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संघ और बीजेपी

13 सितम्बर 2016

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एक संघ संस्कार हे ,दूजा बीजेपी बफादार है।

एक स्वयंसेवक के पीछे, मचाए हाहाकार।।


"देश -धर्म " नाता है, स्वयं सेवक इसे निभाता है।

पार्टियों को तो सिर्फ, वोट बैंक ही भाता है ।


। डीएसई-आदेश का , नहीं हो रहा अनुपालन ।

इस घोर अवज्ञा का, हाय ! कौन करें निष्पादन ।।


दबा दिया अधिकारी को, पैसा व पैरवी ने ।

जनता को शोषित करते, ऐसे ये चन्द कमीने ।।


माननीय की पैरवी, उधर ढरक गई है।

जिधर नहीं ढरकनी, उधर सरक गई है।।


मुॅह बल गिरे थे अहं बल, माननीय ने उठा लिया ।

अनैतिकता को गले लगा, नैतिकता को ठुकरा दिया ।।


सकलदेव को रोकने में, माननीय का हाथ है।

संघ के अधिकारी को , विचारने की बात है।।


--नोट- यह कविता तब लिखी गई थी जब मेरे एक शिक्षक मित्र द्वारा जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय के कार्यालय आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा था।


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एक संघ संस्कार हे ,दूजा बीजेपी बफादार है। एक स्वयंसेवक के पीछे, मचाए हाहाकार।। "देश -धर्म " नाता है, स्वयं सेवक इसे निभाता है। पार्टियों

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सर ! अनैतिकता का जड़, गया इतना भीतर, नाम न लेता कि जाऊँ मै उखड़, व्यवस्था हो गई गड़बड़, कैसे लेंगे बच्चे पढ़, सब रह जायेंगे अनपढ़, उनका खो रहा अवसर, सर ! लें जरा खबर ! शिक्षा जायेगी जो मर ! सर ! आप हैं अफसर ! मेरा क्या असर , मैं कहता

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पथद्रष्टा हीरा गुरुजीप्रणाम सर !जय गुरु प्यारे, आओ प्यारे इधर बैठो। कहाँ से आए हो? कहाँ घर है?हरचंदपुर ।और पिताजी का नाम?उमा चरण ?किस क्लास में पढ़ते हो?छठी क्लास में ?और कौन स्कूल में ?मुंडली मिशन में सर।वाह ! ठीक है प्यारे। बहुत अच्छा ।सर, मैं अपने घर में सत्संग कराना चाहता हूँ । आपका प्रोग्राम

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अपनों से दो शब्द“जब अनैतिक शक्ति संस्था-प्रधान के सिंहासन में पदास्थापित हो जाती है तोव्यवस्थाएँ तो चरमराती ही हैं, नैतिक शक्ति को अवसर भी नहीं मिलता और इसकानंगा-नृत्य स

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