बौंडोरी! बौंडोरी!...
सर्वे का काम शुरू हो गया है। अमीनों की फौज उतरी है!... बौंडोरी, बौंडोरी!
बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री। सर्वे की पहली मंजिल। अमीनों के साथ ही गाँव में नए शब्द आए हैं-सर्वे से सम्बन्धित! बच्चा-बच्चा बोलता है, मतलब समझता है।
सर्वे की पहली मंजिल-बाउंड्री। फिर, मुरब्बा, किश्तवार, तब खानापूरी, तनाजा, तसदीक और दफा तीन, छह, नौ!
जरीब की कड़ी, तख्ती, राइटेंगल, गुनियाँ, कम्पास आदि लेकर अमीन लोग अपने टंडैलों के साथ धरती के चप्पे-चप्पे पर घूम रहे हैं। जरीब की कड़ी खनखनाती हई सरक रही है-खन,खन, खन! सर्वे के अमीन साहब का कहना है-“यदि किसी प्लॉट पर कौआ भी आकर कह दे कि जमीन मैंने जोती-बोई है, तो उसका नाम लिखने को हम मजबूर हैं।...यही कानून है। यह मत समझो कि बौंडोरी बाँध रहा हूँ।”
जिले-भर के किसानों और भूमिहीनों में महाभारत मचा हुआ है। सिर्फ भूमिहीन नहीं, डेढ़ सौ बीघे के मालिकों ने भी दूसरे बड़े किसानों की जमीन पर दावे किए हैं!...हजार बीघेवाला भी एक इंच जमीन छोड़ने को राजी नहीं।
दुखरन साह के कुल में कोई रोनेवाला नहीं। अस्सी वर्ष की उम्र है। छोटी दुकान है और पचास बीघे जमीन। उसने सोचा-भूदान में दो बीघे जमीन दान देने से अड़तालीस बीघे तो बच जाएँगे। जब हर चप्पे पर तनाजा पड़ने लगा तो पागल हो गया, दुखरन साह बेचारा बूढ़ा, सीधे विनोबाजी के पास रवाना हुआक्या बाबा! तरत दान देकर तो मेरा महाकल्यान हो गया! लौटा दीजिए मेरी जमीन-मेरा दान-पत्तर!... ले लो अपनी कंठी-माला!
छै महीने में ही गाँव का बच्चा-बच्चा पक्की गवाही देना सीख गया!
छै महीने में ही गाँव एकदम बदल गया है। बाप-बेटे में, भाई-भाई में अपने हक को लेकर ऐसी लड़ाई कभी नहीं हुई। अजीब-अजीब घटनाएँ घटने लगीं।
सरबन बाबू की ही बात लीजिए...। सरबन बाबू इलाके के नामी-गरामी आदमी हैं। गाँव में अब भी काफी प्रतिष्ठा है। जवार-भर की पंचायतों में जाते हैं। हाल ही में काशीजी से शिवलिंग मँगवाकर स्थापना करवाई है। उनके छोटे भाई लालचन बाबू को किसी ने बताया कि सभी पर्चों पर सरबन बाबू अपने लड़कों के नाम या स्त्री का नाम चढ़वा रहे हैं। लालचन बाबू का नाम कहीं भी नहीं-एक प्लॉट पर भी नहीं। जिन पर्यों पर सरबन बाबू का नाम चढ़ा है, लालचन बाबू का नामोनिशान नहीं। सरबन बाबू के नाम के साथ वगैरा भी नहीं है, जो लालचन बाबू कभी दावा भी कर सकें।
लालचन बाबू पढ़े-लिखे नहीं हैं तो क्या हुआ? इतनी-सी बात उनको समझ में नहीं आएगी? उनके वकील साहब ने फीस लेकर सलाह दी है, मुफ्त में नहीं। आपको आगे बढ़ने-यानी कानून-कचहरी करने की कोई जरूरत नहीं; बड़े भाई को ही पहले आगे बढ़ाइए!
लालचन बाबू ने दूसरे ही दिन मार लाठी से सिर फोड़कर, सरबन बाबू को यानी अपने बड़े भाई साहब को आगे बढ़ा दिया है।
धन्य हैं सरबन बाब! भरी कचहरी में हल्फ लेकर कह दिया-"लालचन मेरा कोई नहीं।...इसके बाप का ठिकाना नहीं। मेरे बाबूजी के मरने के तीन बरस बाद..."
