*सनातन धर्म के आदिग्रन्थ (चारों वेद ) का अध्ययन करके वेदव्यास जी ने उनका विन्यास किया और पुराण लिखे उन पुराणों एवं वेदों को आत्मसात करके हमारे ऋषियों अनेक उपनिषद लिखे ! इन तमाम धर्मग्रंथों में जीवन का सार तो है ही साथ ही जीवन की गुत्थियों को सुलझाने का रहस्य भी छुपा हुआ है | सनातन धर्म में भगवान श्र
*सनातन धर्म में तपस्या का महत्वपूर्ण स्थान रहा है | हमारे ऋषियों - महर्षियों एवं महापुरुषों ने लम्बी एवं कठिन तपस्यायें करके अनेक दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की हैं | तपस्या का नाम सुनकर हिमालय की कन्दराओं का चित्र आँखों के आगे घूम जाती है | क्योंकि ऐसा सुनने में आता है कि ये तपस्यायें घर का त्याग करके
*सनातन धर्म के आदिग्रन्थ (चारों वेद ) का अध्ययन करके वेदव्यास जी ने उनका विन्यास किया और पुराण लिखे उन पुराणों एवं वेदों को आत्मसात करके हमारे ऋषियों अनेक उपनिषद लिखे ! इन तमाम धर्मग्रंथों में जीवन का सार तो है ही साथ ही जीवन की गुत्थियों को सुलझाने का रहस्य भी छुपा हुआ है | सनातन धर्म में भगवान श्र
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *इस संसार में भगवान की माया बहुत ही प्रबल होकर समस्त प्राणिमात्र को नचाती रहती है | इसी माया के वशीभूत होकर मनुष्य लोभ, मोह, क्रोध, काम अहंकार, मात्सर्य आदिक गुणों के आधीन होकर अपने क्रिया कलाप करने लगता है | इन षडरिपुओं में सबसे प्रबल एवं घातक मोह को बताते हुए गोस्वाम
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *यह संसार परिवर्तनशील है ! यहाँ कभी भी कुछ भी एक जैसा न रहा है और न ही रहेगा | नित्यप्रति परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है | जिस प्रकार प्रात:काल सूर्योदय होता है और दिनभर सारे संसार को प्रकाशित करने के बाद वह पुन: समयनुकूल अपने पीछे एक गहन
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! आदिकाल से भारत देश में सतसंग , चर्चा - परिचर्चा का बड़ा महत्व रहा है | इन सतसंग कथाओं , परिचर्चाओं मे लोगों की रुचि रहा करती थी , एक विशाल जन समूह एकत्र होकर इन भगवत्कथाओंं (सतसंग) को बड़े प्रेम से श्रवण करके अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता था तब भारत को विश्वगुरु
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! इस असार संसार में आने के बाद मनुष्य जैसे खो जाता और उसकी एक यात्रा प्रारम्भ हो जाती है | मनुष्य द्वारा नित्यप्रति कुछ न कुछ खोजने की प्रक्रिया शुरू होती है | मनुष्य का सम्पूर्ण जीवनकाल एक खोज में ही व्यतीत हो जाता है | कभी वह वैज्ञानिक बनकर नये - नये प्रयोगों की खोज कर
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! हमारे ऋषियों - महर्षियों/महापुरुषों ने प्रारम्भ से अध्यात्म का मार्ग चुना एवं सभी को आध्यात्मिक बनाने का प्रयास करते रहे | प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक बनना भी चाहता है | आध्यात्मिक बनने के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता यह जानने की है कि आखिर "अध्यात्म" है क्या ?? अध्य + आत्म
नाक में घी डालने से लाभ –१) मानसिक शांति व मस्तिष्क को शांति मिलती है |२) स्मरणशक्ति व नेत्रज्योति बढती है |३) आधासीसी (माइग्रेन) में राहत मिलती है |४) नाक की खुश्की मिटती है |५) बाल झड़ना व सफ़ेद होना बंद होकर नये बाल आने लगते हैं |६) शाम को
