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भाग -8

7 जून 2022

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भूतनाथ को जब अपनी घाटी में घुसने का रास्ता नहीं मिला तो वह प्रभाकर सिंह को एक दूसरे ही स्थान में ले जाकर रख आया था और अपने दो आदमी उनकी हिफाजत के लिए छोड़ दिये थे। अब जब भूतनाथ महात्मा जी की कृपा से अपनी सुहावनी घाटी में पहुँच गया, सुरंग का रास्ता उसके लिए साफ हो गया, दरवाजा खोलने और बंद करने की तरकीब मिल गई बल्कि उसके साथ-ही-साथ बेअंदाज दौलत का भी मालिक बन बैठा, तो उसका हौसला बनिस्बत पहिले के सौगुना बढ़ गया और उसने चाहा कि प्रभाकर सिंह को भी लाकर उसी घाटी में रख छोड़े अस्तु महात्मा जी को विदा करने के बाद दूसरे दिन वहाँ से रवाना हुआ और संध्या होते-होते तक प्रभाकर सिंह को इस घाटी में ले आया। प्रभाकर सिंह दवा के नशे में बेहोश थे और उनके हाथ में हथकड़ी तथा पैरों में बेड़ी पड़ी हुई थीं।

भूतनाथ ने उन्हें एक बहुत बड़ी साफ और सुन्दर चट्टान पर रख दिया, पैर की बेड़ी खोल दी, और लखलखा सुंघाकर उनकी बेहोशी दूर की। जब प्रभाकर सिंह उठ कर बैठ गये तो इस तरह बातचीत होने लगी :-

प्रभाकर सिंह : (चारों तरफ देखकर) क्या अभी तक मेरी गिनती कैदियों ही में है? मैं पुन: बेहोश करके इस घाटी में क्यों लाया गया और तुम क्यों नहीं बताते कि किस तरह दुःख देने से तुम्हारा क्या मतलब है?

भूतनाथ : प्रभाकर सिंह, तुम खूब जानते हो कि ऐयारों को जरा-जरा से काम के लिए बड़े-बड़े नाजुक और अमीर आदमियों को तकलीफ देनी पड़ती है। मैं सच कहता हूँ कि तुमसे मुझे किसी तरह की दुश्मनी न थी, बल्कि मैं हर तरह से तुम्हारी मदद के लिए तैयार हो गया था, अगर तुम धोखा देकर अपना ढंग न बदलते तो देखते कि मैं किस खूबी और खूबसूरती के साथ तुम्हारे दुश्मनों से तुम्हारा बदला लेता और तुम्हें हर तरह से बेफिक्र कर देता, मगर अफसोस, तुमने मेरे दुश्मनों से मिलकर मुझे धोखा दिया और गुलाबसिंह को भी जो मेरा दोस्त था बहका दिया!

प्रभाकर सिंह : मैंने तुम्हारे किस दुश्मन से मिलकर तुम्हारा क्या नुकसान किया सो साफ-साफ क्यों नहीं कहते?

भूतनाथ : क्या तुम नहीं जानते जो साफ-साफ कहने की जरूरत है? जमना और सरस्वती ने मुझे तकलीफ देने के लिए ही अवतार लिया है और तुम उनके पक्षपाती बन गये हो। वे तो भला औरत की जात हैं, नासमझ कहलाती हैं, पर तुम्हीं ने उनका भ्रम क्यों नहीं दूर कर दिया कि भूतनाथ ने दयाराम को कदापि न मारा होगा क्योंकि वह उनके साथ मुहब्बत रखता था और उनका दोस्त था!

प्रभाकर सिंह : (हँसकर) तुमको भी तो वे गिरफ्तार करके उस घाटी में ले गई थीं, फिर तुम्हीं ने क्यों नहीं उनका भ्रम दूर कर दिया? तुम ऐयार कहलाते हो, हर तरह से बात बनाना जानते हो!

भूतनाथ : मुझे तो कसूरवार ही समझती हैं, फिर भला मेरी बात क्यों मानने लगीं?

