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भाग 12

18 जुलाई 2022

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सर्वे सेटलमेंट के हाकिम साहब परेशान हैं। परानपुर इस्टेट की कोई भी जमा ऐसी नहीं जो बेदाग़ हो। सभी जमा को लेकर एकाधिक खूनी मुकदमे हुए हैं; आदमी मरे हैं, मारे गए हैं।...ऐसे मामलों में बगैर जिला सर्वे ऑफिसर से सलाह लिये वे अपनी कोई राय नहीं दे सकते।

सर्वे की कचहरी छित्तनबाबू के गुहाल में लगी है। हाकिम इजलास पर बैठ गए।...परानपुर इस्टेट के कारपरदाज मुंशी जलधारीलाल दास की सूरत से ही नफरत है ए.एस.ओ. साहब को।

“कहाँ-आँ-आँ जितेन्द्रनाथ मिसरा आ-आ-आ! जितेन्द्रनाथ मिसरा हा-आ-आ-जिर हो! कहाँ मीर समसुद्दीन...” सेटलमेंट ऑफिसर के चपरासी ने हाँक लगाई। दो हाँक लगाने के बाद, विरक्त होकर बड़बड़ाने लगा-"इस्टेट के कारकुन के कान के पास लौडस्पीकर कौन लगाने जाए!"

मुंशी जलधारीलाल दास कान से कम सुनते हैं। कितना कम सुनते हैं, यह कहना कठिन है। अपने काम की बात सुनते हैं जल्दी, बेकाम की बातों के समय निपट बधिर बने मुस्कराते रहते हैं।

हाकिम को मुंशी जलधारी की यह मुस्कराहट ज़रा भी नहीं सुहाती। आज दुलारीदाय-जमा की नत्थी खुलेगी। दासजी कागजात की झोली लेकर कचहरी-घर में दाखिल हुए।

हाकिम ने देखते ही चिढ़कर कहा-“जितेन्द्रनाथ आज भी कचहरी नहीं आए? मालूम है सब मिलाकर डेढ़ सौ रुपए जुर्माना हो चुका है।...पहले जुर्माना दाखिल कीजिए।"

मुंशी जलधारीलाल दास झोली से डेढ़ सौ रुपए निकालकर पेशकार साहब के सामने गिनते हैं। तीस नत्थी का, पाँच रुपए के दर से-डेढ़ सौ रुपए!

हाकिम को भी जिद सवार है, देखें कितना जुर्माना भरते हैं जितेन्द्रनाथ बहादुर!

मुंशी जलधारीलाल को भरी कचहरी में मदारी के बन्दर-जैसा नचाने में आनन्द आता है हाकिम को, कभी-कभी। मुंशी की चमड़ी निश्चय ही गैंडे की चमड़ी-जैसी है। उनकी खिचड़ी मूंछों के अन्दर की मुस्कराहट को कभी मन्द नहीं कर सके हाकिम साहब!

"इस लकड़ी के डिब्बे में क्या ले आए हैं दासजी ? बुलबुलतरंग है क्या?" हाकिम ने हँसते हुए पूछा।

“हा-हा-हा-हा-हा"-कचहरी के लोग ठठाकर हँस पड़े-“बुलबुलतरंग!"

“दस्तावेज है हुजूर। दुलारीदाय-जमा का सेलडीड-दानपत्तर।"

“दानपत्र? डिब्बे में?" हाकिम साहब पुन: मुस्कराकर कोई बात ढूँढ़ रहे हैं। डिब्बे को हाथ में लेते ही बोले-“यह तो पूरा अलादीन का चिराग मालूम होता है।"

“हा-हा-हा-हा-हा-अलादीन का चिराग-अलबत्त दिलदार यार हैं हाकिम साहेब...!"

“चिराग गोल होता है, इसकी लम्बाई बारह इंच है हुजूर!" दासजी की दबी हुई बोली मूंछों की झुरमुट से निकली।

हाकिम ज़रा अप्रतिभ हो गए।...चन्दनकाष्ठ का कास्केट। हाकिम ने कास्केट को नाक से सूंघते हुए पूछा-“दानपत्तर में इत्र लगाकर रखा गया है क्या ?"

“दानपत्तर-इत्तर-हा-हा-हा-हा!"

