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भाग 8

18 जुलाई 2022

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परानपुर गाँव के पच्छिमी छोर पर परानपुर इस्टेट की हवेली है।

पोखरे के दक्खिनवाले महार पर नारियल, सुपारी, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के पेड़ों में बया के सैकड़ों घोंसले लटक रहे हैं। महार से दस रस्सी दर हैं कलमी आमों के बाग। पोखरे के पच्छिमी महार पर कचहरी-घर है; पच्छिम-दक्षिण कोण पर इस्टेट की हवेली की पुरानी इमारत का एक अंश आज भी टिका हुआ है। ढहती हुई हवेली की एक-एक ईंट पर नागरी अक्षर प. पुं. ह. का मार्को है। प. पु. ह. अर्थात् परानपुर हवेली। परानपुर इस्टेट के मालिक की ड्योढ़ी-परानपुर हवेली। परानपुर इस्टेट।

करीब सत्तर-अस्सी साल पहले हवेली की नींव डालने के दिन इस्टेट के मालिक स्वर्गीय श्री शिवेन्द्रनाथ मिश्रजी ने काली-बाडी में प्रार्थना की थी-“पतनीदार से जमींदार, जमींदार से राजा, राजा से महाराजा का खिताब हासिल करा दो...माँ तारा!"

पतनीदार शिवेन्द्र मिश्र ने मरने के दिन भी मान-भरे स्वर में कहा था-“माँ! मेरी मनोकामना तुमने पूरी नहीं की। पतनीदार का पतनीदार ही रह गया सारा जीवन!"

शिवेन्द्र मिश्र की एकान्त मनोकामना भले ही परानपुर इस्टेट का नाम जिले के कोने-कोने में फैला हुआ है-आज भी। इलाके के मकदमेबाज आज भी दीवानी तथा फौजदारी मकदमों की राय सनने के दिन शिवेन्द्र मिश्र के नाम का जाप करते हैं-पचास बार। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए शिवेन्द्र मिश्र ने जो-जो करतब किए, वे कथा-उपकथा, परिकथा तथा किंवदन्तियों के रूप में आज भी सुने जाते हैं-घाट बरदिया का व्यवहार, करो बेगारी उतरो पार!

गाँव के उत्तर-पच्छिम कोण में, पाव कोस दूर जो अकेला ताड़ का पेड़ खड़ा है, वही है बरदियाघाट। वहीं, दुलारीदाय आँचल में दीप लेकर प्रकट हुई थी। इस घाट को पार करनेवालों को घटवारी नहीं लगती। लेकिन बेगारी? पन्द्रह साल पहले तक चाहे लाट साहब की गाड़ी हो या राजा साहब की सवारी, घाट के दोनों ओर बरसात के पहले सड़क पर एक कुदाली मिट्टी जरूर डालनी पड़ती थी। आजकल, दोनों ओर की सड़कों में कमर-भर गढ़े हो गए हैं।

बेगारी बन्द हो गई है, किन्तु घाट पार करते समय अब भी दूर के गाड़ीवान-हिन्दू हों या मुसलमान-हवेली की ओर माथा झुकाकर नमस्कार करते हैं।

हवेली के पिछवाड़े में पाँच रस्सी दूर मिट्टी का ऊँचा बुर्ज है, चालीस फीट ऊँचा।...मिसर बुरुज!

बुर्ज पर मंदिरनुमा एक छोटा-सा घर है-जो सदा से राही-बटोहियों को रहस्य-रोमांचपूर्ण परिकथाओं का सदावर्त बाँटता आया है।

और इस अकेले ताइवृक्ष पर ब्रह्मपिशाच रहता है। विशाल परती पर डेढ़डेढ़ सौ एकड़ की पाँच परिधियों पर इस ब्रह्मपिशाच का राज्य था। प्रत्येक वर्ष शरद की चाँदनी में वह इन पाँचों चक्रों में अपना रुपया पसारकर सूखने देता था। असली चाँदी के रुपए, सोने की मुहरें!...मानो, आषाढ़ की पहली वर्षा में दुलारीदाय की सारी पोठी मछलियाँ परती के बलुवाही पानी के लोभ में धरती पर छटपटा रही हों! चाँदनी में चमकते हुए चाँदी के रुपए।...छटपटाती हुई पोठी मछलियाँ! चितपट-चितपट-छटपट!...

...ब्रह्मपिशाच तथा उसके रुपयों को बहतों ने अपनी आँख से देखा, पर किसी की हिम्मत नहीं हई कि कभी उसे टोके भी। किसकी माँ ने ऐसा अगिया बैताल पैदा किया है जो ब्रह्मपिशाच को देखकर भी होश दुरुस्त रख सके?

