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भाग 6

18 जुलाई 2022

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परानपुर बहुत पुराना गाँव है।...1880 साल में मि. बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में इस गाँव के बारे में लिखा है-परातन ग्राम परानपर। इस इलाके के लोग परानपुर को सारे अंचल का प्राण कहते हैं। अक्षरश: सत्य है यह कथन। गाँव से पश्चिम बहती हुई दुलारीदाय की धारा। तीन ओर विशाल प्रान्तर, तृण-तरुशून्य लाखों एकड़ बादामी रंग की धरती! दुलारीदाय इसकी पश्चिमी रेखा है-जहाँ से हरियाली शुरू होकर पच्छिम की ओर गहरी होती गई है। अपने दोनों हाथों से दोनों कछार की धरती पर सुख-समृद्धि बाँटती हुई दुलारीदाय, वन्ध्या धरती की संवेदना में बहती अश्रधारा-जैसी!...गाँव के दक्खिन हजारों सेमल के पेड़ों का बाग है, सेमलबनी। फूलों के मौसम में लाल आसमान को मैंने देखा है-अपलक नेत्रों से, अचरज-भरी निगाहों से। लाल आसमान!

सेमल का बाग आज भी है। हर पाँच-सात साल के बाद नई पौध। सात साल पहले एक दियासलाई कम्पनी का ठेकेदार आया और सेमल-जिसके फल को गिलहरी भी न खाए, जिसकी लकड़ी से कोई मर्दा भी न जलाए-शीशम के दर बिकने लगा। लेकिन, इसी को कहते हैं तकदीर का खेल। सेमलबनी के जमींदार के अधपगले पत्र जित्तन बाबू ने साफ जवाब दे दिया-एक भी पेड़ नहीं बेचूंगा । साठ हजार रुपए की आखिरी डाक देकर कम्पनी का ठेकेदार चला गया।...अब हाय-हाय करने से क्या होता है? जमींदारी खत्म हो गई। सेमलबनी पर सरकार का कब्जा हो गया है। सरकार जो चाहे करे। सुना है, जित्तन बाबू ने हाईकोर्ट में अरजी दी है-सेमल के बाग का सर्वनाश न किया जाए!

पागल आदमी को कौन समझाए! किन्तु जित्तन बाबू का परिवार पुराना है। परानपुर गाँव के एक उजड़े खंडहर-जैसे मकान की एक कोठरी में बैठकर जित्तन बाबू यानी श्री जितेन्द्रनाथ मिश्रजी एकटक खिड़की से देख रहे हैंपोखरे में सुपारी, नारियल, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के वृक्षों की परछाइयों को। हल्की चाँदनी की चदरी धीरे-धीरे बिला रही है...। कमरे में हरिकेन का प्रकाश है। दीवार पर देगाँ की एक तस्वीर की कॉपी फ्रेम में लटकी है-आधा दर्जन अर्धनग्न नर्तकियों की टोली-नृत्यरता नायिकाएँ! स्वस्थ फ्रेंच युवतियों की इन रंगीन तस्वीरों की कपा से जित्तन बाब इधर काफी कख्यात हो गए हैं गाँव में।...धौली की माँ ने गाँव-भर में प्रचार किया है, "हवेली में झाड़ देने कौन जाए? नहीं करती ऐसी नौकरी! सारी कोठरी में मार नंगी मेम की छापी टाँगे हुए है। आँख मूंदकर कोई कैसे झाडू दे, कहो?"

गाँव के प्रसिद्ध और पुराने लाल बुझक्कड़ भिम्मल मामा ने ग्राम पुस्तकालय के पठनागार में घोषणा की-“बदधि भ्रष्ट होने से आदमी सबकुछ कर सकता है।-जित्तन इज़ सफरिंग फ्रॉम सेक्सोलॉजिया। मैलेरिया, फैलेरिया, डायरिया, पायरिया आदि रोगों से भी मारात्मक रोग है यह सेक्सोलॉजिया।"

भिम्मल मामा जित्तन बाबू की ड्योढ़ी में रोज जाते हैं, किन्तु उनके कमरे में कभी पाँव नहीं देते। कहते हैं-"बूचड़खाने में लटकते हुए खस्सी बकरों की कटी-छिली हुई देह देखकर माथा चक्कर खाने लगता है। आइ कांट स्टैंड फ्लेश विद ब्लॅड...बरदाश्त नहीं कर सकता मांस के लोथड़ों के बीच..."

गाँव की सबसे फैशनेबल युवती जयवन्ती का कहना है-“उस दिन फिलिमकट ब्लाउज पहनकर हवेली के पिछवाड़े से जा रही थी। छि:-छि:, कितना असभ्य हो जाता है आदमी शहर में रहते-रहते! एकटक देखता ही रहा, देखता ही रहा। मैं डर गई-आँखें हैं उसकी या...?"

