फीडबैक 2017 के ही जुलाई महीने की 28वीं तिथि थी । बुनियाद प्रशिक्षण का यह समापन दिवस था। करीब 80 प्रतिभागी एक ही कमरे में बैठे थे । 2रू45 बज चुके थे। अंतिम सत्र की बारी थी। मेरे एक परम मित्र जो ब्त्च् हैए ने खबर दी थी.. सर व्यवस्थापकों द्वारा ऐसा कहा गया कि सभी प्रतिभागियों को छोड़ दिया जाए। मैं यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गया कि आख़िर अंतिम बैठक में प्रतिभागियों का कुछ फीडबैक लेंगेए फिर हम सभी ट्रेनर बंधु कुछ आशा आकांक्षा व्यक्त करेंगे। एक प्रेरणा गीत होगा और तब सभी अलविदा होंगे ।पर हाकिमों का फरमान सुनकर अरमान अधूरे दिख रहे थे । गर्मी भी काफी थी । सबके हाथ में कापियों के पंखे थे । प्रतिभागी भी निकलने के मूड में हो गए थे। पर मैंने कमान संभाली। सभी प्रतिभागियों को करबद्ध प्रार्थना करते हुए कहा कि अंतिम सत्र में कृपया आप अपना. अपना फीडबैक दे। आपसे अनुरोध है कि थोड़ा कष्ट करके बैठे रहे ।हम पांच ट्रेन भी बैठ गए। प्रतिभागीगण भी आग्रह को मान गए। 10 .12 प्रतिभागियों ने अपने.अपने फीडबैक दिए । बहुत आनंद आया । इस बीच पत्रकार बंधु भी आए ।उन्होंने भी देखी उमस भरी गर्मी एपर पंखे नहीं चल रहे थे। सब गर्मी से ऊब रहे थे ।
अंततः मेरा एक प्रेरणा गीत.. निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलेंए हुआ ।तत्पश्चात कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा मैंने की । आखिर कब रुकेगी अपने कर्तव्य के प्रति उदासीनताए प्रमाद व मनमानेपन! ऐसे में अगर किसी अधिकारी को प्रताड़ित होना पड़े ए तो कहा जा सकता है कि यही है उनका फीडबैक।