*मनुष्य जब इस धरा धाम पर जन्म लेता है तो उसके जन्म से लेकर की मृत्यु पर्यंत पूरे जीवन काल में सुख एवं दुख समय समय पर आते जाते रहते हैं | प्रायः विद्वानों ने अपनी टीकाओं में यह लिखा है कि जब मनुष्य के विपरीत कोई कार्य होता है तब वह दुखी हो जाता है , और जब अपने अनुकूल सारे कार्य होते रहते हैं तब वह सु
*आदिकाल के मनुष्यों ने अपने ज्ञान , वीरता एवं साहस से अनेकों ऐसे कार्य किए हैं जिनका लाभ आज तक मानव समाज ले रहा है | पूर्वकाल के मनुष्यों ने आध्यात्मिक , वैज्ञानिक , भौतिक एवं पारलौकिक ऐसे - ऐसे दिव्य कृत्य किए हैं जिनको आज पढ़ कर या सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है परंतु कभी मनुष्य इस पर विचार नहीं करत
*ईश्वर की बनाई इस महान श्रृष्टि में सबसे प्रमुखता कर्मों को दी गई है | चराचर जगत में जड़ , चेतन , जलचर , थलचर , नभचर या चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने वाला कोई भी जीवमात्र हो | सबको अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है | ईश्वर समदर्शी है , ईश्वर की न्यायशीलता प्रसिद्ध है | ईश्वर का न्याय सिद्
*सनातन धर्म में अनेकों देवी - देवताओं का वर्णन मिलता है , इसके अतिरिक्त यक्ष , किन्नर , गंधर्व आदि सनातन धर्म की ही एक शाखा हैं | इन देवी - देवताओं में किस को श्रेष्ठ माना जाए इसको विचार करके मनुष्य कभी-कभी भ्रम में पड़ जाता है | जबकि सत्य यह है कि किसी भी देवी - देवता को मानने के पहले प्रत्येक
*मानव जीवन में सामाजिकता , भौतिकता एवं वैज्ञानिकता के विषय में अध्ययन करना जितना महत्वपूर्ण है , उससे कहीं महत्वपूर्ण है स्वाध्याय करना | नियमित स्वाध्याय जीवन की दिशा एवं दशा निर्धारित करते हुए मनुष्य को सद्मार्ग पर अग्रसारित करता है | स्वाध्याय का अर्थ है :- स्वयं के द्वारा स्वयं का अध्ययन | प्राय
*यह संसार इतनी विचित्रताओं से भरा है , इसमें इतना रहस्य व्याप्त है कि इसे जानने - समझने को प्रत्येक व्यक्ति उत्सुक एवं लालायित रहता है | संसार की बात यदि छोड़ दिया तो हमारा सनातन धर्म एवं मानव जीवन अनेकानेक रहस्यों का पर्याय है | जिसे जानने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को होती है और होनी भी चाहिए | व्य
*हमारे देश भारत की संस्कृति सनातन से आध्यात्मिक रही है | यहाँ के लोगों में जन्म से ही अध्यात्म भरा होता है | भारत अपने अध्यात्म और ऋषियों की वैज्ञानिकता के कारण ही विश्वगुरू बना है | आज जैसे किसी नये प्रयोग के लिए सारा विश्व अमेरिका एवं चीन की ओर देखता है | वैसे ही पूर्व में भारत की स्थिति थी | हम भ
*इस संसार में सब का अंत निश्चित है ! चाहे वह जीवन हो या जीवन में होने वाली अनुभूतियां ! मानव जीवन भर एक हिरण की तरह कुछ ढूंढा करता है | हर जगह मानव को आनंद की ही खोज रहती है चाहे वह भोजन करता हो, या भजन करता , हो कथा श्रवण करता हो सब का एक ही उद्देश्य होता है आनंद की प्राप्ति करना | आनंद भी कई प्रक
*सनातन धर्म मानव शरीर को मोक्ष प्राप्ति का साधन बताते हुए परम पूज्य बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं :---- "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाई न जे परलोक संवारा !!" अर्थात :- यह मानव शरीर साधना करने का धाम और मोक्ष प्राप्ति का द्वार है , इस मानव शरीर में आकर के जीव यह द्वार खोल सकता है , और इसी मान
*सनातन हिन्दू धर्म में पूजा - पाठ का विशेष महत्व है | पूजा कोई साधारण कृत्य नहीं है | यदि आध्यात्मिकता की दृष्टि से देखा जाय तो पूजा करने का अर्थ है स्वयं को परिमार्जित करना | पूजा में सहयोग करने वाली सामग्रियों पर यदि ध्यान दिया जाय तो उनकी अलौकिकता परिलक्षित हो जाती है | किसी भी पूजन में आसन का वि
