shabd-logo

भाग 15

18 जुलाई 2022

12 बार देखा गया 12

लुत्तो को मरमचोट लगी है। मर्मस्थल में चोट लगती है उसके, जब कोई उसे खवास कह बैठता है। अपने पुरखे-पीढ़ी के पुराने लोगों पर गुस्सा होता है। दुनिया में इतने नाम रहते जाति का नाम खवास रखने की क्या जरूरत थी? और, लगता है खवास के सिवा और कोई काम ही नहीं था पुराने जमाने में! आज किसके मुँह में ताला लगावे लुत्तो!

शाम को भिम्मल मामा बात का बतंगड़ बनाकर सुननेवालों को सुना रहे थे। लुत्तो खून का यूंट पीकर रह गया। क्यों? सिर्फ इसलिए कि वह खवास का बेटा है और भिम्मल मामा कोई गैरवाजिब तो नहीं कह रहे थे। बात भी तो सही ही है। लेकिन, उसको अपने ढंग से सनाते हैं भिम्मल मामा!

खवास का अर्थ? खा-वास! पुराकाल के पुष्ट किसानों ने खैन नामक प्रथा प्रचलित की थी। कमार, कुम्हार, चमार आदि को खैन देते थे और बदले में साल-भर काम लेते थे। हल के हिसाब से ही सभी किस्म के खैन की दर नियत होती थी। एक हलवाले को अगहनी धान एक मन, भदई एक मन। लेकिन, खवास तो दिन-रात आँगन से लेकर दरवाजे तक का काम करते थे, इसलिए उन्हें ऐसी जमीन दी जाती थी, जिस पर खेती-बारी मालिक के ही हल-बैल से होती। उपज काटकर खवास ले जाते। खा-वास का अर्थ हआ-खाओ और वास करो।

खवासी जमीन? नहीं चाहिए लत्तो को ऐसी जमीन!

भिम्मल मामा से खवास का अर्थ सुनने के बाद लुत्तो की लंगीबाज बुद्धि में एक बात आई थी।...जब खवास के माने खाओ और वास करो है तो क्यों न वह फिर से एक दावा करे, अलग से? पच्चीस एकड़ पर उसने तनाजा दिया है, आधीदार हैसियत से। पच्चीस एकड़ पर और दावा कर दिया जाए, कि खवासी में मिली थी जमीन। जगजाहिर बात है कि शिवेन्दर बाबू का खवास था लरे...नारायणराय! बगैर किसी कागजी सबूत और बिना किसी पैरवी के ही जमीन खट से मिल जाएगी। खवासी जमीन!...

नहीं चाहिए लत्तो को ऐसी जमीन, जिससे जाति की इज्जत माटी में मिल जाए! और छोटी जाति के लोग तो अपनी जगह पर ठीक हैं। आजकल हरिजन भी कहलाने लगे हैं। लेकिन, खवास?-न जलो, न थलो। बामनों की चालाकी खूब समझता है लुत्तो। समझकर मन-ही-मन कुढ़ता है। सियार पंडित! डोम, चमार, काछी-हाड़ी को तो गाँव से बाहर बसाया। शूद्रों में कुछ साफ-सुथरे घराने का पानी चला दिया, नहीं तो पानी खुद भरकर पीना होगा। दही-चूड़ा का भार कौन ले जाता ढोकर-बीस कोस, पच्चीस कोस बहँगी में टाँगकर, दलकी लगाते? खवास! भिम्मल मामा की आखिरी बात लुत्तो की समझ में नहीं आई। अन्दाज से ही वह समझ गया कि कोई कटहा बात होगी।

