धीमे-धीमे जो उजले-काले बादलों में पड़ती हैसूरज की लालिमा वैसे धीरे-धीरे मेरे दिल मे उतरता है रंग तेरा जिसके बहुतेरे रूप हैं हर एक खास और हर एक बाकियों से जुदा और बरस पड़ते हैं उस साल की पहली बारिश की तरह फर्क बस ये है वो बारिश धरती को भिंगोती है तो दूसरी मेरे रूह को जो झर-झ
बहुतो ने गवयी अपनी जान कोआपकी राह देखतेआजा अबतो बरसआपके न आने सेधरती ओर जिंदगीबंजर सी हो गई हैआजा अबतो बरसआपकी बेरुखी नेकितनो की उल्झन बढाईअपनो से बिछडकेकितनो ने मिटा दिया अपने आपकोआजा अबतो बरस जबतक देखेंगे नलहरते खेत को धरती परन सुकून मिलेगा उनको जन्नत मे भीआजा अबतो बरसबहुतो का उजडा है चमनअबके
सावन के बादल उमड़ -घुमड़ इतनी करते मन-मयूर नाच उठता कदम हैं थिरकते। धरती का आंचल हर दिशा हरा-भरा कर देते। कृषक,साहुकार,जन-सामान्य फलते-फूलते। नदी,तालाब,सिंधु,पोखर सब उमगते जीव-जंतु खुशहाल विचरते दिखते। बाल-वृन्द,नौजवान वृद्ध सब विहसते अपनी-अपनी तरह से खूब आनंद लेते। प्रकृति के रंग क्या अदभुत नित सवंर
चाँदनी रातनैनकी नैन से हो रही बात है ।प्रियन जाओ अभी चांदनी रात है ॥बावरीहूँ विरह में तुम्हारे पिया ।आपकेप्यार की मैं दुखारी पिया ।आसहो तुम हमारी हो विश्वास तुम ।मेरेजीवन की कन्ते हर इक सांस तुम ।तेरेहाथों अब तो मेरा हाथ है ।प्रियन जाओ अभी चांदनी रात है ॥प्राणप्रियमैं तुम्हारी हूँ अर्धांगिनी ।