उठती नहीं उफनती भी है, टीन-एज-अंगड़ाई।
जरा-सी फिसलन इस उमर की, होती न भरपाई।।
अंग-अंग रोमांचित होता, पुलकित होता गात।
किशोर बाल-बालाओं को, ये समझ न आती बात।।
अच्छी-बुरी दोनों शक्ति, तीव्र गति से बढ़ती।
गति बढ़े अच्छाई की तो, बद की शक्ति घटती।।
गति बढ़ी अच्छाई की तो, जीवन स्वर्ग समान।
बुरे पथ पे पाॅव धरे तो, बुझो कौन ठिकान।।
गुरु-जनों को पढ़ने होंगे, कली किशोर मन को ।
स्नेह-प्रेम की थपकी, देकर, सजना है इन घट को ।।
अंतर कर सहारा देकर, गढ़ते कुंभ कुम्हार।
कोमल चित्त को कोमल कर दें, ऐसा हो आचार।।
गुरु-जनों की अनदेखी में, टीन-एज कुम्हलाता।
सुधी लें यों मात-पिता तो, जीवन है बन जाता।।
टीन-एजर से बेअदबी, देता है नुकसान।
स्नेह-पगा से बांधें इनको, सुनो सकल सुजान।।
......सकलदेव