टेरिबल!-हाकिम ने अचरज से मुँह फाड़ते हुए कहा था-टेरिबल! बड़े-बड़े इज्जतदारों की हवेली में बन्द, चूँघटों में छिपी बेवा औरतें पर्दे को चीरकर आगे बढ़ आई हैं; अपने नाबालिग वंशधरों की उँगलियाँ पकड़े खड़ी हैं-“हुजूर! देखा जाए!... ज़रा इंसाफ किया जाए हजूर! इसका बाप कमाते-कमाते मर गया। कोल्ह के बैल की तरह सारी जिन्दगी खटते-खटते बीती। और खाते में कहीं भी उसके लड़के का नाम नहीं? नाम दरज कर लिया जाए हजूर!"
कॉलेजों में पढ़नेवाले विदयार्थी परीक्षा की तैयारी छोड़कर दौड़े आए हैं।...छोटे को प्राणों से भी बढ़कर प्यार करते हैं बाबूजी। छोटे के नाम से सारी उपजाऊ जमीनें लिखवा दे सकते हैं!...कोई भरोसा नहीं किसी का। खटा-खट, खटा-खट-खट-खट!-गाँव की अली-गली, अगवार-पिछवाड़ की ओर निकलनेवाली पगडंडियाँ बन्द की जा रही हैं। डर है नक्शा बन जाने का। खेत के बीचोबीच पगडंडी यदि दर्ज हो गई नक्शे में, तो हो चकी खेती!
तीन साल से चल रही है आँधी।
उधर, दीवानी कचहरियों में-बेदखली, फसल-जब्ती, टाइटल-सूट का बाजार गर्म है। ठलवे वकीलों को भी दस रुपए रोज की आमदनी होने लगी है।
अमीन साहब कहते हैं-“असल चीज है बाउंड्री। अभी जिसका नाम दर्ज हो गया, समझो, पत्थर पर रेखा पड़ गई।" इसीलिए जमीन के मालिक, बॅटैयादार, सभी उन्हें हमेशा घेरे रहते हैं। न जाने कब कोई आए और तनाजा दे दे जमीन पर। तनाजा सर्वे का सबसे ज्यादा धारवाला शब्द है। तनाजे का फैसला कानूनगो साहब करते हैं। इनको अमीन से ज्यादा पावर है। सभी अमीन और सुपरवाइजर इनके अंडर में रहते हैं।...दिन-रात कचहरी लगी रहती है कानूनगो साहब की। कानूनगो के चपरासीजी को इलाके के बड़े-बड़े जमीनवाले हाथ उठाकर जयहिन्द करते हैं-“जयहिन्द चपरासीजी!...कहिए, कानूनगो साहब को चावल पसन्द आया? असली बासमती चावल है, अपने खर्च के चावल से निकालकर भेजा था।...जी, जी, जी हाँ!...घी आज आ जाएगा।"
कचहरी लगी रहती है देश-सेवकों की, समाज-सेवकों की। कांग्रेसी, समाजवादी, कम्युनिस्ट, सभी पार्टीवालों ने अपने बाहरी वर्कर मँगाए हैं। गाँव के वर्करों की बात उनके अपने ही परिवार के अन्य सदस्य नहीं मानते। बहुत से वर्करों का ट्रायल हआ है, होनेवाला है। सेवकों की सेवाओं की परख हो रही है। सभी पार्टी के कार्यकर्ता सतर्क हैं, सचेष्ट हैं, बँटाईदारी करनेवालों के नाम पर्चा दिलवाने का व्यापार बड़ा टेढ़ा है।
किन्तु लत्तो की बात निराली है! शासक-पार्टी का कार्यकर्ता है-थाना कमिटी के सभापति के प्रियजनों में से एक।...थाना कमिटी के सभापतिजी जाहिल हैं। उनका विश्वास है कि पढ़े-लिखे लोग काम कम, बात ज्यादा करते हैं। इसलिए थाने-भर की ग्राम कमिटियाँ एक-से-एक जाहिलों के जिम्मे लगाई गई हैं। फिर, लत्तो ने अपने एक-एक लीडर को खुश किया। वर्कर के ही बल पर लीडर, लीडर के बल पर मिनिस्टर!...बड़े लोगों की सेवा कभी निष्फल नहीं जाती।...सर्वे के समय लत्तो की कीमत और बढ़ गई है। सभी धीरे-धीरे जान गए हैं, सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टीवाले जिनकी मदद करेंगे, उन्हें जमीन हरगिज नहीं मिल सकती, ब्रह्मा-विष्णु-महेश उठकर आएँ, तब भी नहीं।...इसमें बहत बड़ा रहस्य है, जिसे सिर्फ लत्तो ही जानता है।
ब्राह्मण-छतरी उसकी चरण-पूजा कर जाते हैं। बी.ए., एम.ए. को तो लुतो बाबू गाय-बैल समझता है-गोशाला का।