“नहीं हजूर! असली मलयागिरि चन्दनकाठ है।” दासजी अपनी मुस्कराहट को धीरे-धीरे खोलना जानते हैं।

कास्केट की कारीगरी पर हाकिम की आँखें हठात स्थिर हो जाती हैं।...पेड़, पहाड़, झरना और काठ का मन्दिर। चित्रकला से थोड़ी-सी दिलचस्पी रखनेवाला पहचान सकता है, यह नेपाली कारीगरी है।

“पशुपतिनाथ मेला, नेपाल में खरीद हुआ था हुजूर!"

“अच्छा?" हाकिम साहब कास्केट के कील-कब्जे को ध्यान से देखते हैं।

"असली सोना है।" कास्केट के अन्दर से गोल लपेटा हआ दानपत्र निकालकर, जरीदार रेशमी डोरी और डोरी के झब्बों को कुछ देर तक देखते हैं। दानपत्र के प्रारम्भिक अंश में जापानी पदधति से-कदलीवक्ष, मंगलघट, जौ की बालियाँ अंकित हैं। सधे हए हाथ के मोती-जैसे अंग्रेजी अक्षर!

हाकिम साहब ने पिछले साल आई.ए.एस. परीक्षा की तैयारी के समय ही नन्दलाल बसु का नाम सुना था-पहली बार। आजकल प्रश्नों में, साधारण ज्ञान की बातों में यह सब भी पूछा जाता है-चित्रकार, गवैया, बजवैया, नचवैया! आदमी कितने नाम याद रखे!

"क्या लिखा है? लाइखाट...?"

“लिखितम् है हुजूर। रोमन में लिखा हुआ है-लिखितम्।"

हाकिम ने मुंशी जलधारीलाल की ओर गौर से देखा-कौन कहता है यह आदमी बहरा है?

“यह मिसेज़ रोज़उड कौन थी?" ।

कौन थी वह मेम, हाकिम साहब के सिर के छोटे-छोटे बाल अचरज से खड़े हो गए, मानो! सुपुष्ट अंग्रेजी लिपि में संस्कृत वाक्य-देवपुत्रतुल्य मम प्राणाधिक चिरंजीवी जितेन्द्रनाथ-लिखनेवाली अंग्रेज महिला कौन थी?

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रचनाएँ
परती परिकथा
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परती परिकथा फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित हिंदी उपन्यास है। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास था। इसमें परानपुर गाँव का अंचल ही नायक है । समाज गाँवों में बिखरा हुआ है और प्रत्येक गाँव की अपनी खास पहचान है। 'परती-परिकथा'उसका प्रमाण है। इस उपन्यास में देहातों की वास्तविकता का चित्रण हुआ है। व्यक्ति की नहीं, व्यक्तियों के सामूहिक व्यक्तित्व के प्रतीक अंचल पूर्णियाँ'परानपुर' गाँव को नायकत्व मिला है, जिसके कारण यह उपन्यास एक कथासागर-सा बन गया है।
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परती परिकथा भाग 1

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धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, परती जमीन, वन्ध्या धरती...। धरती नहीं, धरती की लाश, जिस पर कफ की तरह फैली हुई हैं बलूचरों की पंक्तियाँ। उत्तर नेपाल से शुरू होकर, दक्षिण गंगातट तक, पूर्णिम

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भाग 2

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कोसी मैया की कथा ? जै कोसका महारानी की जै ! परिव्याप्त परती की ओर सजल दृष्टि से देखकर वह मन-ही-मन अपने गुरु को सुमरेगा, फिर कान पर हाथ रखकर शुरू करेगा मंगलाचरण जिसे वह बिन्दौनी कहता है : हे-ए-ए-ए, पू

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भाग 3

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किन्तु, पंडुकी का जितू आज भी सोया अधूरी कहानी का सपना देख रहा है। वन्ध्या रानी माँ का सारा सुख-ऐश्वर्य छिपा हुआ है सोने के एक कलम में, बिजूबन-बिजूखंड के राक्षस के पास। देवी का खाँड़ा कौन उठाए? पंखराज

