यह शहर है शहर है यहाॅ फैशन का कहर है।
किसी को किसी का खोज है न खबर है।।
म्ंदिर-मंदिर में पुजारी जी का असर है।
गीता रामायण का नहीं कोई खबर है।।
गाॅव व टोले में इसका जो असर है।
लगता नहीं गाॅव में गाॅव का असर है।।
युवक व युवतियों का अधनंगा कहर है।
भौतिक-शक्ति में नैतिकता बेअसर है।।
लेता नहीं यहाॅ बुजुर्गों का खबर है।
सुखदायी जीवन का दुःखदायी सफर है।।
सर-सर सवारियों से एक्सीडेंट का कहर है।
देख दृष्य आहतों का काॅपते थर-थर हैं।।
लंबी-लंबी पंक्तियों में डाक्टरों का घर है।
पर ! गरीबों का यहाॅ न कोई गुजर है।।
पैसा है तो सकल ओर अपना पसर है।
बिना जीना अर्थ का दुभर है दुभर है।।