प्रभाकर सिंह : इसी तरह मैं भी तो उनका रिश्तेदार ठहरा, मैं उनकी इच्छा के विरुद्ध क्यों करने लगा? तुम जानो और वे जानें मुझे इन झगड़ों से मतलब ही क्या? बेचारी औरत की जात अबला कहलाती है और तुम इतने बड़े नामी ऐयार हो फिर भी जरा से मामले के लिए मुझसे मदद माँगते हो और चाहते हो कि मैं तेरे लिए अपने एक ऐसे रिश्तेदार के साथ बेमुरौवती करूँ जो दया करने के लायक है! तुम्हें शर्म नहीं आती! हाँ अगर मैं खुद तुम्हारे साथ किसी तरह की करूँ तो जरूर मुझसे बदला लेना उचित था।

भूतनाथ : (मुस्कुराकर) सत्य वचन! मालूम हुआ कि आप बड़े सच बोलने वाले हैं और सिवाय सच के कभी झूठ नहीं बोलते। अच्छा खैर इन बातों से कोई मतलब नहीं, मैं तुमसे बहस करना पसन्द नहीं करता। मैं जो कुछ पूछता हूँ उसका साफ-साफ जवाब दो नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा न होगा।

प्रभाकर सिंह : अब इस धमकी में तुम्हारी बातों का जवाब नहीं दे सकता, मुलायमियत से अगर पूछते तो शायद कुछ जवाब दे देता क्योंकि न तो तुम्हारे किसी अहसान का बोझ मेरी गर्दन पर है और न मैं तुमसे डरता ही हूँ।

भूतनाथ : ऐसी अवस्था में भी तुम मुझसे नहीं डरते? देख रहे हो कि तुम्हारे हर्बे छीन लिए गए, हथकड़ी तुम्हारे हाथों में पड़ी हई हैं, और इस समय तम हर तरह से मजबूर और कमजोर हो!

“यह हथकड़ी तो कोई चीज नहीं है, मेरे ऐसे क्षत्री के लिए तुमने इसे पसन्द किया यह तुम्हारी भूल है!” इतना कहकर बहादुर प्रभाकर सिंह ने एक झटका ऐसा दिया कि हथकड़ी टूट कर उनके हाथों से अलग हो गई और साथ ही इसके वे अपनी कमर से तलवार बैंच कर भूतनाथ के सामने खड़े हो गये और बोले, “बताओ क्या अब भी मैं तुम्हारा कैदी हूँ?”

प्रभाकर सिंह की कमर में एक ऐसी तलवार थी जो बदन के साथ पेटी की तरह लपेटकर बाँधी जा सकती थी, चमड़े की मुलायम म्यान उसके ऊपर चढ़ी हुई थी और उसे प्रभाकर सिंह कपड़े के अन्दर कमर में लपेटकर धोती और कमरबंद से छिपाए हुए थे। अभी तक उस पर भूतनाथ की निगाह नहीं गई थी, बल्कि उसे इस बात का कुछ गुमान भी न था। यह तिलिस्मी तलवार बिमला ने प्रभाकर सिंह को दी थी और बिमला ने इन्द्रदेव से पाई थी। इन्द्रदेव का बयान है कि उन्हें इसी तरह के कई हर्बे कुँवर गोपालसिंह ने अपने जमानिया के तिलिस्म में से निकाल कर दिये थे।

इस तलवार में भी करीब-करीब वही गुण थे जो उस तिलस्मी खंजर और नेजे में था जिसका हाल हम चंद्रकांता सन्तति में लिख आये हैं, फर्क बस इतना था कि जिस तरह उन खंजरों में कब्जा दबाने से चमक पैदा होती थी उस तरह इसमें चमक नहीं पैदा होती थी और न इसके छूने से आदमी बेहोश ही होता था। मगर इसका जख्म लगने से बिजली के असर से आदमी बेहोश हो जाता था। उसकी तरह इसके जोड़ की भी एक खूबसूरत अँगूठी जरूर थी जो इस समय प्रभाकर सिंह की तर्जनी उंगली में पड़ी हुई थी। इस अंगूठी में यह भी गुण था कि अगर धोखे में उन्हीं हो इसका जख्म लग जाय तो उन्हें कुछ असर न हो।

