अंधकार से न घबराएॅ
प्रजातंत्र मूर्खों का शासन,
मूर्खों को क्या है अनुशासन?
सभी मूर्ख जब मिल जाते हैं,
पंडित को चकमा दे देते हैं।
इसे संवारने जो जाते हैं,
जूते चप्पल खा लेते हैं।
ईशा , बापू ... ने प्राण गॅवाये,
सुधार क्या मूर्खों को पाये?
पर, निराश क्या हुआ जाए!
दीप कुछ तम में जलाएॅ।
अंधकार में दीप जलाएॅ,
उजाला अंतरतम हो जाए।
जो स्वयं आलोकित होना चाहें,
अंधकार से न घबराएॅ।
........सकलदेव