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6. प्याला

28 जुलाई 2022

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मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!

१.

कल काल-रात्रि के अंधकार

में थी मेरी सत्ता विलीन,

इस मूर्तिमान जग में महान

था मैं विलुप्त कल रूप-हीं,


कल मादकता थी भरी नींद

थी जड़ता से ले रही होड़,

किन सरस करों का परस आज

करता जाग्रत जीवन नवीन?


मिट्टी से मधु का पात्र बनूँ--

किस कुम्भकार का यह निश्चय?

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


२.

भ्रम भूमि रही थी जन्म-काल,

था भ्रमित हो रहा आसमान,

उस कलावान का कुछ रहस्य

होता फिर कैसे भासमान.


जब खुली आँख तब हुआ ज्ञात,

थिर है सब मेरे आसपास;

समझा था सबको भ्रमित किन्तु

भ्रम स्वयं रहा था मैं अजान.


भ्रम से ही जो उत्पन्न हुआ,

क्या ज्ञान करेगा वह संचय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


३.

जो रस लेकर आया भू पर

जीवन-आतप ले गया छिन,

खो गया पूर्व गुण,रंग,रूप

हो जग की ज्वाला के अधीन;


मैं चिल्लाया 'क्यों ले मेरी

मृदुला करती मुझको कठोर?'

लपटें बोलीं,'चुप, बजा-ठोंक

लेगी तुझको जगती प्रवीण.'


यह,लो, मीणा बाज़ार जगा,

होता है मेरा क्रय-विक्रय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


४.

मुझको न ले सके धन-कुबेर

दिखलाकर अपना ठाट-बाट,

मुझको न ले सके नृपति मोल

दे माल-खज़ाना, राज-पाट,


अमरों ने अमृत दिखलाया,

दिखलाया अपना अमर लोक,

ठुकराया मैंने दोनों को

रखकर अपना उन्नत ललाट,


बिक,मगर,गया मैं मोल बिना

जब आया मानव सरस ह्रदय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


५.

बस एक बार पूछा जाता,

यदि अमृत से पड़ता पाला;

यदि पात्र हलाहल का बनता,

बस एक बार जाता ढाला;


चिर जीवन औ' चिर मृत्यु जहाँ,

लघु जीवन की चिर प्यास कहाँ;

जो फिर-फिर होहों तक जाता

वह तो बस मदिरा का प्याला;


मेरा घर है अरमानो से

परिपूर्ण जगत् का मदिरालय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


६.

मैं सखी सुराही का साथी,

सहचर मधुबाला का ललाम;

अपने मानस की मस्ती से

उफनाया करता आठयाम;


कल क्रूर काल के गलों में

जाना होगा--इस कारण ही

कुछ और बढा दी है मैंने

अपने जीवन की धूमधाम;


इन मेरी उलटी चालों पर

संसार खड़ा करता विस्मय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


७.

मेरे पथ में आ-आ करके

तू पूछ रहा है बार-बार,

'क्यों तू दुनिया के लोगों में

करता है मदिरा का प्रचार?'


मैं वाद-विवाद करूँ तुझसे

अवकाश कहाँ इतना मुझको,

'आनंद करो'--यह व्यंग्य भरी

है किसी दग्ध-उर की पुकार;


कुछ आग बुझाने को पीते

ये भी,कर मत इन पर संशय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


८.

मैं देख चुका जा मसजिद में

झुक-झुक मोमिन पढ़ते नमाज़,

पर अपनी इस मधुशाला में

पीता दीवानों का समाज;


यह पुण्य कृत्य,यह पाप क्रम,

कह भी दूँ,तो क्या सबूत;

कब कंचन मस्जिद पर बरसा,

कब मदिरालय पर गाज़ गिरी?


यह चिर अनादि से प्रश्न उठा

मैं आज करूँगा क्या निर्णय?

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


९.

सुनकर आया हूँ मंदिर में

रटते हरिजन थे राम-राम,

पर अपनी इस मधुशाला में

जपते मतवाले जाम-जाम;


पंडित मदिरालय से रूठा,

मैं कैसे मंदिर से रूठूँ ,

मैं फर्क बाहरी क्या देखूं;

मुझको मस्ती से महज काम.


भय-भ्रान्ति भरे जग में दोनों

मन को बहलाने के अभिनय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


१०.

संसृति की नाटकशाला में

है पड़ा तुझे बनना ज्ञानी,

है पड़ा तुझे बनना प्याला,

होना मदिरा का अभिमानी;


संघर्ष यहाँ किसका किससे,

यह तो सब खेल-तमाशा है,

यह देख,यवनिका गिरती है,

समझा कुछ अपनी नादानी!


छिप जाएँगे हम दोनों ही

लेकर अपना-अपना आशय.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!


११.

पल में मृत पीने वाले के

कल से गिर भू पर आऊँगा,

जिस मिट्टी से था मैं निर्मित

उस मिट्टी में मिल जाऊँगा;


अधिकार नहीं जिन बातों पर,

उन बातों की चिंता करके

अब तक जग ने क्या पाया है,

मैं कर चर्चा क्या पाऊँगा?


मुझको अपना ही जन्म-निधन

'है सृष्टि प्रथम,है अंतिम ली.

मिट्टी का तन,मस्ती का मन,

क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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