प्रभाकर सिंह की हिम्मते-मरदानगी और ताकत देखकर भूतनाथ हैरान हो गया बल्कि यों कह सकते हैं कि घबरा गया, यद्यपि भूतनाथ भी मरदे-मैदान और लड़ाका था तथा यहाँ पास ही में उसके कई मददगार भी थे जो उसके आवाज देने के साथ ही पहुँच सकते थे मगर फिर भी थोड़ी देर के लिए उसके ऊपर प्रभाकर सिंह का रोब छा गया और वह खड़ा होकर उनका मुँह देखने लगा।

प्रभाकर सिंह : हाँ बताओ तो क्या मैं अब भी कैदी हूँ।

भूतनाथ : (बनावटी मुसकराहट के साथ) हाँ बेशक् तुम ताकतवर और बहादुर हो, मगर समझ रखो कि ऐयारों का मुकाबला करना तुम्हारा काम नहीं है।

प्रभाकर सिंह : हाँ बेशक् इस बात को मैं मानता हूँ, मगर खैर जैसा मौका होगा देखा जाएगा, इस समय तुम्हारा क्या इरादा है सो साफ-साफ कह डालो, अगर लड़ना चाहते हो तो मैं लड़ने के लिए तैयार हूँ।

भूतनाथ : मुझे न तो तुम्हारे साथ किसी तरह की दुश्मनी ही है और न मैं व्यर्थ लड़ना ही चाहता हूँ, हाँ, इतना जरूर चाहता हूँ कि जमना और सरस्वती का सच्चा-सच्चा हाल मुझे मालूम हो जाय। न-मालूम कि नसालायक ने उन्हें समझा दिया है कि मैं अपने दोस्त दयाराम जी का घातक हूँ तथा इस बात पर उन्होंने विश्वास करके मेरे साथ दुश्मनी करने पर कमर बाँध ली है, और…

प्रभाकर सिंह : (बात काट कर) ओफ, इन पचड़ों को मैं सुनना पसन्द नहीं करता, इस बारे में मैं पहिले ही कह चुका हूँ कि तुम जानो और वे जानें, मैं तुम्हारा ताबेदार नहीं हूँ कि तुम्हारे लिए उनको समझाने जाऊँ।

भूतनाथ : (क्रोध के साथ) तुम अजब ढंग पर बातें कर रहे हो! तुम्हारा मिजाज तो आसमान पर चढ़ा हुआ है!!

प्रभाकर सिंह : बेशक् ऐसा ही है, तुम धोखा देकर मुझे गिरफ्तार कर लाए हो इसलिए मैं तुमसे बात करना भी पसन्द नहीं करता।

भूतनाथ : फिर ऐसा करने से तो नहीं चलता, तुम्हें झख मार कर मेरी बातों का जवाब देना पड़ेगा।

यह कहकर भूतनाथ ने भी म्यान से तलवार निकाली और पैतरा बदलकर सामने खड़ा हो गया।

प्रभाकर सिंह : तुम्हारी तलवार बिलकुल बेकार है, कुछ भी काम नहीं देगी, चलाओ और देखो क्या होता है।

भूतनाथ : हाँ-हाँ, देखो यह तलवार कैसा मजा करती है, मैं तुम्हें जान से न मारूँगा बल्कि बेकार करके छोड़ दूंगा।

इतना कहके भूतनाथ ने प्रभाकर सिंह पर वार किया जिसे उन्होंने बड़ी चालाकी के साथ अपनी तलवार पर रोका।

प्रभाकर सिंह की तलवार पर पड़ने के साथ ही भूतनाथ की तलवार कटकर दो टुकड़े हो गई क्योंकि वह हर एक हर्बे को काट सकती थी। भूतनाथ ने टूटी हुई तलवार फेंक दी और कमर से खंजर निकालकर वार किया चाहता था कि प्रभाकर सिंह ने अपनी तलवार से उसे भी काट कर दो टुकड़े कर दिया। भूतनाथ को बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह सोचने लगा कि यह अनूठी तलवार किस लोहे की बनी हुई है जो दूसरे हों को इतने सहज ही में काट डाला करती है!

