दस्तावेज से प्रभावित होकर हाकिम टिफिन के लिए उठ गए हैं। इतनी देर में लत्तो ने अपनी बदधि लड़ाकर बहत-सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। हाकिम के आते ही लुत्तो ने कहा- हुजूर! भारी जालिया खानदान है मिसर खानदान! कौन नहीं जानता, एक जमाने में ऐसे-ऐसे दस्तावेज मिसर के घर में रोज बनते थे। हुजूर, इस खानदान का तो गाना भी छापी होकर बिक चुका है, एक जमाने में!"
हाकिम मुस्कराने लगे। तब लुत्तो का कलेजा डेढ़ हाथ का हो गया। कचहरी-घर में जमी भीड़ की ओर देखकर कहा लुत्तो ने-“भाई, कोई बूढ़ा पुराना नहीं है? याद है किसी को वह गीत?"
भीड़ में एक हल्की मस्कराहट फैली-“बालिस्टर का भी कान काट लीहिस लुत्तो! क्यों?" एक बूढ़ा गाने को तैयार है, बशर्ते कि...।
हाकिम ने कहा-“गीत-भजन छोड़िए। कागजी सबूत दिखलाइए।"
इस बात पर लुत्तो अड़ गया...। हाकिम को मालूम होना चाहिए कि लुत्तो भी कोई पोजीशन रखता है कांग्रेस में...जितेन्द्र बाबू के एक कागज के बक्से को एक घंटे तक निहारा है हाकिम ने! लुत्तो जनता का लीडर है। लत्तो की ओर से पेश होनेवाले गीत की एक कड़ी सुननी ही होगी हाकिम को। क्योंकि इसी गीत से साबित होगा कि मिसर खानदान कितना भारी जालिया खानदान है। जब जालिया खानदान एक बार साबित हो चुका है तो फिर सब कागज जाली!...शुरू करो जी भूलोटन मड़र!
“अरे, लोटवा जे जाल करि मोहर भैजउलs हो सिवेन्दर मिसिर...।" हाकिम ने अपनी मस्कराहट को समेटने की चेष्टा की। क्या किया जाए? जिला-सर्वे-ऑफिसर ने चेतावनी दी है, वे चुपचाप गीत सुन रहे हैं।
लोटवा जे जाल करि मोहर भँजउलs हो सिवेन्दर मिसिर।
पड़ल मेमनियाँ के फेर हो सिवेन्दर मिसिर।
गोरकी मेमनियाँ जे बड़ी रे जोगनियाँ हो सिवेन्दर मिसिर।
हँसी-हँसी लेलक सब टेर हो सिवेन्दर मिसर!
वाह! लुत्तो ने तो हसन इमाम बालिस्टर को भी मात कर दिया। हसन इमाम ने कचहरी में गीत पेश करवाया था कभी? नहीं, तब? लुत्तो ने गीत पेश किया है, साक्षी-पक्ष की ओर से!
“वाह! वाह! खवास के खानदान में अलबत्त निकला लुत्तो बालिस्टर!" रामपखारन सिंघ के गले की आवाज खनखनाई-“वाह! वाह!" लोगों ने उलटकर रामपखारन सिंघ की ओर इस तरह देखना शरू किया मानो गंगास्नान करके पवित्र हुए पुण्यार्थियों के बीच कोई कसाई घुस आया हो।
“देख रहे हैं न हुजूर, किस तरह हुजूर के सामने भी आँख लाल करके कूट बोली बोलता है?"
हाकिम ने कहा-“वह तो आपकी तारीफ कर रहा है।"
"खवास का बेटा जो कहा!"
"लेकिन आपके बाप के नाम के साथ खवास सिरनाम लरेना खवास।"
“ऐं! खवास लिखा हुआ है?" सब बालिस्टरी सटक गई लुत्तो की! आज तक उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।
"हजूर! सब कारसाजी पहले के जमींदारी अमला लोगों की है। जो मन में आया लिख दिया। मेरे बाप का नाम नारायणराय है।"
“आखिर खवास से आप चिढ़ते क्यों हैं?"
“हुजूर, खवास का माने हुआ जो जूठा बर्तन माँजता हो, उगलदान उठाता हो, चिलम सुलगाता हो”-मुशी जलधारी ने दाद खुजलाते हुए कहा-“तेलमालिश से लेकर कपड़ा-धुलाई और भंग-पिसाई...।"
लुत्तो इससे आगे नहीं सुन सकता। बोला-“हुजूर, जाति की बात लेकर बात बढ़ी तो बात बिगड़ जाएगी। समझा दीजिए मुंशी जलधारीलाल को।...कायस्थों के बारे में मैं भी बहुत कटहा बात कह सकता हूँ।"
खवास टोली के एक अधेड़ आदमी ने तैश में आकर कहा-“हुजू-उ-उ-र! मुंसीजी को समझाय दीजिए। जात लेकर बात करेंगे मुंसीजी तो...."
हाकिम ने इस झंझटवाली नत्थी में फिर दूसरी तारीख देते हुए कहा-“अगली तारीख को कागजी सबूत लेकर आइए समसुद्दीन मियाँ। मुंशीजी, सुन लीजिए। जितेन्द्रनाथ से कहिए, तारीख के दिन हाजिर होकर जो कुछ कहना हो कहें।...चपरासी, पुकारो-अनूपलाल दावेदार, रंगलाल जमींदार।"
“कहाँ अनुपलाल...!"