अर्हता ही नहीं जनता साथ मेरे खड़े हैं । शक्ति -तमस लिए दो -तीन ही बहक पड़े हैं ।। श्रेय लिए जनता आगे बढ़े हैं । प्रेय लिए दो -तीन नाहक अड़े हैं ।। धर्म लिए श्रेय हैं अर्थ लिए प्रेय हैं । धर्म अर्थ रण में जयी सदा धर्म है।।साथ दें "गोविंद" तो विजय श्री धर्म का। स्थापना हो सत्य का "गोविंद" का ये मर्म है।।--नोट- यह कविता तब लिखी गई थी जब मेरे एक शिक्षक मित्र द्वारा जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय के कार्यालय आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा था।
सकलदेव
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