसके उर कल है!
वह मधुशाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
५.
झांक रहा, वह देखो, साकी
कर में एक सुराही बाँकी,
देख लिया क्या हमको आते?
धार लगी गिरने मदिरा की;
वह मघुशाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
६.
अपना-अपना पात्र संभालो,
ऊँचे अपने हाथ उठा लो,
सात बलाएं ले मदिरा की,
प्याले अपने होंठ लगा लो,
मधु का प्याला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
७.
प्याले में क्या आई हाला
नहीं, नहीं उतरी मधुबाला।
पीकर कैसे यह छवि खो दूँ-
सोच रहा हर पीनेवाला;
मादक हाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !
८.
जिसमेँ झलक रही मधुशाला,
जिसमें प्रतिबिंबित मधुबाला,
कौन सकेगा पी उस मधु को
कितनी ही हो अंतर्ज्वाला?
उर की ज्वाला ज़िंदाबाद !
गुंजित कर दो पथ का कण-कण
कह मधुशाला ज़िंदाबाद !