१.
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
तू अगम सिंधु की राशि लिए,
मैं मरु असीम की प्यास लिए,
मैं चिर विचलित संदेहों से,
तू शांत अटल विश्वास लिए;
तेरी मुझको आवश्यकता,
आवश्यकता तुझको मेरी;
मैं जीवन का उच्छवास लिए,
तू जीवन का उल्लास लिए;
तुझसे मिल पूर्ण चला बनने,
बस इतना ही मेरा परिचय।
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
२.
क्या कहती? 'दुनिया को देखो,'
दुनिया रोती है, रोने दो
मैं भी रोया, रोना अच्छा,
आंसू से आंखें धोने दो;
रोनेवाला ही समझेगा
कुछ मर्म हमारी मस्ती का;
सुन, अश्रु-भरी आंखें कहतीं-
यह राग-रंग भी होने दो,
रोदन-गायन दोनों के स्वर
से सधती जग-वीणा की लय।
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
३.
क्या कहती? 'दुनिया को देखा,'
दुनिया देती लानत मुझको,
है कहती फिरती गली-गली,
मदिरा पीने की लत मुझको;
दुनिया तो मुझसे है रूठी,
है तुली हुई वद कहने पर,
गंगाजल जब पैं पाता था,
कब दी उसने इज्जत मुझको?
बदनाम रहे हो मंदिर हैं,
यह तो फिर ठहरा मदिरालय
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
६.
अस्तित्व न था जब तृष्णा का,
मदिरालय था यह विश्रृंखल,
विक्रेता था मृतप्राय पड़ा,
चंचल साक़ी भी थे अविचल,
कुछ पता नहीं था प्यासों का,
क्या ज़िक्र घटों का, प्यालों का,
इस परी तृषा के आते ही
मच गई पलों में चहल-पहल;
है रंगमंच तृष्णा का ही,
जिस पर यह संसृति का अभिनय।
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
७.
पृथ्वी में जिसने प्यास भरी,
बादल में उसने नीर भरा,
तट-अधरों को नीचे रक्खा
है प्याला अम्बुधि का गहरा;
वह गुरु-महान की तृष्णा में
छोटों की प्यास नहीं भूला;
भौरों की प्यास बुझाने को
सर में पद्मों का पात्र धरा;
छोटे से छोटे तृण का ही
रख ध्यान बना नभ हिमकण-मय।
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
८.
सिंचित हो नभ की मदिरा से
यह धरा हरित हो लहराती,
तट गिर-गिर पड़ते सागर में,
अलि-अवली रस पी-पी गाती;
जिस-जिस उर मेँ दी प्यास गई,
दी तृप्ति गई उस-उस उर में;
मानव को ही अभिशाप मिला,
'पीकर भी दग्ध रहे छाती !'
किन अपराधों के बदले में
मानव के प्रति यह क्रूर अनय !
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!
९.
यह 'क्रूर अनय' सह सकता है
केवल इस बल पर मन मेरा,
इसके कारण ही तो, सुन्दरि,
सत्संग मिला मुझको तेरा;
मेरे दामन, तेरे आंचल
की गांठ' लगा दी तृष्णा ने,
उर कुंड-हवन के ओर सभी
आ, दे मिलकर मंगल फेरा;
कर कौन अलग सकता हमको
हो जाने पर विधिवत् परिणय?
तेरा-मेरा संबंध यही-
तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय!