*मानव जीवन में सामाजिकता , भौतिकता एवं वैज्ञानिकता के विषय में अध्ययन करना जितना महत्वपूर्ण है , उससे कहीं महत्वपूर्ण है स्वाध्याय करना | नियमित स्वाध्याय जीवन की दिशा एवं दशा निर्धारित करते हुए मनुष्य को सद्मार्ग पर अग्रसारित करता है | स्वाध्याय का अर्थ है :- स्वयं के द्वारा स्वयं का अध्ययन | प्राय: मनुष्य अपना अधिकांश समय दूसरों के विषय या अन्य वस्तुओं के विषय में अध्ययन करके व्यतीत कर देता है | जिसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य स्वयं का अध्ययन करने के लिए समय ही नहीं निकाल पाता | जिसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य के आस - पास का जैसा वातावरण होता है उसी में वह भी रंगने लगता है | जिस प्रकार घर को साफ करने के लिए नित्य झाड़ू लगाना आवश्यक है , जिस प्रकार गंदे कपड़ों की सफाई करना आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य को अपने मन पर नियंत्रण करने एवं विचारों को प्रदूषित करने वाले काम , क्रोध , लोभ , मोह , ईर्ष्या , द्वेष , कपट हिंसा , असत्य , अहंकार , पैशुनता , अशौच , अविश्वास एवं ईश्वर पर अश्रद्धा आदि विकारों से बचने के लिए नियमित रूप से अपने मन की सफाई भी करनी चाहिए | मन की सफाई करने का सशक्त माध्यम है स्वाध्याय | यदि स्वाध्याय न करके मनुष्य सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर ही ध्यान केन्द्रित करके उसे ही सत्य मान लेता है तो उसके विचार एवं संस्कार भी दूषित होकर मन की गहराईयों में अपनी जड़ें मजबूत कर लेते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य अपने विषय में कभी भी कुछ नहीं जान पाता है , और उसका जीवन दूसरों के विषय में जानने के लिए ही उत्सुक रहकर व्यतीत हो जाता है |* *आज मनुष्यों के संस्कार जिस प्रकार लुप्त होते जा रहे हैं उसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा स्वाध्याय से विमुख होना ही है | स्वाध्याय का अर्थ मात्र पुस्तक पढना ही नहीं अपितु मौखिक
ज्ञान , चर्चा - परिचर्चा एवं सतसंग आदि करके भी मनुष्य अपने विषय में जान सकता है | परंतु आज के व्यस्ततम जीवन में मनुष्य अपने विषय में जानने के लिए उतना प्रयत्न नहीं करता है जितना दूसरों के विषय में और मुख्य रूप से दूसरों से दोषों को देखकर उसमें कमियाँ निकालने में कर रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज अनेकानेक विद्वान , सामाजिक कार्यकर्ता , राजनीतिज्ञ आदि मात्र दूसरों के विषय में और उनके दोषों (कमियों) के विषय में कुछ अधिक ही अध्ययन कर रहे हैं | आज कोई भी अपने दोषों को नहीं देखना चाहता या फिर मन में कुविचारों की पर्त इतनी ज्यादा हो गयी है कि उसे अपने दोष दिखाई ही नहीं पड़ते | अपने दोषों को परखने एवं जानने के लिए प्रत्येक मनुष्य को स्वाध्याय करना ही होगा अन्यथा यह सम्भव नहीं है | हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि स्वाध्याय में कभी आलस्य नहीं करना चाहिए | स्वाध्याय मन की मलिनता को साफ करके आत्मा को परमात्मा के निकट करने का सर्वोत्तम मार्ग है |* *जितने भी महान पुरुष हुए हैं उनको महान बनाने में उनके द्वारा किये गये स्वाध्याय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है | हमें भी स्वाध्याय अपनाना ही चाहिए |*