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भाग -1

7 जून 2022

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रात बहुत कम बाकी थी जब बिमला और इंदुमति लौट कर घर में आईं जहाँ कला को अकेली छोड़ गई थीं। यहाँ आते ही बिमला ने देखा कि उसकी प्यारी लौंडी चंदो जमीन पर पड़ी हुई मौत का इंतजार कर रही है। उसका दम टूटा ही चाहता है, आँखें बंद हैं, और अधखुले मुँह से रुक कर साँस आती-जाती है, बीच-बीच में हिचकी भी आ जाती है। कला झारी में गंगाजल लिए उसके मुँह में शायद टपकाना चाहती है।

यह अवस्था देखकर बिमला घबरा गई और ताज्जुब करने लगी कि उसकी इस थोड़ी सी गैरहाजिरी में क्या हो गया और चंदो यकायक किसी बीमारी में फँस गई जो इस समय उसकी जिंदगी का चिराग इस तरह टिमटिमा रहा है बल्कि बुझना चाहता है। बिमला ने घबराकर कला से पूछा, “यह क्या मामला है और कमबख्त को हो क्या गया है!!”

कला : मुझे इस बात का बड़ा ही दुःख है कि चंदो अब इस संसार को छोड़ना ही चाहती है, अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए इस कमबख्त ने जहर खा लिया है और जब रग-रग में जहर भी न गया है तब यहाँ आकर सब हाल कहा हैं मैंने जहर उतर जाने के लिए दवा इसे खिलाई है मगर कुछ फायदा होने का रंग नहीं है क्योंकि देर बहुत हो गई, कुछ और दवा पहुँचती तो अच्छा था।

बिमला : राम-राम, मगर यह इस कमबख्त को सूझी क्या? और इसने कौन-सा पाप किया है जिसके लिए ऐसा प्रायश्चित करना पड़ा!

कला : बहिन, पाप तो इसने निःसन्देह बहुत भारी किया है, जिसका प्रायश्चित इसके सिवा और कुछ यह कर ही नहीं सकती थी, परन्तु मुझे इसके मरने का दुःख अवश्य है। जो काम इसने किया है उसके करने की आशा इससे कदापि नहीं हो सकती थी और जब इससे ऐसा काम हो गया तो किसी और लौंडी पर अब हम लोग इतना विश्वास भी नहीं कर सकतीं। हाँ, लालच में पड़कर इस चुड़ैल ने हम दोनों बहिनों का असल हाल गदाधरसिह को बतला दिया और कह दिया कि तुमसे बदला लेने के लिए यह सब खेल रचे गए हैं, और साथ ही भूतनाथ का बटुआ भी यहाँ से लेकर जाकर उसे दे दिया। परन्तु इतना करने पर भी जब भूतनाथ ने इसे सूखा ही टकरा दिया तब इसे ज्ञान उत्पन्न हुआ और ग्लानि में आकर जहर खा लिया। जब जहर अच्छी तरह तमाम बदन में भीन गया तब यह हम दोनों से मिलने और अपना पाप कहने के लिए यहाँ आयी थी, इसे यहाँ आये बहुत देर नहीं हुई।

बिमला : (हाथ से अपना माथा ठोंक कर) हाय हाय हाय, इस कमबख्त ने तो बहुत ही बुरा किया! क्या जाने यह इससे और भी कुछ ज्यादा कर गुजरी हो! जिस भेद को छिपाने के लिए तरह-तरह की तरकीबें की गई थीं उस भेद का आज इसने सहज ही में सत्यानाश कर दिया। हाय, अब भूतनाथ भी जरूर हमारे कब्जे से निकल गया होगा। जब उसे ऐयारी का बटुआ मिल गया तब वह उस कैदखाने के भी बाहर हो गया हो तो आश्चर्य नहीं। वह बड़ा ही धूर्त और मक्कार है जिसके फेर में पड़ कर चंदो ने हम लोगों को बर्बाद कर दिया और खुद भी दीन-दुनिया दोनों में से कहीं के लायक न रही!!

