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5. सुराही

28 जुलाई 2022

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१.

मैं एक सुराही हाला की!

मैं एक सुराही मदिरा की!

मदिरालय हैं मन्दिर मेरे,

मदिरा पीनेवाले, चेरे,

पंडे-से मधु-विक्रेता को

जो निशि-दिन रहते हैं घेरे;

है देवदासियों-सी शोभा

मधुबालाओं की माला की ।

मैं एक सुराही हाला की!

२.

कोयल-बुलबुल की तान यहाँ,

घड़ियाली, और अजान यहाँ,

जिसको सुनकर खिंच आता है

पीनेवालों का ध्यान यहाँ,

तुलसी बिरवों-सी पावनता

है अंगूरों की लतिका की ।

मैं एक सुराही मदिरा की!

३.

सब आर्य प्रवर आ सकते हैं,

सब आर्येतर आ सकते हैं;

इस मानवता के मंदिर में

सब-नारी-नर आ सकते हैं;

केवल प्रवेश उसका निषिद्ध

जिसमें मधु-प्यास नहीं बाकी ।

मैं एक सुराही हाला की!

४.

सबका सम्मान समान यहाँ,

सबको समान वरदान यहाँ,

मैं शंकर-सी औढर दानी,

है मुक्ति बड़ी आसान यहाँ,

देरी है केवल फिरने की

सब पर मेरी चितवन बांकी।

मैं एक सुराही मदिरा की!

५.

इस मंदिर में पूजन मेरा,

अभिवादन-अभिनंदन मेरा,

निज भाग्य सराहा करते सब,

पाकर मादक दर्शन मेरा,

जिस तप से यह पदवी पाई

मैंने, कर लो उसकी झांकी!

मैं एक सुराही हाला की!

६.

मैं कुंभकार की चाक चढ़ी,

फिर मेरे तन पर बेलि कढ़ी,

तब गई चिता पा मैं रक्खी,

हर ओर अग्नि की ज्वाल बढ़ी,

जल चिता गई हो राख-राख,

मैं मिट्टी, किंतु, रही बाकी।

मैं एक सुराही मदिरा की!

७.

मैं मृत्यु विजय करके आई,

मैंने दैवी महिमा पाई,

मानव के नीरस जीवन में

मैं अमृत-सा मधुरस लाई,

इस गुण के कारण ही तो मैं

बन प्राण गई मधुशाला की।

मैं एक सुराही हाला की!

८.

मैं मधु से नहलार्ड जाती,

फिर प्यालों की माला पाती,

तब मेरे चारों ओर खड़ी

होकर मधुबालाएँ गातीं;

इस भाँति की गई है पूजा

जगती-तल पर किस प्रतिमा की ?

मैं एक सुराही मदिरा की!

९.

मैं मिट्टी की थी, लाल हुई,

मधु पीकर और निहाल हुई,

जब चली मुझे ले मधुबाला,

'छलछल' करके वाचाल हुई,

जिसको सुनकर पंडित-मुल्ले

भूले सब अपनी चालाकी।

मैं एक सुराही हाला की!

१०.

अब इनकी मिन्नत कौन करे?

इनके शापों से कौन डरे?

जब स्वर्ग लिए मैं फिरती हूं,

तब कौन क़यामत तक ठहरे?

जो प्राप्त अभी, उसके हित कल

की राह किसी ने कब ताकी?

मैं एक सुराही मदिरा की!

११.

मैं मधुबाला के कंधों पर

उपदेश यही देती चढ़कर-

'अपने जीवन के क्षण-क्षण को

लो मेरी मादकता से भर;

यह मिलना-जुलना क्षण भर का

फिर जाना सबको एकाकी।'

मैं एक सुराही हाला की!

१२.

लघु, मानव का कितना जीवन,

फिर क्यों उसपर इतना बंधन;

यदि मदिरा का ही अभिलाषी,

पी सकता कुछ गिनती के कण!

चुल्लू भर में गल सकता है

उसके तन का जामा ख़ाकी।

मैं एक सुराही मदिरा की!

१३.

मैं हूँ प्यालों मेँ जम जाती,

मधु के वितरण में रम जाती,

भरती अगणित मुख में मदिरा,

अपनी निधि, पर, कब कम पाती;

मैं घूम जिधर पड़ती, उठती

है गूँज उधर ध्वनि 'ला-ला' की

मैं एक सुराही हाला की!

१४.

औरों के हित मेरी हस्ती,

औरों के हित मेरी मस्ती,

मैं पीती सिंचित करने को

इन प्यासे प्यालों की बस्ती,

आनंद उठाते ये, अपयश

की भागी बनती मैं, साकी।

मैं एक सुराही मदिरा की!

१५.

उन्मत्त- बनाना खेल नहीं,

मधु से भी बुझती प्यास कहीं;

उर तापों से पिघला मेरा,

यह नहीं सुरा की धार वही!

उर के आसव से ही होती

है शांति हृदय की ज्वाला की

मैं एक सुराही हाला की!

१६. तुमने समझा मधुपान किया?

मैंने निज रक्त प्रदान किया!

उर क्रंदन करता था मेरा,

पर मुख से मैंने गान किया!

मैंने पीड़ा को रूप दिया,

जग समझा मैंने कविता की।

मैं एक सुराही मदिरा की!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

28 जुलाई 2022
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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

28 जुलाई 2022
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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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