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7. हाला

28 जुलाई 2022

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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


१.

जग ने ऊपर की आँखों से

देखा मुझको बस लाल-लाल,

कह डाला मुझको जल्दी से

द्रव माणिक या पिघला प्रवाल,


जिसको साक़ी के अधरों ने

चुम्बित करके स्वादिष्ट किया,

कुछ मनमौजी मजनूँ जिसको

ले-ले प्यालों में रहे ढाल;


मेरे बारे में है फैला

दुनिया में कितना भ्रम-संशय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


२.

वह भ्रांत महा जिसने समझा

मेरा घर था जलधर अथाह,

जिसकी हिलोर में देवों ने

पहचाना मेरा लघु प्रवाह;


अंशावतार वह था मेरा

मेरा तो सच्चा रूप और;

विश्वास अगर मुझ पर,मानो--

मेरा दो कण वह महोत्साह,


जो सुरासुरों ने उर में धर

मत डाला वारिधि वृहत ह्रदय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


३.

मेरी मादकता से ही तो

मानव सब सुख-दुःख सका झेल,

कर सकी मानवों की पृथ्वी

शशि-रवि सुदूर से हेल-मेल,


मेरी मस्ती से रहे नाच

ग्रह गण,करता है गगन गान,

वह महोन्माद मैं ही जिससे

यह सृष्टि-प्रलय का खेल-खेल,


दु:सह चिर जीवन सह सकता

वह चिर एकाकी लीलामय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


४.

अवतरित रूप में भी तो मैं

इतनी महान,इतनी विशाल,

मेरी नन्हीं दो बूंदों ने

रंग दिया उषा का चीर लाल;


संध्या की चर्चा क्या,वह तो

उसके दुकूल का एक छोर,

जिसकी छाया से ही रंजित

पटल-कुटुम्ब का मृदुल गाल;


कर नहीं मुझे सकता बन्दी

दर-दीवारों में मदिरालय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


५.

अवतीर्ण रूप में भी तो है

मेरा इतना सुरभित शरीर,

दो साँस बहा देती मेरी

जग-पतझड में मधुऋतु समीर,


जो पिक-प्राणों में कर प्रवेश

तनता नभ में स्वर का वितान,

लाता कमलों की महफिल में

नर्तन करने को भ्रमर-भीड़;


मधुबाला के पग-पायल क्या

पाएँगे मेरे मन पर जय!

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


६.

लवलेश लास लेकर मेरा

झरना झूमा करता इसी पर,

सर हिल्लोलित होता रह-रह,

सरि बढ़ती लहरा-लहराकर,


मेरी चंचलता की करता

रहता है सिंधु नक़ल असफल;

अज्ञानी को यह ज्ञात नहीं,

मैं भर सकती कितने सागर.


कर पाएँगे प्यासे मेरा

कितना इन प्यालो में संचय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


७.

है आज प्रवाहित में ऐसे,

जैसे कवि के ह्रदयोद्गार;

तुम रोक नहीं सकते मुझको,

कर नहीं सकोगे मुझे पार;


यह अपनी कागज़ की नावें

तट पर बाँधो आगे न बढ़ो,

ये तुम्हें डूबा देंगी गलकर

हे श्वेत-केश-धर कर्णधार;


बह सकता जो मेरी गति से

पा सकता वह मेरा आश्रय

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


८.

उद्दाम तरंगों से अपनी

मस्जिद,गिरजाघर ,देवालय

मैं तोड़ गिरा दूँगी पल में--

मानव के बंदीगृह निश्चय.


जो कूल-किनारे तट करते

संकुचित मनुज के जीवन को,

मैं काट सबों को डालूँगी.

किसका डर मुझको?मैं निर्भय.


मैं ढहा-बहा दूँगी क्षण में

पाखंडों के गुरू गढ़ दुर्जय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


९.

फिर मैं नभ गुम्बद के नीचे

नव-निर्मल द्वीप बनाऊँगी,

जिस पर हिलमिलकर बसने को

संपूर्ण जगत् को लाऊँगी;


उन्मुक्त वायुमंडल में अब

आदर्श बनेगी मधुशाला;

प्रिय प्रकृति-परी के हाथों से

ऐसा मधुपान कराऊँगी,


चिर जरा-जीर्ण मानव जीवन से

पाएगा नूतन यौवन वय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


१०.

रे वक्र भ्रुओं वाले योगी!

दिखला मत मुझको वह मरुथल,

जिसमे जाएगी खो जाएगी

मेरी द्रुत गति,मेरी ध्वनि कल.


है ठीक अगर तेरा कहना,

मैं और चलूँगी इठलाकर;

संदेहों में क्यूँ व्यर्थ पडूँ?

मेरा तो विश्वास अटल--


मैं जिस जड़ मरु में पहुंचूंगी

कर दूँगी उसको जीवन मय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!


११.

लघुतम गुरुतम से संयोजित --

यह जान मुझे जीवन प्यारा

परमाणु कँपा जब करता है

हिल उठता नभ मंडल सारा!


यदि एक वस्तु भी सदा रही,

तो सदा रहेगी वस्तु सभी,

त्रैलोक्य बिना जलहीन हुए

सकती न सूख कोई धारा;


सब सृष्टि नष्ट हो जाएगी,

हो जाएगा जब मेरा क्षय.

उल्लास-चपल, उन्माद-तरल,

प्रति पल पागल--मेरा परिचय!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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