कला : बेशक् ऐसा ही है, यद्यपि इस बात की आशा नहीं हो सकती कि भूतनाथ इस घाटी के बाहर हो जाएगा तथापि उसका कैदखाने से बाहर निकल जाना ही कम घबराहट की बात नहीं है, और इससे भी ज्यादा बुरी बात यह हुई कि हमारा भेद उसे मालूम हो गया। हाय, ऐसी रात में किसकी हिम्मत पड़ सकती है कि अकेले यहाँ जाकर भूतनाथ का हाल मालूम करे? अगर वह छूट गया होगा तो जरूर उसी जगह कहीं छिपा होगा, ताज्जुब नहीं कि सूरज निकलने तक वह कोई आफत…

बिमला : मेरा भी यही खयाल है! (चंदो के पास जाकर) हाय, शैतान की बच्ची, तूने यह क्या किया! हाय, अगर तू जीती रहती तो तुझसे पूछती कि दुष्ट, तूने इतना ही किया कि कुछ और?

चंदो यद्यपि मौत के पंजे में फँसी हुई थी और उसकी जान बहुत जल्द निकलने वाली थी मगर वह कला और बिमला की बातें सुन रही थी, यद्यपि उसमें जवाब देने की ताकत न थी। उसने बिमला की आखिरी बात सुनकर आँखें खोल दीं, बिमला की तरफ देखा और इस प्रकार मुँह खोला मानो कुछ कहने के लिए बेचैन हो रही है, बहुत उद्योग कर रही है मगर उसमें इतनी शक्ति न रही, उसकी आँखें पुन: बंद हो गईं और अब वह पूरी तरह से बेहोश हो गई। देखते-देखते दस-पाँच हिचकियाँ लेकर उसने बिमला और कला के सामने दम तोड़ दिया।

अब कला और बिमला को यह फिक्र पैदा हुई कि पहिले इसे ठिकाने पहुँचाया जाय वहां चलकर भूतनाथ की खबर ली जाय, मगर इंदुमति की राय हुई इन दोनों कामों के पहिले बँगले की हिफाजत की जाय (जो इस घाटी के बीच में था और जहाँ प्रभाकर सिंह पहिले-पहिले पहुँचे थे) क्योंकि उसमें बहुत-सी जरूरी चीजें रखी हुई हैं और साथ ही उसकी जाँच करने से बहुत-से भेद भी मालूम हो सकते हैं।

इंदु की इस राय को बिमला और कला ने बहुत पसन्द किया और तीनों औरतें हर्बों और जरूरी चीजों से अपने को सजाकर गुप्त राह से बंगले की तरफ रवाना हुईं।

इस बँगले का हाल हम पहिले खुलासा तौर पर लिख चुके हैं, इसके दरवाजे ऐसे न थे कि बंद कर देने पर कोई जबर्दस्ती या सहज ही में खोल सके तथा और बातों में भी वह एक छोटा-मोटा तिलिस्म या कारीगरी का खजाना ही समझा जाता था। यद्यपि वह बँगला ऐसी हिफाजत की जगह में था जहाँ बदमाशों का गुजर नहीं हो सकता था तथापि उसकी हिफाजत के लिए कई लौंडियाँ मुकर्रर थी जो मर्दानी सूरत में पहरेदारी के कायदे से उसके चारों तरफ बराबर घूमा करती थीं।

कला, बिमला और इंदु ने वहाँ पहुँचकर उस बँगले के दरवाजे बंद करने शुरू कर दिये। पहिले बाहर से भीतर आने का रास्ता रोका, इसके बाद कई जरूरी चीजें उनमें से निकालने के बाद अलमारियों में ताले लगाये और तब भीतर के कमरे सब बंद कर दिये गये। इतना करके एक छोटे गुप्त रास्ते को बंद करती हुई बाहर निकली ही थीं कि एक पहरेदार लौंडी के जोर से चिल्लाने की आवाज आई।

तीनों औरतें कदम बढ़ाती हुई बँगले के सदर दरवाजे पर पहुंची जहाँ नाममात्र के लिए पहरा रहा करता था या जिधर से पहरेदार लौंडी के चिल्लाने की आवाज आई थी। वह लौंडी मरदाने भेष में थी और घबराई हुई मालूम पड़ती थी। बिमला ने पूछा- “क्या मामला है, तू क्यों चिल्लाई?”

