*इस संसार में सब का अंत निश्चित है ! चाहे वह जीवन हो या जीवन में होने वाली अनुभूतियां ! मानव जीवन भर एक हिरण की तरह कुछ ढूंढा करता है | हर जगह मानव को आनंद की ही खोज रहती है चाहे वह भोजन करता हो, या भजन करता , हो कथा श्रवण करता हो सब का एक ही उद्देश्य होता है आनंद की प्राप्ति करना | आनंद भी कई प्रकार का होता है | ब्रम्हानंद, परमानंद, आत्मानंद आदि आदि | आनंद की खोज में कभी-कभी मानव अपनों से बहुत दूर होता चला जाता है | कहते हैं अधिकता हर चीज की घातक होती है यदि किसी चीज का प्रारंभ हुआ है तो उसका अंत निश्चित है | ठीक उसी प्रकार आनंद का भी अंत है | आनंद जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचता है , मनुष्य आनंद के चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर लेता है सब उसको यह लगता है यह संसार व्यर्थ है और उसमें वैराग्य उत्पन्न हो जाता है | प्राय: वैराग्य का अर्थ लिया जाता है कि घर बार छोड़ कर उदास हो कर गंगा किनारे बैठ जाना | इसीलिए कुछ लोग कहते हैं कि हम तो गृहस्थ वाले हैं अत: हम वैराग्य कैसे करें ? कुछ लोगों का कहना है कि घर-बार, समाज, सोसायटी सब कुछ छोड़ कर जंगलों में या शहर से दूर निकल जाओ | जो घर में रहता है, उसके बारे में कहते हैं कि ‘यह राग वाला है, संसारी है, गृहस्थी है |’* *आज इस विषय पर विचार करना है कि वैराग्य क्या है ??वैराग्य का यह अर्थ नहीं है कि घर-बार छोड़ कर हरिद्वार जाकर बैठ जाया जाय तो वैराग्य है | संसार को असार जानना, देह को मिट्टी समझना- वैराग्य है | उसके लिए यह ज़रूरी नहीं है कि तुम शहर या गाँव में रहो या हिमालय की किसी गुफा में रहो | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जिस दिन आपको यह बात समझ आ गई कि तुम्हारा यह देह मिट्टी है और जिस संसार को तुम देख रहे हो, यह सदा नहीं रहेगा, इस बात का निश्चय हो जाए, यही वैराग्य है | इस वैराग्य को पक्का करो | फिर बड़े मज़े से घर में रहो |
व्यापार भी करो,
नौकरी भी करो, बच्चे भी पालो, दीन-दुनिया, रीति-रिवाज़ जो भी करना चाहो, सो करो| संसार में रहने से वैराग्य ख़त्म नहीं होता| संसार छोड़ देने से भी मन राग से छूट जाएगा- यह बात झूठ है| क्योंकि जिस मन को पकड़ने की आदत हो, राग करने की आदत हो, पहले तो बीवी-बच्चे, घर, रिश्तेदार, धन, प्रतिष्ठा को पकड़ते थे और मान लो ये सब छोड़ कर कहीं चला जाए, वैसे तो कोई जाता नहीं, है किसी का दीवाला निकल जाए, कर्ज़दार सिर पर खड़े हैं, पैसा है नहीं, घबराहट के मारे भाग सकता है, किसी की बीवी मर गई या मियाँ-बीवी में लड़ाई हो, तो भी भाग जाते हैं, तो ऐसा आदमी फिर चाहे कहीं भी चला जाए, वह वहाँ भी अपने मन की पकड़ को बना लेगा| जिसके मन में आसक्ति है, वह अगर घर छोड़ कर किसी आश्रम में, गुफा में हरिद्वार, ऋषिकेश चला जाए तो वहाँ जाकर राग बना लेगा कि ‘ये मेरा कमरा है’|* *यदि वैराग्य वास्तव में करना है तो आनंद की अनुभूति करो जब आनंद अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचता है तो वैराग्य स्वयं प्रकट हो जायेगा |*