जितेन्द्रनाथ रोज इन तस्वीरों की ओर देखकर मन-ही-मन बुदबुदाते हैं-'पिजारो, वैन गॉग, रेनोऑ, देगाँ! तुम्हारी प्रेमिकाओं को प्रणाम! मानमेंट को एक क्षण भी प्यार करनेवाली भद्र महिलाओं को श्रद्धापूर्ण नमस्कार!'

गाँव के लड़कों ने जित्तन बाबू के पागल होने का बहुत-सा प्रमाण एकत्रित किया है; सिलसिलेवार सुनने को मिलता है पठनागार में।

किन्तु इस पागल अथवा सनकी को छोड़ने से काम नहीं चलेगा। इस गाँव के सामने फैली विशाल परती की डेढ़ हजार बीघे जमीन का मालिक अकेला वही है। दुलारीदाय के बीच प्रसिद्ध कुंडों का स्वामी, बरदियाघाट से लेकर मीरघाट तक की धरती का जमींदार!

दस-पन्द्रह वर्षों के बाद गाँव लौटे हैं जित्तन बाबू।...परानपुर के पानी में अब फिर मिठास लौट आई है शायद। छह महीने हो रहे हैं, गाँव में जमकर बैठे हैं। टूटते हुए गाँव में यह साबुत किन्तु सनकी आदमी...।

परानपुर ही नहीं, सभी गाँव टूट रहे हैं। गाँव के परिवार टूट रहे हैं, व्यक्ति टूट रहा है-रोज-रोज, काँच के बर्तनों की तरह।...नहीं!...निर्माण भी हो रहा है।...नया गाँव, नए परिवार और नए लोग!

गाँवों का नवनिर्माण हो रहा है। टूटे हुए खंडहरों को साफ करके नींवें डाली जा रही हैं। शिलान्यास हो रहा है। खूब धूमधाम से नई इमारतों की बँधाईगँथाई चल रही है।...नई ईंट के साथ पुरानी किन्तु काम के योग्य ईंटों को मिलाकर दीवार बना रहा है राजमिस्त्री। अपनी बसूली से वह पुरानी ईंटों को बजा-बजाकर कहता है-“इसी ईंट को असली सूरजमुखी ईंट कहते हैं।...यह हमारे ठेकेदार साहब की ईंट नहीं कि मुट्ठी में मसलकर, आँख में झोक दिया...।"

गाँव के बड़े-बूढों का कहना है, कूप खोदते समय, नींव लेते समय मिस्त्री और मजदूरों की पीठ पर सवार रहना चाहिए। माटी के नीचे से न जाने कब क्या चीज निकल आए!

सतर्क दृष्टि से देखना होता है; चमकदार चीज को पैर के नीचे दबा रखते हैं ये। समय-समय पर इन गड्ढों में खुद उतरकर देखना बुद्धिमानी है। नई इमारत की बुलन्द होनेवाली दीवारों की गँथाई देखिए-कच्ची ईंटों पर नजर रखिए!

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रचनाएँ
परती परिकथा
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परती परिकथा फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित हिंदी उपन्यास है। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास था। इसमें परानपुर गाँव का अंचल ही नायक है । समाज गाँवों में बिखरा हुआ है और प्रत्येक गाँव की अपनी खास पहचान है। 'परती-परिकथा'उसका प्रमाण है। इस उपन्यास में देहातों की वास्तविकता का चित्रण हुआ है। व्यक्ति की नहीं, व्यक्तियों के सामूहिक व्यक्तित्व के प्रतीक अंचल पूर्णियाँ'परानपुर' गाँव को नायकत्व मिला है, जिसके कारण यह उपन्यास एक कथासागर-सा बन गया है।
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परती परिकथा भाग 1

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धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, परती जमीन, वन्ध्या धरती...। धरती नहीं, धरती की लाश, जिस पर कफ की तरह फैली हुई हैं बलूचरों की पंक्तियाँ। उत्तर नेपाल से शुरू होकर, दक्षिण गंगातट तक, पूर्णिम

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भाग 2

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कोसी मैया की कथा ? जै कोसका महारानी की जै ! परिव्याप्त परती की ओर सजल दृष्टि से देखकर वह मन-ही-मन अपने गुरु को सुमरेगा, फिर कान पर हाथ रखकर शुरू करेगा मंगलाचरण जिसे वह बिन्दौनी कहता है : हे-ए-ए-ए, पू