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भाग 4

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परानपुर गाँव के पूरब-उत्तर-कछुआ-पीठा भूमि पर खड़ा होकर एक नौजवान देख रहा है-अपने कैमरे की कीमती आँख से-धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, बालूचरों की श्रृंखला। हिमालय की चोटी पर डूबते हुए सूरज

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भाग 5

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बैलगाड़ी पर जा रहे हैं सुरपतिराय। दरभंगा जिले से आए हैं। डॉक्टरेट की तैयारी कर रहे हैं। नदियों के घाटों के नाम, नाम के साथ जुड़ी हुई कहानी नोट करते हैं, गीत सुनते हैं और थीसिस लिखते हैं। रानीड़बी घाट

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भाग 6

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परानपुर बहुत पुराना गाँव है।...1880 साल में मि. बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में इस गाँव के बारे में लिखा है-परातन ग्राम परानपर। इस इलाके के लोग परानपुर को सारे अंचल का प्राण कहते हैं। अक्षरश: सत्य

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भाग 7

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जित्तू अधुरी कहानी के सपने देखता सोया पड़ा है। वह कैसे जगेगा? वह नहीं जगेगा तो देवी मन्दिर का खाँड़ा कौन उठाएगा...? एक-एक आदमी पापमुक्त कब तक होगा? उठ जित्तू! तुर-तुत्तु-उ-तू-ऊ-तू-ऊ! ग्राम परानपुर, थ

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भाग 8

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परानपुर गाँव के पच्छिमी छोर पर परानपुर इस्टेट की हवेली है। पोखरे के दक्खिनवाले महार पर नारियल, सुपारी, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के पेड़ों में बया के सैकड़ों घोंसले लटक रहे हैं। महार से दस रस्सी दर हैं

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भाग 9

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लैंड सर्वे सेटलमेंट! जमीन की फिर से पैमाइश हो रही है, साठ-सत्तर साल बाद। भूमि पर अधिकार! बँटैयादारों, आधीदारों का जमीन पर सर्वाधिकार हो सकता है, यदि वह साबित कर दे कि जमीन उसी ने जोती-बोई है। चार आद

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भाग 10

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बौंडोरी! बौंडोरी!... सर्वे का काम शुरू हो गया है। अमीनों की फौज उतरी है!... बौंडोरी, बौंडोरी! बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री। सर्वे की पहली मंजिल। अमीनों के साथ ही गाँव में नए शब्द आए हैं-सर्वे से सम्बन्ध

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भाग 11

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...खेत-खलिहान, घाट-बाट, बाग-बगीचे, पोखर-महार पर खनखनाती जरीब की कड़ी घसीटी जा रही है-खन-खन-खन! नया नक्शा बन रहा है। नया खाता, नया पर्चा और जमीन के नए मालिक। तनाजा के बाद तसदीका तसदीक करने के लिए का

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भाग 12

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सर्वे सेटलमेंट के हाकिम साहब परेशान हैं। परानपुर इस्टेट की कोई भी जमा ऐसी नहीं जो बेदाग़ हो। सभी जमा को लेकर एकाधिक खूनी मुकदमे हुए हैं; आदमी मरे हैं, मारे गए हैं।...ऐसे मामलों में बगैर जिला सर्वे ऑफि

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भाग 13

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दुलारीदायवाली जमा में मुसलमानटोली के मीर समसुद्दीन ने तनाजा दिया है। ढाई सौ एकड़ प्रसिद्ध उपजाऊ जमीन एक चकबन्दी और पाँच कुंडों में तीन पर पन्द्रह साल से आधीदारी करने का दावा किया है उसने। समसुद्दीन म

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भाग 14

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दस्तावेज से प्रभावित होकर हाकिम टिफिन के लिए उठ गए हैं। इतनी देर में लत्तो ने अपनी बदधि लड़ाकर बहत-सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। हाकिम के आते ही लुत्तो ने कहा- हुजूर! भारी जालिया खानदान है मिसर खानदा

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भाग 15

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लुत्तो को मरमचोट लगी है। मर्मस्थल में चोट लगती है उसके, जब कोई उसे खवास कह बैठता है। अपने पुरखे-पीढ़ी के पुराने लोगों पर गुस्सा होता है। दुनिया में इतने नाम रहते जाति का नाम खवास रखने की क्या जरूरत थी

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