किन्तु, होश दुरुस्त रखा था शिवेन्द्र मिश्र ने। एक चाँदनी रात के दूसरे पहर में एक बार ब्रह्मपिशाच से उनकी हो गई। एक ओर ब्रह्मपिशाच तो दूसरी ओर देवी के दो-दो पीठ का सिदध तान्त्रिक और उसका नीलबरन घोड़ा! शालिहोत्र में कहा है-नीलबरन घोड़ा...। खड़क-खड़क-खड़-ड़-ड़!

ताड़ के सूखे पत्ते हवा से खड़खड़ा उठते हैं! ...

ब्रह्मपिशाच को अन्त में परास्त कर कैद किया मिश्र ने। सारे रुपए और सारी जमीन। डेढ़-डेढ़ सौ एकड़ के पाँच चक्र। आसामी बामाल! लेकिन पिशाच का धन जाता भी है पैशाचिक ढंग से ही। बाढ़ के पानी की तरह न आते देर और न जाते देर!

इस चाँदनी रात में भी मिसर-बुर्ज पर पेट्रोमेक्स जल रहा है।...बुर्ज की सीढ़ियों की मरम्मत हई है। मन्दिरनमा घर को तोड़कर नए तर्ज की एक मीनार बनाई गई है। जितेन्द्र बाबू जब से गाँव आए हैं, तीनों दिन उस पर पेट्रोमेक्स जलता है दीपक प्रमाणित करने के लिए ही, शायद!

कुलदीपक जितेन्द्रनाथ मिश्रजी दस-पन्द्रह वर्षों के बाद गाँव लौटे हैं।

मुंशी जलधारीलाल दास तहसीलदार और रामपखारनसिंह सिपाही। परानपुर इस्टेट के इन दो कर्मचारियों ने मिलकर, कलम की नोक और लाठी के जोर से, जमींदारी की रक्षा की। जमींदारी-उन्मूलन की चपेट से इस्टेट को बचाने का सारा श्रेय मंशी जलधारीलाल दास को है। साबित कर दियापरानपुर पट्टी पतनी है, जमीन खुदकाश्त है, बकाश्त है, रैयती हक है-आदि आदि!

इस लैंड सर्वे सेटलमेंट की आँधी में गाँव आए हैं जित्तन बाबू। मुंशी जलधारी के चक्षुकर्ण से देखते-सुनते हैं, और रामपखारन की विद्याबुद्धि से समझते-बूझते हैं। किसी की कोई बात नहीं सुनते। किसी से मुँह खोलकर बात नहीं करते।

नया ट्रेक्टर खरीद हुआ है। बँटाई करनेवाले किसानों को जमीन से बेदखल किए बिना फार्म बनाना असम्भव है।

दुलारीदाय-जमा की जमीनों में पाट और भदई धान की खेती करने के लिए रोज निकलते हैं जितन बाबू। ट्रेक्टर पर सवार, आँखों पर धूपछाँही चश्मा तथा सिर पर ताड़ की पत्तियों का बड़ा कनटोप!

बेदखल किए गए किसान दल बाँधकर रोज नारा लगाते हैं, गलियाते हैंजालिम, मक्कार, गिरगिट, शराबी, जुआरी इत्यादि!

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रचनाएँ
परती परिकथा
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परती परिकथा फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित हिंदी उपन्यास है। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास था। इसमें परानपुर गाँव का अंचल ही नायक है । समाज गाँवों में बिखरा हुआ है और प्रत्येक गाँव की अपनी खास पहचान है। 'परती-परिकथा'उसका प्रमाण है। इस उपन्यास में देहातों की वास्तविकता का चित्रण हुआ है। व्यक्ति की नहीं, व्यक्तियों के सामूहिक व्यक्तित्व के प्रतीक अंचल पूर्णियाँ'परानपुर' गाँव को नायकत्व मिला है, जिसके कारण यह उपन्यास एक कथासागर-सा बन गया है।
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परती परिकथा भाग 1

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धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, परती जमीन, वन्ध्या धरती...। धरती नहीं, धरती की लाश, जिस पर कफ की तरह फैली हुई हैं बलूचरों की पंक्तियाँ। उत्तर नेपाल से शुरू होकर, दक्षिण गंगातट तक, पूर्णिम

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भाग 2

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कोसी मैया की कथा ? जै कोसका महारानी की जै ! परिव्याप्त परती की ओर सजल दृष्टि से देखकर वह मन-ही-मन अपने गुरु को सुमरेगा, फिर कान पर हाथ रखकर शुरू करेगा मंगलाचरण जिसे वह बिन्दौनी कहता है : हे-ए-ए-ए, पू