लौंडी : मेरी रानी, देखो उस पहाड़ी की तरफ जिधर कैदखाना है और जहाँ भूतनाथ कैद है कई उस जगह आग की धूनी जल रही है। मालूम होता है मानो बहुत-से आदमियों ने आकर उस पहाड़ी पर दखल जमा लिया है। अगर ये आग की धूनियाँ आपकी तरफ से नहीं सुलगाई गई हैं तो जरूरी किसी आने वाली आफत की निशानी हैं और मुझे विश्वास हे कि आपने इसके लिए कोई हुक्म नहीं दिया होगा।

बिमला : (ताज्जुब के साथ उस पहाड़ी की तरफ देख कर) बेशक् यह नई बात है, मैंने ऐसा करने के लिए किसी को हुक्म नहीं दिया मगर घबराने की कोई बात नहीं है, जहाँ तक मैं समझती हूँ यह भूतनाथ की कार्रवाई है क्योंकि चंदो की मदद से भूतनाथ कैद से छूट गया और हम लोग उसी के बंदोबस्त कर रही हैं।

लौंडी : (ताज्जुब के साथ) हैं, भूतनाथ कैदखाने से छूट गया! और चंदो बीबी की मदद से!!

बिमला : हाँ, ऐसी ही बात है, किसी दूसरे वक्त इसका खुलासा हाल तुम्हें मालूम होगा इस समय मैं उसी पहाड़ी पर जाती हूँ और भूतनाथ को गिरफ्तार करती हूँ।

कला : मगर बहिन, मैं इस राय के विरुद्ध हूँ!

बिमला : क्यों?

कला : देखो, सोचो तो सही कि इस तरह कई जगहों पर आग सुलगाने या बालने से भूतनाथ का क्या मतलब है?

बिमला : (कुछ सोच कर) जहाँ तक मैं समझती हूँ इस कार्रवाई से भूतनाथ का यही मतलब होगा कि हम लोगों को धोखा देकर उस तरफ बुलावे और किसी जगह पर आड़ में छिपे रहकर हमारे ऊपर वार करे।

कला : बेशक्, क्योंकि आग के पास पहुँच कर हम लोग उसे ढूँढ़ न सकेंगे। दस्तूर की बात है कि जो कोई सुलगती हुई आग के पास रहता है वह सामने की किसी चीज को नहीं देख सकती। वहाँ तो कई जगह पर आग सुलग रही है, उस बीच में जाकर हम लोग किसी भी तरफ निगाह करके दुश्मन को नहीं देख सकेंगे।

बिमला : ठीक है मगर हम लोगों पर इस समय उसका कोई हर्बा काम नहीं कर सकता।

कला : तथापि हर तरह से बच के काम करना चाहिए, विशेष करके इसलिए कि इंदु बहिन हमारे साथ हैं, यद्यपि ये यहाँ के सब भेदों को जान गई हैं और हम लोगों का साथ हर तरह से दे सकती हैं।

इंदुमति : मेरे लिए कोई तरद्दुद न करो, मैं तुम लोगों के साथ बखूबी चल सकती हूँ मगर मैं यह पूछती हूँ कि ऐसा करने की जरूरत क्या है और इस काम में जल्दी किये बिना हर्ज ही क्या होता है? संभव है कि भूतनाथ ने वहाँ ऐयारी का कोई जाल फैलाया हो और इस रात के समय वह कुछ कर भी सके। थोड़ी-सी तो रात हो गई है, अच्छा होता अगर यह बिता दी जाती। प्रातःकाल हम लोग देखेंगे कि भूतनाथ कहाँ जाता और क्या करता है, यद्यपि वह स्वतंत्र हो गया है मगर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकता और हमारे मकान तथा बँगले में भी उसकी गुजर नहीं हो सकती।

