एक संघ संस्कार हे ,दूजा बीजेपी बफादार है।
एक स्वयंसेवक के पीछे, मचाए हाहाकार।।
"देश -धर्म " नाता है, स्वयं सेवक इसे निभाता है।
पार्टियों को तो सिर्फ, वोट बैंक ही भाता है ।
। डीएसई-आदेश का , नहीं हो रहा अनुपालन ।
इस घोर अवज्ञा का, हाय ! कौन करें निष्पादन ।।
दबा दिया अधिकारी को, पैसा व पैरवी ने ।
जनता को शोषित करते, ऐसे ये चन्द कमीने ।।
माननीय की पैरवी, उधर ढरक गई है।
जिधर नहीं ढरकनी, उधर सरक गई है।।
मुॅह बल गिरे थे अहं बल, माननीय ने उठा लिया ।
अनैतिकता को गले लगा, नैतिकता को ठुकरा दिया ।।
सकलदेव को रोकने में, माननीय का हाथ है।
संघ के अधिकारी को , विचारने की बात है।।
--नोट- यह कविता तब लिखी गई थी जब मेरे एक शिक्षक मित्र द्वारा जिला शिक्षा अधीक्षक महोदय के कार्यालय आदेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा था।