थोड़ी ही दूर पर भूतनाथ के कई आदमी खड़े यह तमाशा देख रहे थे मगर मालिक का इशारा पाये बिना पास नहीं आ सकते थे। इस समय भूतनाथ ने इशारा किया और वे लोग जो गिनती में आठ थे वहाँ आ मौजूद हुए। यह कैफियत देखकर प्रभाकरसिंह ने कहा, “भूतनाथ, मैं केवल तुम्हीं से नहीं बल्कि एक साथ इन सभों से लड़ने के लिए तैयार हूँ।”

यह बात भूतनाथ को बहुत बुरी मालूम हुई और अपने एक साथी के हाथ से तलवार लेकर उसने पुन: प्रभाकर सिंह पर वार किया और साथ-साथ अपने साथियों की मदद के लिए इशारा किया।

प्रभाकर सिंह बड़ा ही बहादुर आदमी था और लड़ाई के फन में तो वह लासानी था। अगर वह चाहता तो सहज ही में अपनी तिलिस्मी तलवार से जख्मी करके सभों को बेहोश कर देता, मगर नहीं, उसने कुछ देर तक लड़ कर सभों को दिखला दिया कि हमारे सामने तुम लोग कुछ भी नहीं हो! यद्यपि उसके बदन पर भी कई जख्म लगे, मगर उसने सभों के हर्बे बेकार कर दिये और अंत में भूतनाथ तथा उसके सभी साथी जख्मी होकर तलवार वाली बिजली के असर से बेहोश हो जमीन पर गिर पड़े। प्रभाकर सिंह धीरे-धीरे मस्तानी चाल से चलते हुए वहाँ से रवाना हुए, मगर जब सुरंग में आये और दरवाजा बंद पाया तब मजबूर होकर उन्हें रुक जाना पड़ा।

प्रभाकर सिंह पुन: लौटकर वहाँ आये जहाँ भूतनाथ और उसके साथी लोग बेहोश पड़े हुए थे। तिलिस्मी तलवार के जोड़ की अंगूठी उन्होंने भूतनाथ के बदन से लगाई, उसी समय भूतनाथ की बेहोशी जाती रही। वह उठकर खड़ा हो गया और ताज्जुब के साथ प्रभाकर सिंह का मुँह देखने लगा।

भूतनाथ : मैं समझ गया कि तुम बहादुर आदमी हो और तुम्हारे हाथ की यह तलवार बड़ी ही अनूठी है जिसके सबब से तुम और भी जबर्दस्त हो रहे हो। (मुस्कुराकर) सच कहना यह तलवार तुमने कहाँ से पाई! पहिले तो यह तुम्हारे पास न थी, अगर होती तो बेइज्जती के साथ तुम चुनारगढ़ से न भागते!

प्रभाकर सिंह : ठीक है मगर इससे तुम्हें क्या मतलब, चाहे कहीं से यह तलवार मुझे मिली हो।

भूतनाथ : (मुलायमियत के साथ) नहीं-नहीं प्रभाकर सिंह, बुरा मत मानो, मेरी बातों का जवाब देने से तुम कुछ छोटे नहीं हो जाओगे। बताओ तो सही क्या यह तलवार जहर में बुझाई हुई है? क्योंकि इसका जख्म लगने के साथ ही नशा चढ़ आता है।

प्रभाकर सिंह : कदाचित् ऐसा ही हो, मैं ठीक नहीं कह सकता!

भूतनाथ : देखो मेरे साथी लोग अभी तक बेहोश पड़े हुए हैं।

प्रभाकर सिंह : अभी बड़ी देर तक ये बेहोश पड़े रहेंगे मगर मरेंगे नहीं। तुम्हारी बेहोशी तो मैंने दूर कर दी है, खैर यह बताओ कि अब तुम मेरे साथ क्या किया चाहते हो?

भूतनाथ : कुछ भी नहीं, मैं जो कुछ कर चुका हूँ उसके लिए आपसे माफी माँगता हूँ और चाहता हूँ कि आइन्दा के लिए हमारे और आपके बीच सुलह हो जाय।

प्रभाकर सिंह : जैसा तुम बर्ताव करोगे मैं वैसा ही जवाब दूंगा, मुझे खासतौर पर तुम्हारे साथ किसी तरह की दुश्मनी नहीं है।

भूतनाथ : अच्छा तो चलिए मैं आपको इस घाटी के बाहर कर आऊँ क्योंकि बिना मेरी मदद के आप यहाँ से बाहर नहीं जा सकते।

प्रभाकर सिंह : चलो।

भूतनाथ : मगर मैं देखता हूँ कि आप बहुत जख्मी हो रहे हैं और खून से आपका कपड़ा तरबतर हो रहा है, मुझे आज्ञा दीजिए तो आपके जख्मों को धोकर उन पर गीले कपड़े की पट्टी बाँध दूँ।

प्रभाकर सिंह : नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है, घाटी के बाहर निकलकर मैं इसका उपाय कर लूँगा।

भूतनाथ : आखिर क्यों ऐसा किया जाय, जितनी देर होगी उतना ज्यादा खून निकल जाएगा, आप इसके लिए जिद न करें। आप मुझ पर भरोसा करें और आज्ञा दें कि इन जख्मों पर पट्टी बाँध दूँ।

प्रभाकर सिंह : खैर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं तैयार हूँ।

भूतनाथ तेजी के साथ उस गुफा में चला जिसमें उसका डेरा था और पीतल की गगरी पानी से भरी हुई और एक लोटा तथा कुछ कपड़ा पट्टी बाँधने के लिए लेकर प्रभाकर सिंह के पास लौट आया।

प्रभाकर सिंह ने कपड़े उतारे और भूतनाथ ने जख्मों को धोकर उन पर पट्टियाँ बाँधी। इसके बाद प्रभाकर सिंह कपड़ा पहिन कर चलने के लिए तैयार हो गए। भूतनाथ ने अपने आदमियों के विषय में प्रभाकर सिंह से पूछा कि इन सभों की बेहोशी खुद-ब-खुद जाती रहेगी या इसके लिए कोई इलाज करना होगा?

पहिले तो प्रभाकर सिंह के जी में आया कि अपने हाथ की अंगूठी छुआकर उन सभों को बेहोशी दूर कर दें मगर फिर कुछ सोच कर रुक गए और बोले, “नहीं इनकी बेहोशी आप-से-आप थोड़ी देर में जाती रहेगी, कुछ उद्योग करने की जरूरत नहीं।”

आगे-आगे भूतनाथ और पीछे-पीछे प्रभाकर सिंह वहाँ से रवाना हुए। सुरंग में घुसकर भूतनाथ ने वह दरवाजा खोला जो बंद था मगर प्रभाकर सिंह को यह नहीं मालूम हुआ कि वह दरवाजा किस ढंग से खोला गया।

घाटी के बाहर निकल जाने पर भी भूतनाथ बहुत दूर तक पहुँचाने के लिए प्रभाकर सिंह के साथ मीठी-मीठी बातें करता हुआ चला गया। लगभग आधा कोस तक दोनों आदमी चले गये होंगे जब प्रभाकर सिंह का सर घूमने लगा और धीरे-धीरे बेहोश होकर वे जमीन पर गिर पड़े।

भूतनाथ बड़ा ही चालाक और काइयाँ था और उसने प्रभाकर सिंह को बुरा धोखा दिया। हमदर्दी दिखाकर जख्म धोने के बहाने से वह बेहोशी की दवा का बर्ताव कर गया। जो पानी वह अपनी गुफा में से लेकर आया था उसमें जहरीली दवा मिली हुई थी मगर वह दवा ऐसी न थी जिससे जान जाती रहे बल्कि ऐसी थी कि खून के साथ मिलकर बेहोशी का असर पैदा करे।

जब प्रभाकर सिंह बेहोश हो गए तब भूतनाथ ने पहिले तो अँगूठी और तलवार पर कब्जा किया और बहुत ही खुश हुआ, इसके बाद प्रभाकर सिंह को गठरी में बाँध पीठ पर लाद अपनी घाटी की तरफ रवाना हुआ। बेचारे प्रभाकर सिंह पुन: भूतनाथ के फंदे में फँस गए, देखना चाहिए अब भूतनाथ उनके साथ क्या सलूक करता है!