कला : मैं भी इस राय को पसन्द करती हूँ, चलो बँगले के ऊपर छत पर चल कर बैठे।

बिमला : अच्छा चलो।

इंदुमति : (चलते हुए) मगर ताज्जुब है कि इतनी जल्दी भूतनाथ को आग सुलगाने के लिए इतना सामान कैसे मिल गया!

कला : बहिन, यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है! हम लोगों की जरूरत के लिए जंगल की लकड़ियाँ बहुत बटोरी गई थी जिसके बहुत बड़े-बड़े दो-तीन ढेर वहाँ कैदखाने के पास ही में लगे हुए थे। मालूम होता है कि उन्हीं लकड़ियों से भूतनाथ ने काम लिया है।

इंदुमति : हाँ, तब तो उसे बहुत सुबीता मिल गया होगा, मगर क्या तुम खयाल कर सकती हो कि भूतनाथ की यह कार्रवाई किसी और मतलब से भी हुई है?

बिमला : मैं नहीं कह सकती, सम्भव है कि उसका और ही कोई मतलब हो। खैर देखा जाएगा।

इसी तरह की बातें करती तथा दरवाजों को खोलती और बंद करती हुई तीनों बहिनें बँगले की छत पर चढ़ गईं और एक अच्छे ठिकाने बैठकर उस तरफ देखने और सुबह का इंतजार करने लगीं।

उस समय कला और बिमला से बहुत बड़ी भूल हो गई, क्योंकि वे तीनों अद्भुत बँगले की हिफाजत के लिए जब आईं तो उन्होंने रोशनी का कोई खास बंदोबस्त नहीं किया, बँगले का इंतजाम करने के बाद वे तीनों बहिनें जब पहरे वाली लौंडी के चिल्लाने की आवाज सुनकर सदर दरवाजे पर गईं तब उनके पास किसी तरह की रोशनी मौजूद न थी और न इस काम के लिए रोशनी की जरूरत ही थी। परन्तु जब तक वे पहरा देने वाली लौंडी से बातचीत करतीं और पहाड़ी के ऊपर वाली रोशनी की तरफ देखती रही तब तक एक आदमी जो अपने को स्याह कपड़े से छिपाए हुए था आड़ देता हुआ सदर दरवाजे के पास पहुँचा और न मालूम किस ढंग से उस बँगले के अन्दर दाखिल हो गया क्योंकि वे तीनों बहिनें और पहरा देने वाली लौंडी पहाड़ी की रोशनी को ताज्जुब के साथ देखती हुई सदर दरवाजे से कुछ आगे की तरफ बढ़ गई थीं और उन्हें इस बात का कुछ खयाल न था कि दुश्मन बगल में आ पहुँचा और अपना काम किया चाहता है! खैर वे तीनों बँगले के अन्दर घुसी तो दरवाजा बंद करती हुई छत पर चढ़ गईं जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है।

वे तीनों बहिनें उन कई जंगल बलती आग की रोशनियों को गैर से देख रही थीं जो अब धीरे-धीरे ठंडी हो रही थी।

कला : अब आग बिलकुल ठंडी हो जाएगी।

बिमला : हाँ और इससे मालूम होता है कि भूतनाथ कहीं आगे की तरफ बढ़ गया।

“आगे की तरफ नहीं बढ़ गया बल्कि इस तरफ चला आया और विश्वास दिलाना चाहता है कि वह आपका दुश्मन बल्कि दोस्त है।”

यह आवाज छत के ऊपर जाने वाले दरवाजे की तरफ से आई थी जो उन तीनों बहिनों के पास ही था।