-खवास सरूप होते हैं। सवर्णों के सत्संग. संस्कार तथा आन्तर्मिलन के फलस्वरूप...| जरूर कोई कटहा बात होगी। तो लत्तो क्या करे अकेले? जाति के लोगों की हालत तो है कुत्ते की दुम की तरह। सीधी हो, तब तो! जूठन खाई हुई जीभ बूढ़ों की पनिया जाती है। इतना बन्दिश किया, फिर भी भगेलू की बहू, लँगड़ा बूढा, मौलीदास वगैरह हैं जो चुराकर जूठन माँग लाते हैं, बबुआन टोली से। छि:-छि:! माना कि किसी-किसी मालिक के दरबार में खवासों की खूब चलती थी। मालिकों की हवेली में, उनकी बहुएँ आधी मालकिन समझी जाती थीं। किसी खानदान में आँगन की मलिकाइन अपने स्वामी के खवास पर जितना विश्वास करती उतना...! छट्ट-खवास का किस्सा कौन नहीं जानता है! दही के ऊपरवाली मलाई छटै खाए, पाँति लेके पिठौरा जाए! ऊपरली छाली छटू खाए! छाली-मलाई के लोभ से ही पुरखों ने इस मलाईदार पेशे को अपनाया था। लुत्तो को गरमचोट लगती है।

धरकट्ट कहीं के! और कोई पेशा ही नहीं मिला!

“बासी बिछावन से किसको गाली दे रहे हो लुत्तो?"

लत्तो आँख मलता हआ उठा, “जै हिन्द, जै हिन्द! आइए। बैठिए।"

बीरभददर बाब इतना भोर में आए हैं तो जरूर कोई खास बात होगी। बीरभद्दर बाबू ने इधर-उधर देखकर कहा, “चाह पिलाओ तो बैलूं। इतना सबेरे भैंस तो नहीं दुहवाया होगा?"

लुत्तो ने अपने भानजे को पुकारकर कहा, “रे बँगटा! भैंस दुह। और डेरा में जाकर कहो, चाह का पानी चढ़ाए।"

“बात यह है कि कुबेर बाबू की चिट्ठी आई है पटने से।” बीरभद्दर बाबू ने जेब से एक लिफाफा निकालकर कहा, “कुबेर बाबू को मैं भैया कहकर चिट्ठी लिखता हूँ न!"

लुत्तो की औंघाई आँखें अचानक चमक उठीं। बोला, “चिट्ठी बन्द कीजिए। गरुड़धुज झा आ रहा है। नम्बरी फोकट दलाल है।"

गरुड़धुज झा अपनी लम्बाई का फायदा सोलकन्ह टोली में खूब उठाता है। दहलीज की टट्टी से एक बालिश्त ऊपर ही उसकी गर्दन रहती है। उसने देखा, लुतो के आँगन में बटलोही चढ़ी हुई है, चाह का पानी गरम हो रहा है।

“क्यों बीरो बाबू, कांग्रेसी चाहपाटी चुपेचाप होता है!” गरुड़धुज झा ने दूर से बात फेंकी, राह चलते। बीरभद्दर बाबू गरुड़धुज को खुश रखना चाहते हैं, बीच-बीच में चाह-चू पिलाकर। बोले-“आइए, आइए!"

गरुड़धुज झा हवा का रुख देखकर बात करना जानता है। उसने बैठते ही तो एलान किया था कि जित्तन को एक महीना के अन्दर ही गाँव छोड़कर भागना होगा। सो, पाँच महीने हो रहे हैं, जित्तन तो डटा हुआ है!"

“देख लीजिएगा। जल्दी काम शैतान का! जित्तन को भागना ही होगा। शहर से आधा पागल होकर आया है, गाँव से पुरा पागल होकर जाएगा। देखिएगा तमाशा!"

“तुम चाहो तो वह कल ही सिर पर पैर लेकर भाग जाए। तुमने ढील दे दी है। ऐसे-ऐसे हाफ-मैड आदमी गाँव में तीन-चार हो जाएँ तो सारा गाँव ही चौपट समझो।"-गरुड़धुज झा अंग्रेजी नहीं जानता। लेकिन उसका लड़का अंग्रेजी पढ़ता है। आजकल गरुड़धज झा भी एकाध अंग्रेजी शब्द मिलाकर बात बोलता है। सभी बोलते हैं, फिर गरुड़धुज ही क्यों न बोले?

