शिक्षा आॅसू बहा रही है।
रूटीन बना है शानदार।
शिक्षा का है जागा आसार।
पर शिक्षक-टोटा देगा मार,
कौन करे ! शिक्षा-विस्तार !
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
नित नये प्रयोग देखकर,
शिक्षक रोता बिलख-बिलखकर।
चाहकर भी कुछ कर नहीं पाता,
रिपोर्ट बनाते दिवस-दिवस भर।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
ड्यूटी का तो ढोल बजा है,
कर्म-योग पंगु बना है।
कर्म-योग साधे बगैर,
न होगी शिक्षा की खैर।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
उठो बाबुआें ! दफ्तर छोड़ो,
विद्यालय से नाता जोड़ो।
कर्म पंथ को धर्म बनाओ,
यथार्थ यही स्वीकार करो।
हाॅ, शिक्षा आॅसू बहा रही है।
-- सकलदेव