मूर्ख कौन
अक्षर ज्ञान से साक्षर बन, हाेशियार यार हो जाते हम।
मैट्रिक इंटर बीए एमए, कर योग्य हो जाते हम।
पर सिर्फ नैतिक-हीन हो, सज्जन क्या बन पाते हम।
तो फिर क्या कहलाते ?
इंजिनियर बन कमीशन खाते, बिना कमीशन साईन न करते।
डाॅक्टर की तो बात न पूछो, बिना फीस के दवा न लिखते।
छोड़ इमानदारी का दामन, सेवक क्या बन पाते हम ?
तो फिर क्या कहलाते ?
वैद्य व्यापारी ओझा जी , बात करते सोझा जी।
चूना लगाते पढ़े लिखे को, हाॅकते रोज बोलेरो जी।
बड़े-बड़े विज्ञापन देकर, क्या रोगी नहीं बनाते जी ?
तो वे क्या कहलाते जी ?
अनपढ़ जन जो नैतिक होते, कर्मलीन हो जीवन गढ़ते।
जगतीतल का सच्चा सेवक, अमृत का वह घॅूट जो पीते।
पढ़े लिखे अनैतिक जन तो, भार स्वरूप धरनी का बनते।
तो फिर क्या कहलाते ?