गुलाबसिंह की जब आँख खुली तो रात बीत चुकी थी और सुबह की सुफेदी में पूरब तरफ लालिमा दिखाई देने लग गई थी। वह घबराकर उठ बैठा और इधर-उधर देखने लगा। जब प्रभाकर सिंह को वहाँ न पाया तब बोल उठा, “बेशक् मैं धोखा खा गया। वह मुसाफिर न था बल्कि कोई ऐयार था जिसने लोटे में किसी तरह की दवा लगा दी होगी। क्या मैं कह सकता हूँ कि प्रभाकर सिंह को वही उठा ले गया होगा?”
इतना कह वह जगत के नीचे उतरा और घूम-घूमकर प्रभाकर सिंह की तलाश करने लगा। जब वे न मिले तो तरह-तरह की बातें मन में सोचता हुआ आगे की तरफ बढ़ा-
“बेशक् वह कोई ऐयार था जो प्रभाकर सिंह को उठाकर ले गया। ताज्जुब नहीं कि वह भूतनाथ हो। यद्यपि मुझे उससे ऐसी आशा न थी परन्तु आजकल वह जमना और सरस्वती के खयाल से प्रभाकर सिंह को भी अपना दुश्मन समझने लग गया है। यह भी किसी को क्या उम्मीद थी कि जमना और सरस्वती जीती होंगी। खैर मुझे इस समय प्रभाकर सिंह के लिए कुछ बंदोबस्त करना चाहिए, बेहतर होगा यदि मैं स्वयं भूतनाथ के पास चला जाऊँ और उससे प्रभाकर सिंह को माँग लूँ। मगर नहीं, यद्यपि वह मेरा दोस्त है परन्तु इस समय वह दोस्ती पर कुछ भी ध्यान न देगा। अगर उसे ऐसा ही खयाल होता तो प्रभाकर सिंह को ले जाता ही क्यों?, मुझे भी इस समय उससे किसी तरह की उम्मीद न रखनी चाहिए, क्योंकि अब हम लोग दयाराम के खयाल से जमना और सरस्वती के पक्षपाती हो गये हैं, अस्तु अब उसके लिए कोई दूसरा ही बंदोबस्त करना चाहिए। अगर उस खोह का रास्ता मुझे मालूम होता तो मैं जमना और सरस्वती को भी इस बात की खबर दे देता। अब मुझे दलीपशाह के पास चलना चाहिए और उससे मदद माँगनी चाहिए, क्योंकि मैं अकेले भूतनाथ का मुकाबला नहीं कर सकता। दलीपशाह जरूर मेरी मदद करेगा, उस पर मेरा जोर भी है और उसने मेरे साथ अपनी मुहब्बत भी दिखाई है, मगर पहिले अपने आदमियों को समझा देना चाहिए जो अभी तक हम लोगों का इंतजार कर रहे होंगे!”
इत्यादि तरह-तरह की बातें सोचता हुआ गुलाबसिंह आगे की तरह बढ़ा चला जाता था। लगभग एक या डेढ़ कोस गया होगा कि सामने से दो सिपाही ढाल-तलवार लगाए दो घोड़ों की बागडोर थामे आते हुए दिखाई पड़े। जब वे गुलाबसिंह के पास पहुंचे तो सलाम करके खड़े हो गए और गुलाबसिंह भी रुक गया।
गुलाबसिंह : तुम लोग कहाँ जा रहे हो?
एक : आप ही की खोज में जा रहे हैं, क्योंकि रात भर इंतजार करके हम लोग.
गुलाबसिंह : (बात काट कर) बेशक् तुम लोग तरद्दुद में पड़ गए होंगे, मगर क्या करें लाचारी है, अच्छा यह कहो कि बाकी आदमी कहाँ हैं?
एक : अभी तक सब उसी जगह अटके हुए हैं।
गुलाबसिंह : अच्छा एक काम करो, तुम घोड़ा यहीं छोड़ दो और लौट जाओ, हमारे आदमियों को इत्तिला दो कि हमारे घर पर चले जाएँ, पुराने घर पर नहीं आजकल जहाँ हम रहते हैं उस घर पर चले जाएँ, और जब तक हम या प्रभाकर सिंह वहाँ न आवे तब तक कहीं न जाएँ। मैं इस घोड़े पर सवार होकर किसी काम के लिए जाता सिपाही की तरफ देखकर) तुम इस दूसरे घोड़े पर सवार हो लो और मेरे साथ-साथ चलो।
इतना कहकर गुलाबसिंह घोड़े पर सवार हो गया। “जो हुक्म’ कहकर एक सिपाही तो पीछे की तरफ लौट गया और दूसरा घोड़े पर सवार होकर गुलाबसिंह के साथ रवाना हुआ।