अच्छा है एक दीप जलाएॅ
राजनीतिक दबाव और रिश्वत के अभाव के कारण उच्च अधिकारी के आदेश के बावजूद उधवा स्कूल इंस्पेक्टर बोधन साहब मास्टर भोला को हेडमास्टरी नहीं दिए। एक दिन भोला अपने सेवा पुस्तिका को लेकर इंस्पेक्टर बोधन साहब के पास गए थे। इंस्पेक्टर साहब सेवा पुस्तिका में जो कार्य था वह खुशी-खुशी कर देते हैं। फिर बड़े प्रेम से भोला को बैठने कहते हैं। बैठिए भोला जी ! भोला को आश्चर्य होता है कि जो बोधन साहब विरोधी थे, उनके द्वारा आज इस तरह का आदर क्यों दिया जा रहा है ! ऐसे सुंदर बोध के पीछे कोई चाल तो नहीं ! भोला भी कुर्सी में बैठ गया। इंस्पेक्टर साहब कहते हैं- भोला जी हम लोग चाह करके भी अच्छा काम नहीं कर सकते हैं। आप जैसे अच्छे शिक्षक को चाहने वाले भी आखिर कितने हैं। भोला मन नही मन सोचा आखिर अच्छे शिक्षक को आपको तो स्थान देना चाहिए साहब! दूसरी बात उन्होंने कह डाला - भेाला जी आपके लिए आपका विद्यालय आने वाला कल बहुत ही पेनफुल होने वाला है। भोला बड़े सकते में आ गया। आखिर मेरा विद्यालय मेरे लिए पेनफुल क्यों होगा ? वह बिल्कुल आश्चर्यचकित हो गया सुनकर। फिर एक सवाल और उठा दिया- भोला जी जितना जल्दी हो सके आप अपने इस विद्यालय को छोड़ दीजिए । और इसी बीच दो तीन दो - तीन शिक्षिकाएं कार्यालय में साहब के सामने आ गई। भोला सिर्फ इतना ही कहा कि सर मैं अपने विद्यालय में कुछ अच्छा करके निकलूंगा और भोला प्रणाम कर कार्यालय से निकल गया । घर आया । एकांत में बैठ कर भोला सोचता रहा कि आखिर मेरा विद्यालय मेरे लिए पेनफुल क्यों होगा ! इसलिए न इस विद्यालय में सभी गुटबाजी करेंगे, साहब भी दबोचने का अवसर तलासेंगे इत्यादि। तो भोला मन ही मन ठान लिया कि चाहे कोई गुटबाजी करें या जो करें भोला चुनौतियों को स्वीकार करेगा , एक नया इतिहास रचेगा। बस समय पर विद्यालय जाता था और जाता रहेगा और समय तक विद्यालय में रहेगा। बच्चे भगवान के रूप माने जाते हैं और बच्चे को सिर्फ पढ़ाना है, बच्चों के साथ रागात्मक संबंध जोड़कर रखेगा । समर्पित भाव से उनकी सेवा करेगा । फिर भोला के लिए विद्यालय पेनफुल कैसे बन सकता है! और बस इस संकल्प को साकार करने के लिए समर्पित हो गया। अब रही बात विद्यालय छोड़ने की तो वह छोड़ना चाहता नहीं चाहता है, उसको ऐसा लगा कि इंस्पेक्टर बोधन साहब चाह रहे थे कि भोला अगर अपनी इच्छा जाहिर करे तो उनका दूसरे जगह प्रतिनियोजन कर दिया जाएगा। फिर भोला मन ही मन सोचने लगा कि क्या इंस्पेक्टर का सजेशन सावधान करना है , या डराना है, या फिर शिक्षा में गुणात्मक विकास करना हैं। वह बहुत गंभीरता से विचार करने लगा कि अगर हमारे पदाधिकारी गुणवान विद्वान या कर्मठ भोला जैसे शिक्षक का सहयोग नहीं करेंगे तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जो बातें आती है वह बिल्कुल खोखली बातें है। आदर्श की बातें जमीन पर उतारी नहीं गई तो हमारे अधिकारियों की बातें निरर्थक है । अंधेर नगरी चैपट राजा टके सेर भाजी, टके सेर खाजा। पर, भोला इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अंधकार को क्या धिक्कारें, अच्छा है एक दीप जलाएं। समस्याओं का रोना अपना दीदा खोना।