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भाग 3

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किन्तु, पंडुकी का जितू आज भी सोया अधूरी कहानी का सपना देख रहा है। वन्ध्या रानी माँ का सारा सुख-ऐश्वर्य छिपा हुआ है सोने के एक कलम में, बिजूबन-बिजूखंड के राक्षस के पास। देवी का खाँड़ा कौन उठाए? पंखराज

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भाग 4

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परानपुर गाँव के पूरब-उत्तर-कछुआ-पीठा भूमि पर खड़ा होकर एक नौजवान देख रहा है-अपने कैमरे की कीमती आँख से-धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, बालूचरों की श्रृंखला। हिमालय की चोटी पर डूबते हुए सूरज

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भाग 5

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बैलगाड़ी पर जा रहे हैं सुरपतिराय। दरभंगा जिले से आए हैं। डॉक्टरेट की तैयारी कर रहे हैं। नदियों के घाटों के नाम, नाम के साथ जुड़ी हुई कहानी नोट करते हैं, गीत सुनते हैं और थीसिस लिखते हैं। रानीड़बी घाट

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भाग 6

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परानपुर बहुत पुराना गाँव है।...1880 साल में मि. बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में इस गाँव के बारे में लिखा है-परातन ग्राम परानपर। इस इलाके के लोग परानपुर को सारे अंचल का प्राण कहते हैं। अक्षरश: सत्य

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भाग 7

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जित्तू अधुरी कहानी के सपने देखता सोया पड़ा है। वह कैसे जगेगा? वह नहीं जगेगा तो देवी मन्दिर का खाँड़ा कौन उठाएगा...? एक-एक आदमी पापमुक्त कब तक होगा? उठ जित्तू! तुर-तुत्तु-उ-तू-ऊ-तू-ऊ! ग्राम परानपुर, थ

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परानपुर गाँव के पच्छिमी छोर पर परानपुर इस्टेट की हवेली है। पोखरे के दक्खिनवाले महार पर नारियल, सुपारी, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के पेड़ों में बया के सैकड़ों घोंसले लटक रहे हैं। महार से दस रस्सी दर हैं

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लैंड सर्वे सेटलमेंट! जमीन की फिर से पैमाइश हो रही है, साठ-सत्तर साल बाद। भूमि पर अधिकार! बँटैयादारों, आधीदारों का जमीन पर सर्वाधिकार हो सकता है, यदि वह साबित कर दे कि जमीन उसी ने जोती-बोई है। चार आद

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बौंडोरी! बौंडोरी!... सर्वे का काम शुरू हो गया है। अमीनों की फौज उतरी है!... बौंडोरी, बौंडोरी! बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री। सर्वे की पहली मंजिल। अमीनों के साथ ही गाँव में नए शब्द आए हैं-सर्वे से सम्बन्ध

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भाग 11

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...खेत-खलिहान, घाट-बाट, बाग-बगीचे, पोखर-महार पर खनखनाती जरीब की कड़ी घसीटी जा रही है-खन-खन-खन! नया नक्शा बन रहा है। नया खाता, नया पर्चा और जमीन के नए मालिक। तनाजा के बाद तसदीका तसदीक करने के लिए का

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भाग 12

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सर्वे सेटलमेंट के हाकिम साहब परेशान हैं। परानपुर इस्टेट की कोई भी जमा ऐसी नहीं जो बेदाग़ हो। सभी जमा को लेकर एकाधिक खूनी मुकदमे हुए हैं; आदमी मरे हैं, मारे गए हैं।...ऐसे मामलों में बगैर जिला सर्वे ऑफि

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भाग 13

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दुलारीदायवाली जमा में मुसलमानटोली के मीर समसुद्दीन ने तनाजा दिया है। ढाई सौ एकड़ प्रसिद्ध उपजाऊ जमीन एक चकबन्दी और पाँच कुंडों में तीन पर पन्द्रह साल से आधीदारी करने का दावा किया है उसने। समसुद्दीन म

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भाग 14

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दस्तावेज से प्रभावित होकर हाकिम टिफिन के लिए उठ गए हैं। इतनी देर में लत्तो ने अपनी बदधि लड़ाकर बहत-सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। हाकिम के आते ही लुत्तो ने कहा- हुजूर! भारी जालिया खानदान है मिसर खानदा

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भाग 15

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लुत्तो को मरमचोट लगी है। मर्मस्थल में चोट लगती है उसके, जब कोई उसे खवास कह बैठता है। अपने पुरखे-पीढ़ी के पुराने लोगों पर गुस्सा होता है। दुनिया में इतने नाम रहते जाति का नाम खवास रखने की क्या जरूरत थी

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