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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022

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१.

सुरा पी,मद पी,कर मधुपान,

रही बुलबुल डालों पर बोल!


लिए मादकता का संदेश

फिर मैं कब से जग के बीच ,

कहीं पर कहलाया विक्षिप्त,

कहीं पर कहलाया मैं नीच;


सुरीले कंठों का अपमान

जगत् में कर सकता है कौन?

स्वयं,लो,प्रकृति उठी है बोल

विदा कर अपना चिर व्रत मौन


अरे मिट्टी के पुतलों, आज

सुनो अपने कानो को खोल,

सुरा पी,मद पी,कर मधुपान,

रही बुलबुल डालों पर बोल!


२.

यही श्यामल नभ का संदेश

रहा जो तारों के संग झूम,

यही उज्ज्वल शशि का संदेश

रहा जो भू के कण-कण चूम,


यही मलयानिल का संदेश

रहे जिससे पल्लव-दल डोल,

यही कलि-कुसुमों का संदेश

रहे जो गाँठ सुरभि की खोल,


यही ले-ले उठतीं संदेश

सलिल की सहज हिलोरें लोल;

प्रकृति की प्रतिनिधि बनकर आज

रही बुलबुल डालों पर बोल!


३.

अरुण हाला से प्याला पूर्ण

ललकता,उत्सुकता के साथ

निकट आया है तेरे आज

सुकोमल मधुबाला के हाथ;


सुरा-सुषमा का पा यह योग

यदि नहीं पीने का अरमान,

भले तू कह अपने को भक्त,

कहूँगा मैं तुझको पाषाण;


हमे लघु-मानव को क्या लाज,

गए मन मुनि-देवों के मन दोल;

सरसता से संयम की जीत

रही बुलबुल डालों पर बोल!


४.

कहीं दुर्जय देवों का कोप--

कहीं तूफ़ान कहीं भूचाल,

कहीं पर प्रलयकारिणी बाढ़,

कहीं पर सर्वभक्षिनी ज्वाल;


कहीं दानव के अत्याचार,

कहीं दीनों की दैन्य पुकार,

कहीं दुश्चिंताओं के भार

दबा क्रन्दन करता संसार;


करें,आओ,मिल हम दो चार

जगत् कोलाहल में कल्लोल;

दुखो से पागल होकर आज

रही बुलबुल डालों पर बोल!


५.

विभाजित करती मानव जाति

धरा पर देशों की दीवार,

ज़रा ऊपर तो उठ कर देख,

वही जीवन है इस-उस पर;


घृणा का देते हैं उपदेश

यहाँ धर्मों के ठेकेदार

खुला है सबके हित,सब काल

हमारी मधुशाला का द्वार,


करे आओ विस्मृत के भेद,

रहें जो जीवन में विष घोल;

क्रांति की जिह्वा बनकर आज,

रही बुलबुल डालों पर बोल!


६.

एक क्षण पात-पात में प्रेम,

एक क्षण डाल-डाल पर खेल,

एक क्षण फूल-फूल से स्नेह,

एक क्षण विहग-विहग से मेल;


अभी है जिस क्षण का अस्तित्व ,

दूसरे क्षण बस उसकी याद,

याद करने वाला यदि शेष;

नहीं क्या संभव क्षण भर बाद


उड़ें अज्ञात दिशा की ओर

पखेरू प्राणों के पर खोल

सजग करती जगती को आज

रही बुलबुल डालों पर बोल!


७.

हमारा अमर सुखों का स्वप्न,

जगत् का,पर,विपरीत विधान,

हमारी इच्छा के प्रतिकूल

पड़ा है आ हम पर अनजान;


झुका कर इसके आगे शीश

नहीं मानव ने मानी हार

मिटा सकने में यदि असमर्थ ,

भुला सकते हम यह संसार;


हमारी लाचारी की एक

सुरा ही औषध है अनमोल;

लिए निज वाणी में विद्रोह

रही बुलबुल डालों पर बोल!


८.

जिन्हें जीवन से संतोष,

उन्हें क्यूँ भाए इसका गान?

जिन्हें जग-जीवन से वैराग्य,

उन्हें क्यूँ भाए इसकी तान?


हमें जग-जीवन से अनुराग,

हमें जग-जीवन से विद्रोह;

हमें क्या समझेंगे वे लोग,

जिन्हें सीमा-बंधन का मोह;


करे कोई निंदा दिन-रात

सुयश का पीटे कोई ढोल,

किए कानों को अपने बंद,

रही बुलबुल डालों पर बोल!

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रचनाएँ
मधुबाला
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स्वयं बच्चन ने इन सबको एक साथ पढ़ने का आग्रह किया है। कवि ने कहा है : ''आज मदिरा लाया हूं-जिसे पीकर भविष्यत् के भय भाग जाते हैं और भूतकाल के दुख दूर हो जाते हैं...., आज जीवन की मदिरा, जो हमें विवश होकर पीनी पड़ी है, कितनी कड़वी है। ले, पान कर और इस मद के उन्माद में अपने को, अपने दुख को, भूल जा। ''‘मधुबाला’ की कविताओं की रचना 1934-35 में हुई थी, इसका प्रथम संस्करण 1936 में हुआ था। बीस-बाईस वर्ष का समय, विशेषकर तीव्र गति से भागते हुए आधुनिक युग में, जनता की रुचि-रुझान को परिवर्तित कर देने के लिए बहुत पर्याप्त है। फिर भी इन कविताओं की ओर जनता का आकर्षण घटा नहीं। कवि का आदर्श तो यही होना चाहिए कि वह काव्य के ऐसे रमणीय रूप का निर्माण करे जिसमें दिनानुदिन नवीनता का आभास होता रहे। यह बहुत ऊँची बात हुई। लेकिन यदि किसी रचना पर प्राय: चौथाई शताब्दी तक काल की छाया न पड़े तो वह थोड़ी-बहुत बधाई की पात्र तो समझी ही जाएगी। प्राय: देखने में आता है कि दुनिया में कवि और प्रेमी के प्रति ईर्ष्या रखने वाले, उनसे विरोध करने वाले जितने लोग पैदा हो जाते हैं उतने किसी और के प्रति नहीं :
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मधुबाला

