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11. इस पार उस पार

28 जुलाई 2022

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इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,

लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का,

कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,

बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,

तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,

उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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जग में रस की नदियाँ बहती, रसना दो बूंदें पाती है,

जीवन की झिलमिलसी झाँकी नयनों के आगे आती है,

स्वरतालमयी वीणा बजती, मिलती है बस झंकार मुझे,

मेरे सुमनों की गंध कहीं यह वायु उड़ा ले जाती है;

ऐसा सुनता, उस पार, प्रिये, ये साधन भी छिन जा‌एँगे;

तब मानव की चेतनता का आधार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


3

प्याला है पर पी पा‌एँगे, है ज्ञात नहीं इतना हमको,

इस पार नियति ने भेजा है, असमर्थ बना कितना हमको;

कहने वाले, पर कहते है, हम कर्मों में स्वाधीन सदा,

करने वालों की परवशता है ज्ञात किसे, जितनी हमको;

कह तो सकते हैं, कहकर ही कुछ दिल हल्का कर लेते हैं,

उस पार अभागे मानव का अधिकार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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कुछ भी न किया था जब उसका, उसने पथ में काँटे बोये,

वे भार दि‌ए धर कंधों पर, जो रो-रोकर हमने ढो‌ए;

महलों के सपनों के भीतर जर्जर खँडहर का सत्य भरा,

उर में ऐसी हलचल भर दी, दो रात न हम सुख से सो‌ए;

अब तो हम अपने जीवन भर उस क्रूर कठिन को कोस चुके;

उस पार नियति का मानव से व्यवहार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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संसृति के जीवन में, सुभगे! ऐसी भी घड़ियाँ आ‌ऐंगी,

जब दिनकर की तमहर किरणें तम के अन्दर छिप जा‌एँगी,

जब निज प्रियतम का शव, रजनी तम की चादर से ढंक देगी,

तब रवि-शशि-पोषित यह पृथिवी कितने दिन खैर मना‌एगी;

जब इस लंबे-चौड़े जग का अस्तित्व न रहने पा‌एगा,

तब तेरा मेरा नन्हाँ-सा संसार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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ऐसा चिर पतझड़ आ‌एगा, कोयल न कुहुक फिर पा‌एगी,

बुलबुल न अंधेरे में गा-गा जीवन की ज्योति जगा‌एगी,

अगणित मृदु-नव पल्लव के स्वर 'मरमर' न सुने फिर जा‌एँगे,

अलि‌-अवली कलि-दल पर गुंजन करने के हेतु न आ‌एगी,

जब इतनी रसमय ध्वनियों का अवसान, प्रिय हो जा‌एगा,

तब शुष्क हमारे कंठों का उद्गार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये, मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


7

सुन काल प्रबल का गुरु-गर्जन निर्झरिणी भूलेगी नर्तन,

निर्झर भूलेगा निज 'टलमल', सरिता अपना 'कलकल' गायन,

वह गायक-नायक सिन्धु कहीं, चुप हो छिप जाना चाहेगा!

मुँह खोल खड़े रह जा‌एँगे गंधर्व, अप्सरा, किन्नरगण;

संगीत सजीव हु‌आ जिनमें, जब मौन वही हो जा‌एँगे,

तब, प्राण, तुम्हारी तंत्री का, जड़ तार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये, मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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उतरे इन आखों के आगे जो हार चमेली ने पहने,

वह छीन रहा देखो माली, सुकुमार लता‌ओं के गहने,

दो दिन में खींची जा‌एगी ऊषा की साड़ी सिन्दूरी

पट इन्द्रधनुष का सतरंगा पा‌एगा कितने दिन रहने!

जब मूर्तिमती सत्ता‌ओं की शोभाशुषमा लुट जा‌एगी,

तब कवि के कल्पित स्वप्नों का श्रृंगार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!


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दृग देख जहाँ तक पाते हैं, तम का सागर लहराता है,

फिर भी उस पार खड़ा को‌ई हम सब को खींच बुलाता है!

मैं आज चला तुम आ‌ओगी, कल, परसों, सब संगीसाथी,

दुनिया रोतीधोती रहती, जिसको जाना है, जाता है।

मेरा तो होता मन डगडग मग, तट पर ही के हलकोरों से!

जब मैं एकाकी पहुँचूँगा, मँझधार न जाने क्या होगा!

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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