इस आवाज ने उन तीनों को चौंका दिया, वे उठ खड़ी हुईं और उस दरवाजे के तरफ देखने लगीं। अब यहाँ पर वैसा अँधकार न था जैसा नीचे खास करके पेड़ों की छाँह के सबब से था। चन्द्रदेव उदय हो चुके थे और उनकी चाँदनी पल-पल में बराबर बढ़ती चली जा रही थी अस्तु उन तीनों बहिनों ने साफ देख लिया कि दरवाजे के अंदर एक पैर बाहर और दूसरा भीतर किए कोई आदमी स्याह लबादा ओड़े रहा है।

बिमला : (उस आदमी से) तुम कौन हो?

आदमी : गदाधरसिंह।

बिमला : (निडर रहकर) तुमने बड़ी चालाकी से अपने को कैद से छुड़ा लिया!

गदाधरसिंह : बात तो ऐसी ही है।

बिमला : मगर तुम भाग कर इस घाटी के बाहर नहीं जा सकते!

गदाधरसिंह : शायद ऐसा ही हो, मगर मुझे भागने की जरूरत ही क्या है?

बिमला : क्यों, अपनी जान बचाने के लिये तुम जरूर भागना चाहते होगे?

गदाधरसिंह : नहीं, मुझे अपनी जान का यहाँ कोई खौफ नहीं है क्योंकि तुम्हारी एक नमक हराम लौंडी ने मुझे बता दिया है कि तुम मेरे प्यारे दोस्त दयाराम की स्त्री हो…

बिमला : (बात काटकर) जिस प्यारे दोस्त को तुमने अपने हाथ से हलाल किया!!

गदाधरसिंह : नहीं! नहीं, कदापि नहीं, जिसने यह बात तुमसे कही है यह बिलकुल झूठ है और उसने तुम लोगों को धोखे में डाल दिया है, यही समझाने और विश्वास दिलाने के लिए मैं यहाँ अटक गया हूँ और भागना पसन्द नहीं करता। मुझे विश्वास था कि तुम दोनों बहिनों का देहांत हो चुका है जैसा कि दुनिया में प्रसिद्ध किया गया है, मगर अब तुम दोनों का हाल जानकर भी क्या मैं भागने की इच्छा करूँगा? नहीं, क्योंकि तुम दोनों को अब भी मैं उसी निगाह से देखता हूँ जैसे अपने प्यारे दोस्ते की जिंदगी में देखता था और यही सबब है कि मुझे तुम दोनों से किसी तरह का डर नहीं लगता।

बिमला : मगर नहीं, तुम्हें हम लोगों से डरना चाहिए, हम लोग तुम्हारे हितेच्छु कभी नहीं हो सकते क्योंकि हम लोगों ने जो कुछ सुना वह कदापि झूठ नहीं हो सकता।

गदाधरसिंह : (दरवाजे से बाहर निकल कर और बिमला के पास आकर) मैं विश्वास दिला दूंगा कि मुझ पर झूठा इल्जाम लगाया गया है।

बिमला : (कई कदम पीछे हटकर और नफरत के साथ) बस दूर रह मुझसे दुष्ट! मैं तेरी सूरत नहीं देखना चाहती!!

गदाधरसिंह : (अपने ऊपर से स्याह कपड़ा हटाकर) नहीं, तुम मेरी सूरत देखो और पहिचानो और सुनो कि मैं क्या चाहता हूँ।

बिमला : सिवाय बात बनाने के तू और क्या कहेगा? तू अपने माथे से कलंक का टीका किसी तरह नहीं धो सकता और न वह बहुत झूठी हो सकती है जो मैं सुन चुकी हूँ। दलीपशाह और शम्भू अभी तक दुनिया में मौजूद हैं और मैं भी खास तौर पर इस बात को जानती हूँ।

गदाधरसिंह : मगर सच बात यह है कि लोगों ने तुम्हें धोखा दिया और असल भेद को छिपा रखा। खैर तुम अगर मुझ पर विश्वास नहीं करती तो मुझे ज्यादा खुशामद करने की जरूरत नहीं, अब मैं सिर्फ दो-चार बातें पूछ कर चला जाऊँगा। एक तो यह कि तुम मुझे गिरफ्तार करके यहाँ लाई थीं, मगर मैं अपनी चालाकी से छूट गया। अब बताओ मेरे साथ क्या सलूक करोगी?