28 जुलाई 2022
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मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल, बरसाती चल, बरसाती चल । झंकृत हों मेरे कानों में, चंचल, तेरे कर के कंकण, कटि की किंकिणि, पग के पायल--, कंचन पायल, ’छन्‌-छन्‌’ पायल । मधुवर्षिणि, मधु बरसाती चल,

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1. मधुबाला

28 जुलाई 2022
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1. मैं मधुबाला मधुशाला की, मैं मधुशाला की मधुबाला! मैं मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के धट मुझ पर बलिहारी, प्यालों की मैं सुषमा सारी, मेरा रुख देखा करती है मधु-प्यासे नयनों की माला। मैं मधुशाला

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2. मालिक-मधुशाला

28 जुलाई 2022
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१. मैं ही मधुशाला का मालिक, मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! मधुपात्र, सुरा, साक़ी लाया, प्याली बाँकी-बाँकी लाया, मदिरालय की झाँकी लाया, मधुपान करानेवाला हूँ । मैं ही मालिक-मधुशाला हूँ ! २. आ देखो

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3. मधुपायी

28 जुलाई 2022
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१. मधु-प्यास बुझाने आए हम, मधु-प्यास बुझाने हम आए ! पग-पायल की झनकार हुई, पीने को एक पुकार हुई, बस हम दीवानों की टोली चल देने को तैयार हुई, मदिरालय के दरवाज़ों पर आवाज़ लगाने हम आए | मधु-प्यास

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4. पथ का गीत

28 जुलाई 2022
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१. गुंजित कर दो पथ का कण-कण कह मधुशाला ज़िंदाबाद ! सुन्दर-सुन्दर गीत बनाता, गाता, सब से नित्य गवाता, थकित बटोही का बहला मन जीवन-पथ की श्रांति मिटाता, यह मतवाला ज़िंदाबाद ! गुंजित कर दो पथ का कण-

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5. सुराही

28 जुलाई 2022
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१. मैं एक सुराही हाला की! मैं एक सुराही मदिरा की! मदिरालय हैं मन्दिर मेरे, मदिरा पीनेवाले, चेरे, पंडे-से मधु-विक्रेता को जो निशि-दिन रहते हैं घेरे; है देवदासियों-सी शोभा मधुबालाओं की माला की ।

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6. प्याला

28 जुलाई 2022
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मिट्टी का तन,मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय! १. कल काल-रात्रि के अंधकार में थी मेरी सत्ता विलीन, इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हीं, कल मादकता थी भरी नींद थी जड़ता से ल

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7. हाला

28 जुलाई 2022
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उल्लास-चपल, उन्माद-तरल, प्रति पल पागल--मेरा परिचय! १. जग ने ऊपर की आँखों से देखा मुझको बस लाल-लाल, कह डाला मुझको जल्दी से द्रव माणिक या पिघला प्रवाल, जिसको साक़ी के अधरों ने चुम्बित करके स

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8. प्यास

28 जुलाई 2022
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१. तेरा-मेरा संबंध यही- तू मधुमय औ' मैं तृषित-हृदय! तू अगम सिंधु की राशि लिए, मैं मरु असीम की प्यास लिए, मैं चिर विचलित संदेहों से, तू शांत अटल विश्वास लिए; तेरी मुझको आवश्यकता, आवश्यकता तुझको

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9. बुलबुल

28 जुलाई 2022
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१. सुरा पी,मद पी,कर मधुपान, रही बुलबुल डालों पर बोल! लिए मादकता का संदेश फिर मैं कब से जग के बीच , कहीं पर कहलाया विक्षिप्त, कहीं पर कहलाया मैं नीच; सुरीले कंठों का अपमान जगत् में कर सकता

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10. पाटल-माल

28 जुलाई 2022
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नग्न तृण, तरु, पल्लव, खग वृंद, नग्न है श्यामल-तल आकाश, नग्न रवि, शशि, तारक, नीहार, नग्न बादल, विद्युत, वातास, जलधि के आंगन में अविराम, ऊर्मियाँ नर्तन करतीं नग्न, सरोवर, नद, निर्झर, गिरि, श्रृं

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11. इस पार उस पार

28 जुलाई 2022
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1 इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा! यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का, लहरा-लहरा यह शाखा‌एँ कुछ शोक भुला देती मन का, कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रह

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12. पाँच पुकार

28 जुलाई 2022
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१. गूँजी मदिरालय भर में लो,'पियो,पियो'की बोली! संकेत किया यह किसने, यह किसकी भौहें घूमीं? सहसा मधुबालाओं ने मदभरी सुराही चूमी; फिर चली इन्हें सब लेकर, होकर प्रतिबिम्बित इनमें, चेतन का कहन

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13. पगध्वनि

28 जुलाई 2022
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पहचानी वह पगध्वनि मेरी , वह पगध्वनि मेरी पहचानी! १. नन्दन वन में उगने वाली , मेंहदी जिन चरणों की लाली , बनकर भूपर आई, आली मैं उन तलवों से चिर परिचित मैं उन तलवों का चिर ज्ञानी! वह पगध्वनि मे

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14. आत्‍मपरिचय

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1 मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्‍यार लिए फिरता हूँ; कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर मैं सासों के दो तार लिए फिरता हूँ! 2 मैं स्‍नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न

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