*इस सकल सृष्टि में चौरासी लाख योनियों का विवरण मिलता है | जिसमें सर्वश्रेष्ठ मानव योनि कही गई है | परमपिता परमात्मा ने मनुष्य शरीर देकरके हमारे ऊपर जो उपकार किया है इसकी तुलना नहीं की जा सकती है | मानव जीवन पाकर के यदि मनुष्य के अंदर आत्मविश्वास न हो तो यह जीवन व्यर्थ ही समझना चाहिए | क्योंकि मानव
*इस सृष्टि का सृजन करके हमेम इस धरा धाम पर भेजने वाली उस परमसत्ता को ईश्वर कहा जाता है | ईश्वर के बिना इस सृष्टि की परिकल्पना करना ही व्यर्थ है | कहा भी जाता है कि मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता जो कुछ करता है ईश्वर ही करता है | वह ईश्वर जो सर्वव्यापी है और हमारे पल पल के कर्मों का हिसाब रखता है |
*इस धराधाम पर ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति बनकर आई मनुष्य | मनुष्य की रचना परमात्मा ने इतनी सूक्ष्मता एवं तल्लीनता से की है कि समस्त भूमण्डल पर उसका कोई जोड़ ही नहीं है | सुंदर मुखमंडल , कार्य करने के लिए हाथ , यात्रा करने के लिए पैर , भोजन करने के लिए मुख , देखने के लिए आँखें , सुनने के लिए कान , एवं
*सनातन धर्म में मानव जीवन का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होना बताया गया है | प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर चाहे जैसे कर्म - कुकर्म करता रहे परंतु चौथेपन में वह मोक्ष की कामना अवश्य करता है | प्राय: यह प्रश्न उठा करते हैं कि मोक्ष की प्राप्ति तो सभी चाहते हैं परंतु मृत्यु के बाद मनुष्य को क्या गति प्राप्त
*सनातन धर्म की मान्यतायें कभी भी आधारहीन नहीं रही हैं | यहाँ चौरासी लाख योनियों का विवरण मिलता है | इन्हीं चौरासी लाख योनियों में एक योनि है हम सबकी अर्थात मानव योनि | ये चौरासी लाख योनियाँ आखिर हैं क्या ?? इसे वेदव्यास भगवान ने पद्मपुराण में लिखा है :-- जलज नव लक्षाण
*इस संसार में मानवयोनि पाकर आज मनुष्य इस जीवन को अपने - अपने ढंग से जीना चाह रहा है और जी भी रहा है | जब परिवार में बालक का जन्म होता है तो बड़े उत्साह के साथ तरह - तरह के आयोजन होते हैं | छठवें दिन छठी फिर आने वाले दिनों अनेकानेक उत्सव बालक के एक वर्ष , दो वर्ष आदि होने पर उत्साहपूर्वक मनाये जाते ह
*मनुष्य इस संसार में अपने क्रिया - कलापों से अपने मित्र और शत्रु बनाता रहता है | कभी - कभी वह अकेले में बैठकर यह आंकलन भी करता है कि हमारा सबसे बड़ा शत्रु कौन है और कौन है सबसे बड़ा मित्र ?? इस पर विचार करके मनुष्य सम्बन्धित के लिए योजनायें भी बनाता है | परंतु क्या मनुष्य का शत्रु मनुष्य ही है ?? क्
*इस सकल सृष्टि में उत्पन्न चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ , इस सम्पूर्ण सृष्टि के शासक / पालक ईश्वर का युवराज मनुष्य अपने अलख निरंजन सत चित आनंग स्वरूप को भूलकर स्वयं ही याचक बन बैठा है | स्वयं को दीन हीन व दुर्बल दर्शाने वाला मनुष्य उस अविनाशी ईश्वर का अंश होने के कारण आत्मा रूप में अजर अमर अव
*सनातन साहित्यों में मनुष्यों के लिए चार पुरुषार्थ बताये गये हैं :- धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष | इनमें से अन्तिम एवं महत्वपूर्ण है मोक्ष , जिसकी प्राप्ति करना प्रत्येक मनुष्य का लक्ष्य होता है | मोक्ष प्राप्त करने के लिए भगवत्कृपा का होना परमावश्यक है | भगवत्कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तिमार्ग का अनु
*इस सृष्टि के चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानवयोनि प्राप्त करके मनुष्य अपने जीवनकाल में अनेकों प्रकार के अनुभव प्राप्त करता है ! इसी क्रम में मनुष्य को मोह , क्रोध , प्रेम , मिलन , वियोग आदि के भी खट्टे - मीठे अनुभव होते रहते हैं | जहाँ संयोग है वहीं वियोग भी है क्योंकि वियोग का प्रादुर्भाव स