बिमला : अपने दिल का बुखार निकालने के लिए जो कुछ मुझसे बन पड़ेगा करूँगी, इसे तुम खुद सोच सकते हो।

गदाधरसिंह : पर मैं तो अब स्वतंत्र हूँ, अगर चाहूँ तो तुम तीनों को इसी जग खत्म कर रख दूँ, मगर नहीं मैं नमक का खयाल करता हूँ ऐसा कदापि न करूँगा, हाँ? तुमसे बचने के लिए उद्योग जरूर करूँगा।

बिमला : कदाचित् ऐसा ही हो।

इतना कह बिमला ने कला की तरफ देखा।

गदाधरसिंह बिमला से बातें कर रहा था मगर उसे इस बात की खबर न थी कि कला क्या कर रही है अथवा क्या किया चाहती है।

कला ने अपने बगल से एक छोटा-सा बाँस का बना हुआ तमंचा निकाला और गदाधरसिंह (भूतनाथ) की तरफ उसका मुँह करके चलाया।

इस अद्भुत तमंचे में बेहोशी की बारूद भरी जाती थी और इसका तेज तथा जल्द बेहोश कर देने वाला धुंआ छूटने के साथ ही तेजी से कई बिगहे तक फैलकर लोगों को बेहोश कर देता था। यहाँ पर फैलने के लिए विशेष जगह तो थी नहीं इसलिए उस धुएँ के गुब्बार ने गदाधरसिंह को चारों तरफ से घेरकर एक तरह का अंधकार कर दिया।

“गदाधरसिंह धुएँ के असर से बेहोश हो जाएगा” यह सोच कर बिमला, कला और इंदुमति तीनों बहिनें भाग कर नीचे उतर जाने के लिए उठीं और नाक दबाए हुए सीढ़ी की तरफ बढ़ गईं।

गदाधरसिंह बेशक् इस धुएँ के असर से बेहोश हो जाता मगर उसने पहिले ही से अपने बचाव का बंदोबस्त कर लिया था अर्थात् ऐसी दवा खा ली थी कि कई घंटे तक उस पर बेहोशी का असर नहीं हो सकता था तथापि उस धुएँ ने एक दफे उसका सर घुमा दिया।

वे तीनों बहिनें वहाँ से भागी तो सही मगर अफसोस, बिमला और इंदु तो नीचे उतर गईं परन्तु कला को फूती। से गदाधरसिंह ने पकड़ कर कब्जे में कर लिया और हाल बिमला को नीचे उतरकर और कई कमरों में घूम-फिरकर छिप जाने के बाद मालूम हुआ जब चित्त स्थिर हो जाने पर उसने कला को अपने साथ न देखा।

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रचनाएँ
भूतनाथ-खण्ड-2
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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भाग -1

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रात बहुत कम बाकी थी जब बिमला और इंदुमति लौट कर घर में आईं जहाँ कला को अकेली छोड़ गई थीं। यहाँ आते ही बिमला ने देखा कि उसकी प्यारी लौंडी चंदो जमीन पर पड़ी हुई मौत का इंतजार कर रही है। उसका दम टूटा ही च

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भाग -2

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दिन पहर भर से कुछ ज्यादा हो चुका है। यद्यपि अभी दोपहर होने में बहुत देर है तो भी धूप की गर्मी इस तरह बढ़ रही है कि अभी से पहाड़ के पत्थर गर्म हो रहे हैं और उन पर पैरी रखने की इच्छा नहीं होती, दो पहर द