लुत्तो भी आजकल फर्स्टबुक पढ़ता है, अर्जुनलाल के यहाँ जाकर-ए फैट कैट सैट ऑन दैट मैट। एक मोटी बिल्ली बैठी है उस चटाई पर।...लुत्तो को थाना और जिला कमेटी के सभापति ने मिलकर परानपुर गाँव का लीडर बनाया है। सभापतिजी ने कहा था, “ज़रा-सा अंग्रेजी कटर-मटर जानता लत्तो तो थाना का सैक्रेटरी हो जाता।" लुतो ने गरुड़धज झा को जवाब देने के लिए एक शब्द ढूँढ़कर निकाला, बहुत देर के बाद। याद ही नहीं आए। आगे-आगे भागता हुआ शब्द-“झाजी! इस 'डंजरस' आदमी को मैं पानी पिला-पिलाकर जिलाऊँगा और नाच नचाकर मारूँगा। आप लोग यदि सहायता..." बीरभद्दर बाबू ने आँख मारकर मना किया।...इससे आगे नहीं।

गरुड़धज झा ने कहा, "मेरे गिलास में आधा पाव दूध डलवाकर चाह मँगाओ लुतो बाबू! एक तो चाह मैं पीता नहीं। बीरभद्दर बाबू जानते हैं, जब पीता हूँ तो आध पाव से एक बूंद भी कम हुआ दूध कि तुरत मैंड चकराने लगता है।"

लुत्तो मन-ही-मन कहता है-'इतने ऊँचे आदमी का माथा नहीं चकराएगा, भला?'

15
रचनाएँ
परती परिकथा
0.0
परती परिकथा फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा रचित हिंदी उपन्यास है। मैला आँचल के बाद यह रेणु का दूसरा आंचलिक उपन्यास था। इसमें परानपुर गाँव का अंचल ही नायक है । समाज गाँवों में बिखरा हुआ है और प्रत्येक गाँव की अपनी खास पहचान है। 'परती-परिकथा'उसका प्रमाण है। इस उपन्यास में देहातों की वास्तविकता का चित्रण हुआ है। व्यक्ति की नहीं, व्यक्तियों के सामूहिक व्यक्तित्व के प्रतीक अंचल पूर्णियाँ'परानपुर' गाँव को नायकत्व मिला है, जिसके कारण यह उपन्यास एक कथासागर-सा बन गया है।
1

परती परिकथा भाग 1

18 जुलाई 2022
3
0
0

धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, परती जमीन, वन्ध्या धरती...। धरती नहीं, धरती की लाश, जिस पर कफ की तरह फैली हुई हैं बलूचरों की पंक्तियाँ। उत्तर नेपाल से शुरू होकर, दक्षिण गंगातट तक, पूर्णिम

2

भाग 2

18 जुलाई 2022
0
0
0

कोसी मैया की कथा ? जै कोसका महारानी की जै ! परिव्याप्त परती की ओर सजल दृष्टि से देखकर वह मन-ही-मन अपने गुरु को सुमरेगा, फिर कान पर हाथ रखकर शुरू करेगा मंगलाचरण जिसे वह बिन्दौनी कहता है : हे-ए-ए-ए, पू

3

भाग 3

18 जुलाई 2022
0
0
0

किन्तु, पंडुकी का जितू आज भी सोया अधूरी कहानी का सपना देख रहा है। वन्ध्या रानी माँ का सारा सुख-ऐश्वर्य छिपा हुआ है सोने के एक कलम में, बिजूबन-बिजूखंड के राक्षस के पास। देवी का खाँड़ा कौन उठाए? पंखराज

4

भाग 4

18 जुलाई 2022
0
0
0

परानपुर गाँव के पूरब-उत्तर-कछुआ-पीठा भूमि पर खड़ा होकर एक नौजवान देख रहा है-अपने कैमरे की कीमती आँख से-धूसर, वीरान, अन्तहीन प्रान्तर। पतिता भूमि, बालूचरों की श्रृंखला। हिमालय की चोटी पर डूबते हुए सूरज

5

भाग 5

18 जुलाई 2022
0
0
0

बैलगाड़ी पर जा रहे हैं सुरपतिराय। दरभंगा जिले से आए हैं। डॉक्टरेट की तैयारी कर रहे हैं। नदियों के घाटों के नाम, नाम के साथ जुड़ी हुई कहानी नोट करते हैं, गीत सुनते हैं और थीसिस लिखते हैं। रानीड़बी घाट

