*यह संसार इतनी विचित्रताओं से भरा है , इसमें इतना रहस्य व्याप्त है कि इसे जानने - समझने को प्रत्येक व्यक्ति उत्सुक एवं लालायित रहता है | संसार की बात यदि छोड़ दिया तो हमारा सनातन
धर्म एवं मानव जीवन अनेकानेक रहस्यों का पर्याय है | जिसे जानने की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति को होती है और होनी भी चाहिए | व्यक्ति की यही इच्छा जिज्ञासा को जन्म देती है | और यह जिज्ञासा व्यक्ति किसी सद्गुरु से या विद्वतसमाज में समय आने पर व्यक्त करता है | जिसका यथोचित उत्तर पाकर व्यक्ति संतुष्ट हो जाता है या तो संतुष्ट होने का प्रयास करता है | कभी - कभी तो कुछ जिज्ञासायें इस प्रकार होती हैं जिसका विद्वानों की नजर में कोई महत्व नहीं होता परंतु वह जिज्ञासु के लिए बहुत महत्व रखती है | इस संसार में जानने योग्य अनेक बातें हैं | विद्या के अनेक क्षेत्र हैं | खोज के लिए, जानकारी प्राप्त करने के लिए अनेक मार्ग हैं | कई
विज्ञान ऐसे हैं जिनकी बहुत कुछ जानकारी प्राप्त करना मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है | क्यों? कैसे? कहां? कब? जैसे प्रश्न मनुष्य हर क्षेत्र के लिए करता है | इस जिज्ञासा भाव के कारण ही मनुष्य अब तक इतना ज्ञानी व साधन-संपन्न् बन पाया है |
ज्ञान ही जीवन का प्रकाश स्तंभ है।* *आज यह विचारणीय विषय है कि मनुष्य सब कुछ तो जानना चाहता परंतु स्वयं के विषय में अनभिज्ञ बना रहता है , जबकि अपने स्वयं की जानकारी होना" सर्वोपरि है | अनेक जिज्ञासाओं के साथ सर्वप्रथम मानव को यह जिज्ञासा होनी चाहिए कि हम क्या हैं ?? हमारा कर्तव्य क्या है ?? आदि - आदि | हम बाहरी अनेक बातों को जानते हैं या जानने का प्रयत्न करते हैं, मगर यह भूल जाते हैं कि हम स्वयं क्या हैं? अपने आपका ज्ञान प्राप्त किए बिना जीवन का क्रम बड़ा अनिश्चित और कंटकाकीर्ण होता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का विचार है कि अपने वास्तविक स्वरूप की जानकारी न होने के कारण मनुष्य न सोचने लायक बातें भी सोचता है और न करने लायक कार्य करता है | सच्ची सुख-शांति का राजमार्ग एक ही है और वह है 'आत्म-ज्ञान" | 'मैं क्या हूं?" इस प्रश्न का उत्तर शब्दों द्वारा नहीं वरन् साधना द्वारा हृदयंगम करने का प्रयत्न हर मनुष्य को करना चाहिए | और यह तभी सम्भव है जब हम स्वयं के स्वरूप को जानने का प्रयास करेंगे | स्वयं के विषय में जिज्ञासा हर व्यक्ति के हृदय में होनी चागिए | कुछ भी जानने - समझने के पहले हम क्यों स्वयं को जानने एवं समझने का प्रयत्न करें | और यह तभी सम्भव है जब हम किसी सद्गुरु की शरण में जाकर
अध्यात्म मार्ग का अनुसरण करेंगे | क्योंकि यही वह मार्ग है जहाँ मानव की समस्त जिज्ञासायें स्वत: शान्त हो जाती हैं |* *स्वयं को जानने के लिए अध्यात्म - पथ का पथिक बनना पड़ेगा | क्योंकि अध्यात्म मार्ग के पथिकों को स्वयं को जानने पर ही सबसे उपयोगी पथ मिल सकेगा |*