मैं शिक्षक हॅू पर हॅू लाचार ।
राजनीति का हूॅ खाया मार ।।
पर, विद्यालय का हॅू वफादार ।
शिक्षा दान का हॅू हकदार ।।
बच्चों के लिए ऐसा गुरुवर ।
जैसे फल-फूल से लदा तरुवर ।।
दुष्ट-दृष्टि का अलंघ्य दीवार ।
सुहृदों का हॅू सुपतवार ।।
कोई समझता मुझको काॅटा ।
पर मैं तो बस प्रेरणा बाॅटा ।।
मलिन हृदय को यह न भाता ।
उनको तो बस उलटा आता ।।
हे बन्धुओं ! तू समझ पहेली ।
आत्मा है तेरी श्रेष्ठ सहेली ।।
सुनो बस उनकी पुकार ।
तो , जीवन तेरा होगा गुलजार ।।
..... सकलदेव