6

भाग 6

18 जुलाई 2022
0
0
0

परानपुर बहुत पुराना गाँव है।...1880 साल में मि. बुकानन ने अपनी पूर्णिया रिपोर्ट में इस गाँव के बारे में लिखा है-परातन ग्राम परानपर। इस इलाके के लोग परानपुर को सारे अंचल का प्राण कहते हैं। अक्षरश: सत्य

7

भाग 7

18 जुलाई 2022
0
0
0

जित्तू अधुरी कहानी के सपने देखता सोया पड़ा है। वह कैसे जगेगा? वह नहीं जगेगा तो देवी मन्दिर का खाँड़ा कौन उठाएगा...? एक-एक आदमी पापमुक्त कब तक होगा? उठ जित्तू! तुर-तुत्तु-उ-तू-ऊ-तू-ऊ! ग्राम परानपुर, थ

8

भाग 8

18 जुलाई 2022
0
0
0

परानपुर गाँव के पच्छिमी छोर पर परानपुर इस्टेट की हवेली है। पोखरे के दक्खिनवाले महार पर नारियल, सुपारी, साबूदाना तथा यूक्लिप्टस के पेड़ों में बया के सैकड़ों घोंसले लटक रहे हैं। महार से दस रस्सी दर हैं

9

भाग 9

18 जुलाई 2022
0
0
0

लैंड सर्वे सेटलमेंट! जमीन की फिर से पैमाइश हो रही है, साठ-सत्तर साल बाद। भूमि पर अधिकार! बँटैयादारों, आधीदारों का जमीन पर सर्वाधिकार हो सकता है, यदि वह साबित कर दे कि जमीन उसी ने जोती-बोई है। चार आद

10

भाग 10

18 जुलाई 2022
0
0
0

बौंडोरी! बौंडोरी!... सर्वे का काम शुरू हो गया है। अमीनों की फौज उतरी है!... बौंडोरी, बौंडोरी! बौंडोरी अर्थात् बाउंड्री। सर्वे की पहली मंजिल। अमीनों के साथ ही गाँव में नए शब्द आए हैं-सर्वे से सम्बन्ध

11

भाग 11

18 जुलाई 2022
0
0
0

...खेत-खलिहान, घाट-बाट, बाग-बगीचे, पोखर-महार पर खनखनाती जरीब की कड़ी घसीटी जा रही है-खन-खन-खन! नया नक्शा बन रहा है। नया खाता, नया पर्चा और जमीन के नए मालिक। तनाजा के बाद तसदीका तसदीक करने के लिए का

12

भाग 12

18 जुलाई 2022
0
0
0

सर्वे सेटलमेंट के हाकिम साहब परेशान हैं। परानपुर इस्टेट की कोई भी जमा ऐसी नहीं जो बेदाग़ हो। सभी जमा को लेकर एकाधिक खूनी मुकदमे हुए हैं; आदमी मरे हैं, मारे गए हैं।...ऐसे मामलों में बगैर जिला सर्वे ऑफि

13

भाग 13

18 जुलाई 2022
0
0
0

दुलारीदायवाली जमा में मुसलमानटोली के मीर समसुद्दीन ने तनाजा दिया है। ढाई सौ एकड़ प्रसिद्ध उपजाऊ जमीन एक चकबन्दी और पाँच कुंडों में तीन पर पन्द्रह साल से आधीदारी करने का दावा किया है उसने। समसुद्दीन म

14

भाग 14

18 जुलाई 2022
0
0
0

दस्तावेज से प्रभावित होकर हाकिम टिफिन के लिए उठ गए हैं। इतनी देर में लत्तो ने अपनी बदधि लड़ाकर बहत-सी कटहा बातें तैयार कर ली हैं। हाकिम के आते ही लुत्तो ने कहा- हुजूर! भारी जालिया खानदान है मिसर खानदा

15

भाग 15

18 जुलाई 2022
0
0
0

लुत्तो को मरमचोट लगी है। मर्मस्थल में चोट लगती है उसके, जब कोई उसे खवास कह बैठता है। अपने पुरखे-पीढ़ी के पुराने लोगों पर गुस्सा होता है। दुनिया में इतने नाम रहते जाति का नाम खवास रखने की क्या जरूरत थी

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए