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भाग -11

7 जून 2022

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भूतनाथ के हाथ से छुटकारा पाकर प्रभाकर सिंह अपनी स्त्री से मिलने के लिये उस घाटी में चले गये जिसमें कला और बिमला रहती थीं। संध्या का समय था जब वे उस घाटी में पहुँचकर कला, बिमला और इंदुमति से मिले। उस समय वे तीनों बँगले के सुन्दर मैदान में पत्थर की चट्टानों पर बैठी आपस में बातें कर रही थीं। प्रभाकर सिंह को देखकर वे तीनों बहुत प्रसन्न हुईं, कई कदम आगे बढ़कर उनका इस्तकबाल किया तथा उसी जगह लाकर अपने पास बैठाया जहाँ वे सब बैठी हुई थीं।

बिमला : मैं भूतनाथ के हाथ से छुट्टी मिलने पर आपको मुबारकबाद देती हूँ। वास्तव में इन्द्रदेव जी ने इस विषय में बड़ी चालाकी की, नहीं तो हम लोगों से गहरी भूल हो गई थी कि भूतनाथ की घाटी का रास्ता बंद कर दिया था। उन्होंने साधु बनकर भूतनाथ को ऐसा धोखा दिया कि वह जन्म-भर याद रक्खेगा।

प्रभाकर सिंह : बेशक् ऐसी ही बात है, मुझे अभी थोड़ी देर हुई है यहाँ आते समय इन्द्रदेव जी रास्ते में मिले थे जो तुम्हारे पास होकर जा रहे थे, उन्होंने सब हाल मुझसे कहा था और उस समय भी वे उसी तरह साधु महात्मा बने हुए थे।

बिमला : जी हाँ, अब वे बराबर उसी सूरत में यहाँ आया करेंगे, उनका खयाल है कि असली सूरत में आने-जाने से कभी भूतनाथ को जरूर पता लग जाएगा और भूतनाथ उनसे खटक जाएगा क्योंकि वह बड़ा ही चांगला है।

प्रभाकर सिंह : उनका खयाल बहुत ही ठीक है, मुझसे भी ऐसा ही कहते थे। उन्होंने मुझसे यह भी पूछा था कि अब तुम्हारा क्या इरादा है, भूतनाथ का पीछा करोगे या नहीं? इसके जवाब में मैंने कहा कि भूतनाथ का पीछा करने की बनिस्बत मैं नौगढ़ के राजा से मिलकर चुनारगढ़ पर चढ़ाई करना अच्छा समझता हूँ क्योंकि राजा शिवदत्त से बदला लिए बिना मेरा जी ठिकाने न होगा और इस काम को मैं सबसे बढ़कर समझता हूँ। इन्द्रदेव जी ने मेरी यह बात स्वीकार कर ली और इस विषय में जो-जो बातें मैंने सोची थी उन्हें भी पसन्द किया।

इंदुमति : तो क्या अब आप नौगढ़ जाकर चुनार की लड़ाई में शरीक होंगे।

प्रभाकर सिंह : हाँ मैं जरूर ऐसा ही करूँगा, आजकल कुमारी चन्द्रकान्ता की बदौलत बीरेन्द्रसिंह से और शिवदत्त से खूब खिंचाखिंची हो रही है, मेरे लिए इससे बढ़कर और कौन-सा मौका मिलेगा!

बिमला : आप स्वयं फौज तैयार करके चुनार पर चढ़ाई कर सकते हैं। इस काम में मैं आपकी मदद करूँगी वे सब अशर्फियाँ जो भूतनाथ को दिखाई गई थीं और पुन: ले ली गईं मैं आपको दे सकती हूँ क्योंकि इन्द्रदेव जी ने सब मुझे दे दी हैं। आप जानते ही हैं कि उस घाटी में जाने के लिए कई रास्ते हैं, इसी तरह उस खजाने वाली कोठरी में भी जाने के लिए एक रास्ता यहाँ से है और इसी रास्ते से हम लोग उन अशर्फियों को उठा लाये थे।

प्रभाकर सिंह : मुझे मालूम है, यह हाल इन्द्रदेव जी से सुन चुका हूँ। मगर चुनार के विषय में मैं इस राय को पसन्द नहीं करता और न इस मामले में किसी से विशेष मदद ही लूँगा। हाँ मेरे दोस्त गुलाबसिंह जरूर मेरा साथ देंगे मगर सुना है कि वे इस समय दलीपशाह के साथ कहीं गये हैं और दलीपशाह भी सुबह-शाम में यहाँ आने वाले हैं।

बिमला : भोलासिंह की सूरत बनाकर दलीपशाह जब से गए हैं तब से पुन: मुझसे नहीं मिले।

प्रभाकर सिंह : क्या हुआ अगर नहीं मिले तो, इन्द्रदेव जी जब से गए हैं तब से पुन: मुझसे नहीं मिले।

बिमला : मालूम होता है कि आपने इन्द्रदेव जी से अपने बारे में सब बातें तै कर ली हैं!

प्रभाकर सिंह : हाँ जो कुछ मुझे करना है कम-से-कम उसके विषय में तो मैंने सभी बातें तै कर ली हैं।

बिमला : तो आप जरूर नौगढ़ जाएँगे?

प्रभाकर सिंह : जरूर।

बिमला : दूसरे ढंग से बदला नहीं लेंगे?

प्रभाकर सिंह : नहीं।

इंदुमति : तब मैं कहाँ रहूँगी?

प्रभाकर सिंह : तुम्हारे बारे में यह निश्चय हुआ है कि तुम्हें मैं तब तक के लिए जमानिया में राजा साहब के यहाँ रख दें, क्योंकि इस समय वे ही मेरे बड़े और बुजुर्ग जो कुछ हैं सो हैं।

बिमला : (चौंककर) मगर ऐसा करने से तो मेरा भेद खुल जाएगा।

प्रभाकर सिंह : तुम्हारा भेद क्यों खुलेगा? मैं इन्द्रदेव जी से वादा कर चुका हूँ कि इन सब बातों का वहाँ कभी जिक्र तक न करूँगा, मेरी जुबानी तुम्हारा हाल उन्हें कभी मालूम न होगा, इंदु को भी मैं ऐसा ही करने के लिए ताकीद करूँगा और तुम भी अच्छी तरह समझा देना। क्या मैं नहीं समझता कि तुम्हारा भेद खुल जाने से आपस में कई आदमियों की खटपट हो जाएगी और बेदाग दोस्ती तथा मुहब्बत में बट्टा लग जाएगा।

बिमला : अगर भूतनाथ किसी तरह इंदु को वहाँ देख ले तो क्या होगा, क्योंकि वह अकसर जमानिया जाया करता है?

प्रभाकर सिंह : तब क्या होगा? भूतनाथ अपने मुँह से इन सब बातों का जिक्र कदापि न करेगा।

बिमला : मगर दुश्मनी तो जरूर करेगा, क्योंकि इस बात का डर हो जाएगा कि कहीं इंदु इन सब बातों का भेद किसी से खोल न दे।

प्रभाकर सिंह : एक तो वह जमानिया विशेष जाता ही नहीं है दूसरे अगर कभी गया भी तो महल के अन्दर उसकी गुजर नहीं होगी, तीसरे अगर वह किसी तरह इंदु को देख भी लेगा तो वहाँ कुछ गड़बड़ी करने की उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ेगी। फिर इसके अतिरिक्त और मैं कर ही क्या सकता हूँ, मेरे लिए दूसरा कौन-सा घर है? हाँ अपने साथ नौगढ़ ले चलूँ तो हो सकता है, वहाँ भूतनाथ के जाने का डर नहीं है।

इंदुमति : मेरा खयाल तो यही है कि जमानिया की बनिस्बत नौगढ़ में मैं ज्यादा निडर रहूँगी।

बिमला : तो आप इन्हें इसी जगह हमारे पास क्यों नहीं छोड़ जाते?

प्रभाकर सिंह : यहाँ तुम लोग स्वयं ही तरद्दुद में पड़ी हुई हो, इसके सबब से और भी…

बिमला : नहीं नहीं, इनके सबब से किसी तरह की तकलीफ मुझे नहीं हो सकती है, और फिर अगर मैं ज्यादा बखेड़ा देखूँगी तो इन्हें इन्द्रदेव जी के सुपुर्द कर दूँगी वे अपने घर ले जाएँगे।

प्रभाकर सिंह : यह सबसे ठीक है, इन्द्रदेव जी का घर हमारे लिए सबसे अच्छा है और उन्होंने ऐसा कहा भी था कि अगर तुम्हारी राय हो तो इंदु को मेरे घर पर रख सकते हो।

बिमला : तो बस यही ठीक रखिए और इन्हें मेरे पास छोड़ जाइए।

प्रभाकर सिंह और कला, बिमला तथा इंदुमति में इस विषय पर बड़ी देर तक बहस होती रही और अंत में लाचार होकर प्रभाकर सिंह को बिमला की बात माननी पड़ी अर्थात् इंदुमति को बिमला ही के पास छोड़ देना पड़ा।

रात-भर प्रभाकर सिंह वहाँ रहे और प्रातःकाल सभों से मिल-जुलकर नौगढ़ की तरफ रवाना हुए।

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रचनाएँ
भूतनाथ-खण्ड-2
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भूतनाथ बाबू देवकीनंदन खत्री का तिलस्मि उपन्यास है। चन्द्रकान्ता सन्तति के एक पात्र को नायक का रूप देकर देवकीनन्दन खत्री जी ने इस उपन्यास की रचना की। किन्तु असामायिक मृत्यु के कारण वे इस उपन्यास के केवल छः भागों लिख पाये उसके बाद के अगले भाग को उनके पुत्र दुर्गाप्रसाद खत्री ने लिख कर पूरा किया।
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