यथायोग्य वर्ताव का विचित्र तर्क: पण्डित महेंद्र पाल जी ने स्वयं रचित निरर्थक विवाद और अपशब्दों की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए एक विचित्र तर्क दिया है कि अपशब्द उन्होंने इसलिए प्रयोग किये और वो निरंतर कर रहे हैं क्योंकि वो शिष्य ऋषि दयानन्द के
मित्रो गाय आवारा नहीं है ,आवारा वो होता है जिसका खुद का घर होफिर भी बाहर घूमता हो , गायों के हिस्से की 3 करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ ज़मीन गोचर भूमि भूमि पिछले कुछ वर्षो मे भ्रष्ट नेताओ और अधिकारियों ,ग्राम पंचायतों द्वारा हड़प ली गई उस पर नाजा
सनातन धर्म, भारतीय इतिहास और इसके विरुद्ध साजिशें : आज आधुनिक भारतीय इतिहास लेखन के लिए ब्रिटिश इतिहासकारों को श्रेय दिया जाता है - जबकी वास्तविकता में ये बेहद निरंकुश और बर्बर प्रविर्ति के थे जिन्होंने इस उपमहाद्वीप में पाए गए हर उस चीज़ का नाश किया जो इसके गौरवशाली अतीत का प्रतिक था।आज भारत के बा
आज इस संसार में जो भी कार्य धर्म समझकर हो रहे हैं उन सभी कार्य में धर्म का लेशमात्र भी नहीं है..धर्म की परिभाषा से आज दुनिया कोसो दूर जा चुकी है .. आइये जानते हैं कि ... धर्म है क्या.. sanskrit के 'धृ' धातु में धारणे पूर्वक मनिन् प्रत्यय लगने से धर्म शब्द बनता है जिस
*ईश्वर और भगवान का भेद* *ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः ।* *ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।। -(विष्णु पुराण 6/5/74)**अर्थ―*सम्पूर्ण ऐश्वर्य,धर्म,यश,श्री,ज्ञान और वैराग्य--इन छह का नाम भग है।इन छह गुणों से युक्त महान पुर
सबसे पहले तो हम देश को गुलामी से आजाद कराने वाले क्रान्तिकारि- स्वतन्त्रता आन्दोलन में कई संगठनो ने महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्हीं में से एक अमर नाम 'आर्यसमाज' का भी रहा हैं |आर्यसमाज के प्रवर्तक *स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1885 मे अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश मे स्वदेशी राज्य का उदघोष करते हुए कहा...*"
यूरोप की विवशता....हमारी मूर्खता...1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना उनकी विवशता ओर शादी बाले वाले दिन भरी गर्मीं में कोट - पेंट डाल कर बरात लेकर जाना हमारी मुर्खता !2. ठण्ड में नाक बहते रहने के क
*हिन्दुओं के भगवान* मुसलमान और ईसाई कभी अपनी धार्मिक पुस्तकों के विरुद्ध कार्य नही करते , उन्होंने मोहम्मद व ईसा के अलावा किसी को अपना भगवान नही माना । और अपने कट्टर हिन्दू भाइयो को देखो - 1: रेवन में कुतिया का मंदिर बना दिया , कुतिया को भगवान बना दिया 2: राजस्थान म
अमरनाथ पहुंचो भाई- इस मैसेज को इतना वायरल करो कि अगले साल(2020 में)श्री अमरनाथ भगवान 🚩 के दर्शन के लिए 10 लाख से अधिक हिन्दू पहुंचे जो इस साल केवल डेढ़ लाख रह गया है।पिछले कुछ वर्षों से मुसलमान 🕋 ये मैसेज फैला रहे है कि अमरनाथ यात्रा पर न जाये, इससे कश्मीरियों की आर्थिक स्थिति खराब होगी और एक दो सा
कुंडलिनी जागरण की सत्य समझ अहम् ब्रह्मास्मि। तत्वमसि। संपूर्ण ब्रह्मांड दिव्य चेतन बुद्धिमान ऊर्जा से युक्त है। हमारे संसार की रचना का हेतु भी यही दिव्य चेतना है। समस्त ब्रम्हांड में इसी ऊर्जा का कंपन (vibration) है। मानव जिस संसार को अपनी पंच इंद्रियों से अनुभव करता
ईश्वर कब मिलता है(Eeshvar kab milataa hai)इस वीडियो में यह बताने का प्रयास किया गया है कि कर्म हमें कैसे प्रभावित करते हैं, इनका फल कब मिलता है, आत्मा को दूसरे शरीर में कौन ले जाता है, कर्म का बन्धन क्यों होता है और ईश्वर कब मिलता है।Share, Support, Subscribe!!!Sub