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रचनाएँ
भूतनाथ-खण्ड-2
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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भाग -1

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रात बहुत कम बाकी थी जब बिमला और इंदुमति लौट कर घर में आईं जहाँ कला को अकेली छोड़ गई थीं। यहाँ आते ही बिमला ने देखा कि उसकी प्यारी लौंडी चंदो जमीन पर पड़ी हुई मौत का इंतजार कर रही है। उसका दम टूटा ही च

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भाग -2

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दिन पहर भर से कुछ ज्यादा हो चुका है। यद्यपि अभी दोपहर होने में बहुत देर है तो भी धूप की गर्मी इस तरह बढ़ रही है कि अभी से पहाड़ के पत्थर गर्म हो रहे हैं और उन पर पैरी रखने की इच्छा नहीं होती, दो पहर द

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भाग - 3

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भाग -4

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गुलाबसिंह की जब आँख खुली तो रात बीत चुकी थी और सुबह की सुफेदी में पूरब तरफ लालिमा दिखाई देने लग गई थी। वह घबराकर उठ बैठा और इधर-उधर देखने लगा। जब प्रभाकर सिंह को वहाँ न पाया तब बोल उठा, “बेशक् मैं धोख

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भाग -5

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ऊपर लिखी वारदात को गुजरे आज कई दिन हो चुके हैं। इस बीच में कहाँ और क्या-क्या नई बातें पैदा हुईं उनका हाल तो पीछे मालूम होगा, इस समय हम पाठकों को कला और बिमला की उसी सुन्दर घाटी में ले चलते हैं जिसकी स

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दिन तीन पहर से ज्यादा बढ़ चुका है। इस समय हम भूतनाथ को एक घने जंगल में अपने तीन साथियों के साथ पेड़ के नीचे बैठे हुए देखते हैं। यह जंगल उस घाटी से बहुत दूर न था जिसमें भूतनाथ रहता था और जिसका रास्ता ब

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जमानिया वाला दलीपशाह का मकान बहुत ही सुन्दर और अमीराना ढंग पर गुजारा करने लायक बना हुआ है। उसमें जनाना और मर्दाना किला इस ढंग से बना है कि भीतर से दरवाजा खोलकर जब चाहे एक कर ले और अगर भीतर रास्ता बंद

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भूतनाथ को जब अपनी घाटी में घुसने का रास्ता नहीं मिला तो वह प्रभाकर सिंह को एक दूसरे ही स्थान में ले जाकर रख आया था और अपने दो आदमी उनकी हिफाजत के लिए छोड़ दिये थे। अब जब भूतनाथ महात्मा जी की कृपा से अ

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अबकी दफे भूतनाथ ने प्रभाकर सिंह को बड़ी सख्ती के साथ कैद किया, पैरों में बेड़ी और हाथों में दोहरी हथकड़ी डाल दी और उसी गुफा के अन्दर रख दिया जिसमें स्वयं रहता था और उसके (गुफा के) बाहर आप चारपाई डाल र

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दोपहर का समय है मगर सूर्यदेव नहीं दिखाई देते। आसमान गहरे बादलों से भरा हुआ है। ठंडी-ठंडी हवा चल रही है और जान पड़ता है कि मूसलाधार पानी बरसा ही चाहता है। भूतनाथ अपनी घाटी के बाहर निकल कर अकेला ही तैय

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भूतनाथ के हाथ से छुटकारा पाकर प्रभाकर सिंह अपनी स्त्री से मिलने के लिये उस घाटी में चले गये जिसमें कला और बिमला रहती थीं। संध्या का समय था जब वे उस घाटी में पहुँचकर कला, बिमला और इंदुमति से मिले। उस स

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गुलाबसिंह को साथ लेकर प्रभाकर सिंह नौगढ़ चले गये। वहाँ उन्हें फौज में एक ऊँचे दर्जे की नौकरी मिल गई और चुनार पर चढ़ाई होने से उन्होंने दिल का हौसला खूब ही निकाला। वे मुद्दत तक लौटकर इंदुमति के पास न आ

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भाग -13

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प्रेमी पाठक महाशय, अभी तक भूतनाथ के विषय में जो कुछ हम लिख आये हैं उसे आप भूतनाथ के जीवनी की भूमिका ही समझें, भूतनाथ का मजेदार हाल जो अद्भुत घटनाओं से भरा हुआ है पढ़ने के लिए अभी आप थोड़ा-सा और सब्र क

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