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भाग - 3

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क्या भूतनाथ को कोई अपना दोस्त कह सकता था? क्या भूतनाथ के दिल में किसी की मुहब्बत कायम रह सकती थी? क्या भूतनाथ किसी के एहसान का पाबंद रह सकता था? क्या भूतनाथ पर किसी का दबाव पड़ सकता था? क्या भूतनाथ पर

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भाग -4

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गुलाबसिंह की जब आँख खुली तो रात बीत चुकी थी और सुबह की सुफेदी में पूरब तरफ लालिमा दिखाई देने लग गई थी। वह घबराकर उठ बैठा और इधर-उधर देखने लगा। जब प्रभाकर सिंह को वहाँ न पाया तब बोल उठा, “बेशक् मैं धोख

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भाग -5

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ऊपर लिखी वारदात को गुजरे आज कई दिन हो चुके हैं। इस बीच में कहाँ और क्या-क्या नई बातें पैदा हुईं उनका हाल तो पीछे मालूम होगा, इस समय हम पाठकों को कला और बिमला की उसी सुन्दर घाटी में ले चलते हैं जिसकी स

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दिन तीन पहर से ज्यादा बढ़ चुका है। इस समय हम भूतनाथ को एक घने जंगल में अपने तीन साथियों के साथ पेड़ के नीचे बैठे हुए देखते हैं। यह जंगल उस घाटी से बहुत दूर न था जिसमें भूतनाथ रहता था और जिसका रास्ता ब

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भाग - 7

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जमानिया वाला दलीपशाह का मकान बहुत ही सुन्दर और अमीराना ढंग पर गुजारा करने लायक बना हुआ है। उसमें जनाना और मर्दाना किला इस ढंग से बना है कि भीतर से दरवाजा खोलकर जब चाहे एक कर ले और अगर भीतर रास्ता बंद

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भाग -8

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भूतनाथ को जब अपनी घाटी में घुसने का रास्ता नहीं मिला तो वह प्रभाकर सिंह को एक दूसरे ही स्थान में ले जाकर रख आया था और अपने दो आदमी उनकी हिफाजत के लिए छोड़ दिये थे। अब जब भूतनाथ महात्मा जी की कृपा से अ

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अबकी दफे भूतनाथ ने प्रभाकर सिंह को बड़ी सख्ती के साथ कैद किया, पैरों में बेड़ी और हाथों में दोहरी हथकड़ी डाल दी और उसी गुफा के अन्दर रख दिया जिसमें स्वयं रहता था और उसके (गुफा के) बाहर आप चारपाई डाल र

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भाग -10

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दोपहर का समय है मगर सूर्यदेव नहीं दिखाई देते। आसमान गहरे बादलों से भरा हुआ है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है और जान पड़ता है कि मूसलाधार पानी बरसा ही चाहता है। भूतनाथ अपनी घाटी के बाहर निकल कर अकेला ही तैय

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भाग -11

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भूतनाथ के हाथ से छुटकारा पाकर प्रभाकर सिंह अपनी स्त्री से मिलने के लिये उस घाटी में चले गये जिसमें कला और बिमला रहती थीं। संध्या का समय था जब वे उस घाटी में पहुँचकर कला, बिमला और इंदुमति से मिले। उस स

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भाग -12

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गुलाबसिंह को साथ लेकर प्रभाकर सिंह नौगढ़ चले गये। वहाँ उन्हें फौज में एक ऊँचे दर्जे की नौकरी मिल गई और चुनार पर चढ़ाई होने से उन्होंने दिल का हौसला खूब ही निकाला। वे मुद्दत तक लौटकर इंदुमति के पास न आ

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भाग -13

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प्रेमी पाठक महाशय, अभी तक भूतनाथ के विषय में जो कुछ हम लिख आये हैं उसे आप भूतनाथ के जीवनी की भूमिका ही समझें, भूतनाथ का मजेदार हाल जो अद्भुत घटनाओं से भरा हुआ है पढ़ने के लिए अभी आप थोड़ा-सा और सब्र क

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