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भाग 3

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किन्तु, पंडुकी का जितू आज भी सोया अधूरी कहानी का सपना देख रहा है। वन्ध्या रानी माँ का सारा सुख-ऐश्वर्य छिपा हुआ है सोने के एक कलम में, बिजूबन-बिजूखंड के राक्षस के पास। देवी का खाँड़ा कौन उठाए? पंखराज

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भाग 4

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परानपुर गाँव के पूरब-उत्तर-कछुआ-पीठा भूमि पर खड़ा होकर एक नौजवान देख रहा है-अपने कैमरे की कीमती आँख से-धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, बालूचरों की श्रृंखला। हिमालय की चोटी पर डूबते हुए सूरज

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भाग 5

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बैलगाड़ी पर जा रहे हैं सुरपतिराय। दरभंगा जिले से आए हैं। डॉक्टरेट की तैयारी कर रहे हैं। नदियों के घाटों के नाम, नाम के साथ जुड़ी हुई कहानी नोट करते हैं, गीत सुनते हैं और थीसिस लिखते हैं। रानीड़बी घाट

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परानपुर बहुत पुराना गाँव है।...1880 साल में मि. बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में इस गाँव के बारे में लिखा है-परातन ग्राम परानपर। इस इलाके के लोग परानपुर को सारे अंचल का प्राण कहते हैं। अक्षरश: सत्य

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भाग 7

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जित्तू अधुरी कहानी के सपने देखता सोया पड़ा है। वह कैसे जगेगा? वह नहीं जगेगा तो देवी मन्दिर का खाँड़ा कौन उठाएगा...? एक-एक आदमी पापमुक्त कब तक होगा? उठ जित्तू! तुर-तुत्तु-उ-तू-ऊ-तू-ऊ! ग्राम परानपुर, थ

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भाग 8

18 जुलाई 2022
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परानपुर गाँव के पच्छिमी छोर पर परानपुर इस्टेट की हवेली है। पोखरे के दक्खिनवाले महार पर नारियल, सुपारी, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के पेड़ों में बया के सैकड़ों घोंसले लटक रहे हैं। महार से दस रस्सी दर हैं

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भाग 9

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लैंड सर्वे सेटलमेंट! जमीन की फिर से पैमाइश हो रही है, साठ-सत्तर साल बाद। भूमि पर अधिकार! बँटैयादारों, आधीदारों का जमीन पर सर्वाधिकार हो सकता है, यदि वह साबित कर दे कि जमीन उसी ने जोती-बोई है। चार आद

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भाग 10

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बौंडोरी! बौंडोरी!... सर्वे का काम शुरू हो गया है। अमीनों की फौज उतरी है!... बौंडोरी, बौंडोरी! बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री। सर्वे की पहली मंजिल। अमीनों के साथ ही गाँव में नए शब्द आए हैं-सर्वे से सम्बन्ध

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भाग 11

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...खेत-खलिहान, घाट-बाट, बाग-बगीचे, पोखर-महार पर खनखनाती जरीब की कड़ी घसीटी जा रही है-खन-खन-खन! नया नक्शा बन रहा है। नया खाता, नया पर्चा और जमीन के नए मालिक। तनाजा के बाद तसदीका तसदीक करने के लिए का

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भाग 12

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सर्वे सेटलमेंट के हाकिम साहब परेशान हैं। परानपुर इस्टेट की कोई भी जमा ऐसी नहीं जो बेदाग़ हो। सभी जमा को लेकर एकाधिक खूनी मुकदमे हुए हैं; आदमी मरे हैं, मारे गए हैं।...ऐसे मामलों में बगैर जिला सर्वे ऑफि

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भाग 13

18 जुलाई 2022
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दुलारीदायवाली जमा में मुसलमानटोली के मीर समसुद्दीन ने तनाजा दिया है। ढाई सौ एकड़ प्रसिद्ध उपजाऊ जमीन एक चकबन्दी और पाँच कुंडों में तीन पर पन्द्रह साल से आधीदारी करने का दावा किया है उसने। समसुद्दीन म

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भाग 14

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दस्तावेज से प्रभावित होकर हाकिम टिफिन के लिए उठ गए हैं। इतनी देर में लत्तो ने अपनी बदधि लड़ाकर बहत-सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। हाकिम के आते ही लुत्तो ने कहा- हुजूर! भारी जालिया खानदान है मिसर खानदा

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भाग 15

18 जुलाई 2022
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लुत्तो को मरमचोट लगी है। मर्मस्थल में चोट लगती है उसके, जब कोई उसे खवास कह बैठता है। अपने पुरखे-पीढ़ी के पुराने लोगों पर गुस्सा होता है। दुनिया में इतने नाम रहते जाति का नाम खवास रखने की क्या जरूरत थी

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